कोई शिकवा न ग़म न कोई याद बैठे बैठे बस आँख भर आई
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था अब मैं कोई और हूं वापस तो आ कर देखिए
मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूं हारा
हर खुशी में कोई कमी-सी है हंसती आंखों में भी नमी-सी है
कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं
दर्द अपनाता है पराए कौन कौन सुनता है और सुनाए कौन
ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है