दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं, ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
तुम फ़ुज़ूल बातों का दिल पे बोझ मत लेना, हम तो ख़ैर कर लेंगे ज़िंदगी बसर तन्हा
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे, अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया, तू ने ढाला है और ढले हैं हम
अक़्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाज़ार में, दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था, अब मैं कोई और हूँ वापस तो आ कर देखिए
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी, ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी, वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है
यहां दिए गए शेर जावेद अख्तर ने लिखे हैं. Zee Bharat ने इन्हें इंटरनेट से लिया है.