इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये, दिये से मेरी मां मेरे लिए काजल बनाती है
छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको, यह बच्चा अभी मां की दुआ ओढ़े हुए है
यूं तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन, मां अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया, मां के आंखे मूंदते ही घर अकेला हो गया
चलती फिरती हुई आंखों से अजां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू, मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती, बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती
यहां दी गई शायरी मुनव्वर राणा ने लिखी है. Zee Bharat ने इसे इंटरनेट से लिया है.