रामधारी सिंह दिनकर की वो किताबें जिन्होंने हिंदी साहित्य जगत में लाई क्रान्ति

किताबें

रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाओं की बात करें तो उनमें 'कुरुक्षेत्र', 'उर्वशी', 'रश्मिरथी', 'चक्रव्यूह', जैसी किताबें शामिल हैं.

'मेरी यात्राएं'

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कई देशों की यात्राएं कीं उन पर अपने वृतांत भी लिखे हैं. इस पुस्तक में यात्राओं का वर्णन इतना मनोहारी और सजीव है कि पाठक का मन पुस्तक पढ़ते हुए ही संबंधित देश की यात्रा पर निकल पड़ता है.

'रश्मिरथी'

रश्मिरथी महाभारत के दानवीर कर्ण पर आधारित एक खंड काव्य है. इसमें कुल सात सर्ग हैं. दिनकर की रश्मिरथी का प्रकाशन 1952 में हुआ था. रश्मिरथी में दिनकर ने सारे सामाजिक और पारिवारिक सम्बन्धों को नये सिरे से जांचा है.

'उर्वशी'

1961 में प्रकाशित 'उर्वशी' इस काव्य में दिनकर ने राष्ट्रवाद और वीर रस का प्रधानता से प्रयोग किया है. उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य है. उर्वशी के बारे में कहा जाता है कि यह नारायण ऋषि के ऊरु से उत्पन्न हुई थी.

'कुरुक्षेत्र'

'कुरुक्षेत्र' भी रामधारी सिंह दिनकर की एक बेहद चर्चित रचना है. यह एक विचारात्मक काव्य है. दिनकर जी लिखते हैं कि युद्ध की समस्या मनुष्य की सारी समस्याओं की जड़ है. कुरुक्षेत्र के माध्मय से राष्ट्रकवि दिनकर भौतिक सुखों में लीन मनुष्य की तीखी आलोचना करते हैं.

'परशुराम की प्रतीक्षा'

'परशुराम की प्रतीक्षा' रामधारी सिंह दिनकर की एक कालजयी कृति है. यह पुस्तक दिनकर को एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित करती है. इसके माध्यम से राष्ट्रकवि दिनकर तत्कालीन सत्ताधारियों को संदेश देने की कोशिश की है.

'लोकदेव नेहरू'

लोकदेव नेहरू' रामधारी सिंह दिनकर की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पुस्तक है. इस पुस्तक में दिनकर ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के राजनीतिक और अन्तरंग जीवन के कई अनछुए पहलुओं को बहुत निकटता और स्पष्टता से प्रस्तुत किया है.

'नीम के पत्ते'

'नीम के पत्ते' रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं का संग्रह है. इसमें उन कविताओं को शामिल किया गया है जो 1945 से 1953 के मध्य लिखी गई थीं. इन कविताओं में देश की आजादी की लड़ाई के लेकर आजादी के बाद के भारत के विकसित होने की तस्वीर है.

'संस्कृति के चार अध्याय'

'संस्कृति के चार अध्याय' के लिए रामधारी दिनकर को साल 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानिच किया गया था. आपको बता दें कि दिनकर की 'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक की भूमिका पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लिखी है.