अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
कल तिरे एहसास की बारिश तले, मेरा सूना-पन नहाया देर तक
जो गुजरे इश्क में सावन सुहाने याद आते हैं, तेरी जुल्फों के मुझको शामियाने याद आते हैं
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में, वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
याद आई वो पहली बारिश, जब तुझे एक नज़र देखा था
बरस रही थी बारिश बाहर, और वो भीग रहा था मुझ में
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे, दिल में हैं कुछ ज़ख़्म पुराने धो लेंगे
पड़े हैं नफ़रत के बीच दिल में बरस रहा है लहू का सावन, हरी-भरी हैं सरों की फ़सलें बदन पे ज़ख़्मों के गुल खिले हैं
यहां दिए गए शेर Zee Bharat ने इंटरनेट से लिए गए हैं.