1

जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है..!!

2

सच्चा ज्ञानी न तो जीवितों के लिए शोक करता है, न ही उनके लिए जो मर गए हैं..!!

3

मन ही व्यक्ति का मित्र और शत्रु दोनों होता है..!!

4

शांति, सौम्यता, मौन, आत्म-संयम और पवित्रता: ये मन के अनुशासन हैं..!!

5

आत्मा विनाश से परे है। कोई भी आत्मा को समाप्त नहीं कर सकता जो कि शाश्वत है..!!

6

इस आत्म-विनाशकारी नरक के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लोभ। इन तीनों का त्याग करें..!!

7

आत्मा को कभी किसी हथियार से टुकड़े नहीं किया जा सकता है, न ही आग से जलाया जा सकता है, न ही पानी से गीला किया जा सकता है, न ही हवा से सुखाया जा सकता है..!!

8

निस्वार्थ सेवा के माध्यम से, आप हमेशा फलदायी होंगे और अपनी इच्छाओं की पूर्ति पाएंगे..!!

9

वह मुझे प्रिय है जो सुखद के पीछे नहीं भागता या दुखद से दूर नहीं भागता, शोक नहीं करता, वासना नहीं करता, बल्कि चीजों को आने और जाने देता है..!!

10

मनुष्य अपने विश्वास से बनता है। जैसा वह विश्वास करता है, वैसा ही वह होता है..!!