उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है, मिल जाए तो बात वगैरा करती है
मैं उस से ये तो नहीं कह रहा जुदा न करे, मगर वो कर नहीं सकता तो फिर कहा न करे
अब इन जले हुए जिस्मों पे ख़ुद ही साया करो, तुम्हें कहा था बता कर क़रीब आया करो
ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके, वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके
तुझको बतलाता मगर शर्म बहुत आती है, तेरी तस्वीर से जो काम लिया जाता है
जैसे तुमने वक़्त को हाथ में रोका हो, सच तो ये है तुम आँखों का धोख़ा हो
कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है, तुम जिसको छू लेती हो वो मर जाता है
रुक गया है वो या चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है उसने शादी भी की है किसी से और गांव में क्या चल रहा है
यहां दिए गए शेर तहजीब हाफी द्वारा रचित हैं. Zee Bharat ने इन्हें इंटरनेट से लिया है.