प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है
गांठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है
हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए कुछ और सबक़ हम ने किताबों में पढ़े थे
वो जो क़िस्से में था शामिल वही कहता है मुझे मुझ को मालूम नहीं यार ये क़िस्सा क्या है
दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती इतनी ख़ूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती
कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा बड़े क़रीने से घर को सजा के रखते हैं