वसीम बरेलवी के लाजवाब शेर, दोस्तों को जरूर सुनाएं

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है, भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं, तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी

ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम', अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा, किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से, कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है, आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

शौहरत की बुलन्दी भी पल भर का तमाशा है, जिस डाल पर बैठे हो, वो टूट भी सकती है

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला, अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला