यूपी के आगरा में शिव दयाल सिंह ने 1861 में बसंत पंचमी के दिन राधा स्वामी संप्रदाय या सोसाइटी की शुरुआत की थी.
शिव दयाल सिंह को राधास्वामी अनुयायी हुजूर साहब से संबोधित करते हैं. वे हिंदू वैष्णव परिवार में पैदा हुए थे और आगरा में बैंकर थे. उनके माता-पिता गुरु नानक जी के अनुयायी थे.
हुजूर साहब के माता-पिता तुलसी साहिब नामक हाथरस के एक आध्यात्मिक गुरु के अनुयायी भी थे. जहां शिव दयाल सिंह खुद जाया करते थे, लेकिन उन्होंने कभी दीक्षा नहीं ली. फिर एक रोज उन्होंने राधास्वामी मत बनाया. तब उन्होंने प्रवचन देना भी शुरू कर दिया.
राधा स्वामी का अर्थ होता है आत्मा का स्वामी. इसमें राधा को आत्मा और स्वामी को भगवान के रूप में संदर्भित किया गया है. बताया जाता है कि 'राधा स्वामी' शब्द का प्रयोग शिव दयाल सिंह के लिए किया जाता था.
हुजूर साहब को मानने वाले उन्हें जीवित गुरु और राधास्वामी दयाल का अवतार मानते थे. हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में विद्वानों के अनुसार कहा गया है कि यह नाम (राधा स्वामी) शिव दयाल सिंह की पत्नी के नाम पर पड़ा.
कहा जाता है कि शिव दयाल सिंह की पत्नी का नाम नारायणी देवी था. उन्हें राधा जी उपनाथ दिया गया था. इसलिए राधा जी के पति होने के नाते शिव दयाल सिंह का नाम राधा स्वामी रख दिया गया.
जब शिव दयाल साहब जी की मृत्यु हुई तो राधा स्वामी संप्रदाय दो हिस्सों में बंट गया. शिव दयाल सिंह के शिष्यों में एक सिख जैमल सिंह द्वारा दूसरी शाखा शुरू कर दी गई. इसके सदस्यों को राधा स्वामी ब्यास (RSSB) के रूप में जाना जाता है.
RSSB का मुख्यालय अमृतसर के पास ब्यास नदी के तट पर गांव डेरा में है. वहीं राधा स्वामी का मुख्य व पहला दल आगरा में ही रहा. दोनों अलग-अलग राधास्वामी सत्संग संप्रदाय के नाम पड़े-राधास्वामी दयालबाग और राधास्वामी डेरा ब्यास.
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