हनुमान जी ने क्यों लगाई लंका में आग

हनुमान जी जब माता सीता की खोज में थे तो तब उन्होंने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया था. उन्हें सजा के दौर पर उनकी पूंछ में आग लगा दी गई, जहां अपनी पूंछ से ही उन्होंने पूरी सोने की लंका जला दी.

लेकिन लंका में आग लगेगी, यह निश्चित था!

वैसे तो रावण की लंका दहन के पीछे कई कथाएं हैं, लेकिन एक ऐसी भी कथा है, जिसके बार में लोग कम जानते हैं. एक कथा के अनुसार, देवी पार्वती के श्राप के कारण लंका जली.

एक बार माता लक्ष्मी कैलाश पहुंचीं...

एक बार माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु के साथ कैलाश पहुंचीं, तब वहां बहुत ठंड थी. तब माता लक्ष्मी ने पार्वती जी से कहा कि आप राजकुमारी का जीवन बिताने के बाद भी ऐसे वातावरण में रहती हो, इतनी ठंड में.

माता पार्वती को चुभ गई ये बात

माता लक्ष्मी ने माता पार्वती को वैकुंठ आने के लिए कहा. माता पार्वती फिर भगवान शिव के साथ वहां पहुंची और वैकुंठ का नजारा देखकर हैरान रह गईं.

भोलेबाबा से जताई ये इच्छा

कैलाश वापस जाते ही माता ने शिव से भव्य महल की इच्छा जताई. भवगान शिव को पता था कि पार्वती ईर्ष्यावश ऐसा रही है. माता को समझाया लेकिन वे नहीं मानी.

फिर क्या हुआ...

फिर देवी पार्वती का मान रखते हुए भगवान शिव ने विश्वकर्मा जी को बुलाया और उन्हें कहा कि एक ऐसा महल तैयार करें जिसको सब देखते ही रह जाएं.

बन गया सबसे अनूठा महल

विश्वकर्मा जी ने सोने का महल तैयार कर दिया. फिर वहां आने का सबको न्योता दिया गया. महल को देखकर माता पार्वती बहुत खुश हुईं. लेकिन वहां महल की वस्तुप्रतिष्ठा के लिए रावण के पिता ऋषि विश्रवा को भी आमंत्रित किया गया.

ऋषि विश्रवा का मन डोल गया

ऐसा सुंदर महल देख ऋषि विश्रवा का मन डोल गया और फिर दान में उन्होंने भगवान शिव से वह सोने का महल की मांग लिया. शिव ने भी मना नहीं किया और दे दिया.

माता पार्वती को आया गुस्सा

यह सब देखकर माता पार्वती को गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा कि तुमने छल से महल हासिल किया, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि यह पूरी लंका एक दिन जलकर राख हो जाए.

एक मान्यता ये भी...

ऐसा भी कहा जाता है कि रावण ही ब्राह्मण का रूप धारण कर शिव के यहां पहुंचा था और फिर सोने का महल दान में मांग लिया था. आखिरकार सीता हरण के दौरान हनुमान जी ने लंका दहन कर दिया.