वाशिंगटन : संयुक्त राष्ट्र ने आज एक शोध जारी किया है जिसमें बताया है कि लगभग 30 करोड़ बच्चे बाहरी वातावरण की इतनी ज्यादा विषली हवा के संपर्क में आते हैं कि उससे उन्हें गंभीर शारीरिक हानि हो सकती है और उनके विकसित होते मस्तिष्क पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है।


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यूनिसेफ के इस शोध में बताया गया है कि दुनियाभर के सात बच्चों में से एक बच्चा ऐसी बाहरी हवा में सांस लेता है जो अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम से कम छह गुना अधिक दूषित है। बच्चों में मृत्युदर का एक प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है।


इस शोध को संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक जलवायु परिवर्तन वार्ता से एक हफ्ते पहले प्रकाशित किया गया है। 7 से 18 नवंबर तक होने वाली इस वार्ता की मेजबानी मोरक्को करेगा। बच्चों के कल्याण और अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसी यूनिसेफ दुनियाभर के नेताओं से अनुरोध कर रही है कि वे अपने-अपने देशों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए जरूरी कदम उठाएं।


यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथनी लेक ने कहा, ‘हर साल पांच साल से कम उम्र के 6,00,000 बच्चों की मौत की प्रमुख वजह वायु प्रदूषण है और हर दिन इससे लाखों के जीवन और भविष्य पर खतरा मंडराता जा रहा है।’ लेक ने कहा, ‘प्रदूषण तत्व न केवल बच्चों के विकसित फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि उनके मस्तिष्क को स्थायी नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। कोई भी समाज वायु प्रदूषण को नजरअंदाज नहीं कर सकता है।’ 


यूनिसेफ ने सैटेलाइट इमेजरी का हवाला दिया है और पुष्टि की है कि लगभग दो अरब बच्चे ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां बाहरी वातावरण की हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए न्यूनतम वायु गुणवत्ता के मानकों से कहीं अधिक खराब है। इसमें बताया गया है कि वाहनों से निकलने वाला धुंआ, जीवाश्म ईंधन, धूल, जली हुई सामग्री के अवशेष और अन्य वायुजनित प्रदूषक तत्वों के कारण हवा जहरीली होती है।


ऐसे प्रदूषित वातावरण में रहने को मजबूर सर्वाधिक बच्चे दक्षिण एशिया में रहते हैं। इनकी संख्या लगभग 62 करोड़ है। इसके बाद अफ्रीका में 52 करोड़ और पश्चिमी एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र में प्रदूषित इलाकों में रहने वाले बच्चों की संख्या 45 करोड़ है। यूनिसेफ के शोध में भीतरी हवा में प्रदूषण को भी देखा गया है जिसकी प्रमुख वजह भोजन पकाने और गरम करने के लिए कोयला या लकड़ी जलाना है।


यूनिसेफ के मुताबिक बाहरी और भीतरी हवा में प्रदूषण को निमोनिया और सांस लेने संबंधी अन्य रोगों से सीधे तौर पर जोड़ा जा सकता है। पांच साल से कम उम्र के दस बच्चों में से एक बच्चे की मौत की वजह ऐसे रोग होते हैं। इस तरह वायु प्रदूषण बच्चों की सेहत के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।


एजेंसी का कहना है कि बाहरी और भीतरी वायु प्रदूषण से बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्यांेकि उनके फेफड़े, मस्तिष्क और रोगप्रतिरोधक क्षमता अभी भी विकसित हो रहे होते हैं और उनका श्वसन तंत्र कमजोर होता है। गरीबी में रह रहे बच्चों के वायु प्रदूषण जनित रोगों की चपेट में आने की आशंका कहीं ज्यादा होती है।