अमेरिकाः मीडिया ने अमेरिका में भारतीय छात्रों की गिरफ्तारी पर उठाए सवाल
विश्वविद्यालय में पिछले दो साल में करीब 600 लोगों ने दाखिला लिया जिनमें से ज्यादातर भारतीय हैं. इसमें कोई कक्षा नहीं हुई और उसने छात्रों से मामूली शुल्क लिया
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वॉशिंगटनः भारतीय मूल के प्रतिष्ठित अमेरिकी नागरिकों और कुछ मीडिया संगठनों ने 'पे एंड स्टे' विश्वविद्यालय वीजा घोटाले में 129 भारतीयों को गिरफ्तार करने में अमेरिकी सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि ''निर्दोष छात्रों को फंसाना अपराध, गैरकानूनी और अनैतिक'' है. अमेरिका के होमलैंड सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने अमेरिका में बने रहने के लिए एक फर्जी विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए 130 विदेशी छात्रों को गिरफ्तार किया है जिनमें से 129 भारतीय हैं. 'पे एंड स्टे' गिरोह का भंडाफोड़ करने के लिए ग्रेटर डेट्रॉइट इलाके में डीएचएस की जांच ईकाई ने ''फर्जी'' यूनिवर्सिटी ऑफ फर्मिंगटन स्थापित की. मनोचिकित्सक और उत्तर अमेरिकी तेलुगु संघ (नाटा) के अध्यक्ष डॉ. राघव रेड्डी घोसाला ने बताया कि 'निर्दोष छात्रों को इस तरह फंसाना अपराध है. यह गैरकानूनी और अनैतिक है.'
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वह अमेरिका के आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) विभाग द्वारा गिरफ्तार किए गए कई छात्रों के संपर्क में है. विश्वविद्यालय में पिछले दो साल में करीब 600 लोगों ने दाखिला लिया जिनमें से ज्यादातर भारतीय हैं. इसमें कोई कक्षा नहीं हुई और उसने छात्रों से मामूली शुल्क लिया. घोसाला ने कहा, ''हमारी जांच के अनुसार ऐसा लग रहा है कि उन्होंने (अमेरिका सरकार ने) जाल बिछाया. मैंने पीड़ितों से सुना.'' एक पीड़ित तो भारत भी गया था और बिना किसी दिक्कत के वापस लौट आया था. उन्होंने कहा, ''उसे तब गिरफ्तार नहीं किया गया. अब वह सोमवार को अमेरिका छोड़ रहा है. ऐसी कार्य प्रणाली गैरकानूनी है और यह गलत बात है.''
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डेट्रॉइट मर्सी विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर आमेर ज़हर ने डब्ल्यूएक्सवाईजेड डेट्रॉइट न्यूज से कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि सरकार छात्रों को उनके वीजा शर्तों के उल्लंघन में फंसाने में शामिल थी.’’ चैनल ने आईसीई की इस दलील पर सवाल उठाया कि छात्र पढ़ने के इच्छुक नहीं थे और वे अमेरिका में बने रहने के लिए विश्वविद्यालय को गैरकानूनी रूप से शुल्क दे रहे थे. चैनल ने उस इमारत में काम करने वाले कुछ लोगों का भी साक्षात्कार लिया जहां पर विश्वविद्यालय था. इमारत में काम करने वाली नादा अब्दुलमेसेह ने बताया, ''वे पूछते थे कि कब विश्वविद्यालय खुलता है, कब बंद होता है.'' उन्होंने बताया कि कई बार छात्रों ने स्कूल के बारे में पता लगाने की कोशिश की.
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इसी इमारत में काम करने वाले स्टीफन जेफर्स ने कहा कि कुछ लोग बैग टांगे कक्षाओं के बारे में पूछने आते थे. कई गिरफ्तार छात्रों से बात करने वाले वकील रसेल एब्रुटिन ने चैनल से कहा कि सरकार ने झूठे दावे करके निर्दोष लोगों से पैसे ले लिए. आईसीई ने अभी इन सवालों का जवाब नहीं दिया है. भारतीय समुदाय के नेता श्रीधर नगीरेड्डी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ''एक फर्जी विश्वविद्यालय स्थापित करने की क्या वजह रही. वे दुनिया को क्या दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. एक साल से अधिक समय में 600 लोग इस जाल में फंसे.'' उन्होंने बताया कि कई भारतीय-अमेरिकी समूह जरुरतमंद छात्रों की मदद करने के लिए आगे आए हैं. करीब छह कानूनी कंपनियों और वकीलों ने छात्रों को निशुल्क कानूनी सेवाएं देने की पेशकश की है.
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अटलांटा के एक आव्रजन वकील रवि मन्नम ने द न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए साक्षात्कार में इस अभियान की आलोचना करते हुए इसे गुमराह करने वाला बताया और कहा कि कुछ छात्रों को लगा कि वे एक वैध विश्वविद्यालय में दाखिल ले रहे हैं. आंध्र प्रदेश स्टेट नॉन रेजीडेंट तेलुगु सोसायटी के वैश्विक सलाहकार सतीश मंडुवा ने कहा कि भारतीय छात्रों के साथ जो हुआ वह देखना वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है.
वह ह्यूस्टन में भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों और भारतीय-अमेरिकी वकील गीता दामन्ना के साथ टेक्सास के समीप एक हिरासत केंद्र में गए थे. हिरासत केंद्र में सात पुरुष और एक भारतीय महिला हैं. इस बीच, भारतीय दूतावास ने अमेरिकी सरकार के समक्ष इन छात्रों के मुद्दे को सख्ती से उठाया है.