पाक में नहीं थम रहा हिंदुओं पर अत्याचार: एक और नाबालिग लड़की का हुआ अपहरण
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पाक में नहीं थम रहा हिंदुओं पर अत्याचार: एक और नाबालिग लड़की का हुआ अपहरण

पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. सिंध प्रांत में एक और नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण और धर्म परिवर्तन का मामला सामने आया है.

फाइल फोटो: रॉयटर्स

इस्लामाबाद: पाकिस्तान (Pakistan) में हिंदुओं पर अत्याचार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. सिंध प्रांत में एक और नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण और धर्म परिवर्तन का मामला सामने आया है. जानकारी के अनुसार, सिंध के जकोबाबाद की रहने वाली रेशमा का पहले अपहरण किया गया, फिर जबरन इस्लाम कबूल करवाकर अपहरणकर्ता वजीर हुसैन से 18 जून को उसकी शादी करवा दी गई.

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आरोप है कि पीड़िता पर दबाव बनाकर उससे एक हलफनामा प्रस्तुत करवाया गया है. जिसमें उसने अपनी उम्र 19 बताते हुए मर्जी से इस्लाम कबूल करने की बात कही है. गौरतलब है कि कश्मीर में मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. यहां बड़े पैमाने पर हिंदू, सिख व ईसाई लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाकर उनका मुस्लिम युवकों से विवाह रचाया जा रहा है. ऐसी घटनाएं पाकिस्तान की इमरान सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के संबंध में किए जाने वाले दावों की पोल खोलती हैं.

हलफनामे के अनुसार, रेशमा का नया मुस्लिम नाम बशीरन किया गया है. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (HRCP) की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल कम से कम 1,000 गैर-मुस्लिम लड़कियों को जबरन इस्लाम कबूल करवाया जाता है. इनमें से अधिकांश लड़कियां सिंध के हिंदू परिवारों से होती हैं, यहां लगभग आठ मिलियन हिंदू रहते हैं. पाकिस्तान उन देशों में शामिल है जिन्होंने मानवाधिकारों की वैश्विक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें धर्म चुनने की आजादी और किसी को धर्मपरिवर्तन के लिए बाध्य नहीं करने की बात कही गई है, लेकिन इमरान सरकार इसके विपरीत काम कर रही है.

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि लगातार जबरन धर्म परिवर्तन के मामले सामने आने के बावजूद पाकिस्तान में अब तक दो बार इससे संबंधित विधेयक को अस्वीकार किया गया है. 2016 में एक विधेयक को खारिज करते हुए सिंध के पूर्व राज्यपाल सईदुज्जमां सिद्दिकी (Saeeduzzaman Siddiqui) ने कहा था, 'जब हजरत अली नौ साल की उम्र में इस्लाम कुबूल कर सकते हैं, तो हिंदू लड़कियां क्यों नहीं? इस विधेयक में धर्मांतरण की न्यूनतम आयु सीमा 18 साल करने का प्रस्ताव था.

 

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