क्या भारत के दोनों पड़ोसी देश 'विदेशी ताकतों' के इशारों पर नाच रहे हैं? जानिए INSIDE STORY
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क्या भारत के दोनों पड़ोसी देश 'विदेशी ताकतों' के इशारों पर नाच रहे हैं? जानिए INSIDE STORY

क्या पाकिस्तान और श्रीलंका में पनपे संकट के बीच विदेशी ताकतों का हाथ है. अगर दावों पर यकीन करें तो इस आरोप में काफी हद तक सच्चाई है. विदेशी ताकतों का विरोध करने पर दोनों देशों की सरकारों को घुटने पर ला दिया गया.

क्या भारत के दोनों पड़ोसी देश 'विदेशी ताकतों' के इशारों पर नाच रहे हैं? जानिए INSIDE STORY

इस्लामाबाद: हम दशकों से एक शब्द काफी सुनते आए हैं और वो है विदेशी ताकतें. आपने देखा होगा कि जब किसी देश में कोई संकट आता है या अस्थिरता होती है तो उस देश की सरकार और वहां के नेता यही कहते हैं कि इसके पीछे विदेशी ताकतें हैं या इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है. ये विदेशी ताक़तें कौन होती हैं? ये कैसे काम करती हैं और ये होती भी हैं या नहीं? इसका जवाब ये है कि ये विदेशी ताकतें काल्पनिक नहीं हैं बल्कि ये वाकई में होती हैं.

  1. पाकिस्तानी आर्मी चीफ बोल रहे अमेरिका की भाषा
  2. दो तरह के होते हैं युद्ध
  3. गद्दारी के लिए लोकल एजेंटों की भर्ती

पाकिस्तान और श्रीलंका इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने रशिया की यात्रा करके अमेरिका को नाराज किया तो अमेरिका ने कुछ ही दिनों में पाकिस्तान की सरकार गिरा दी और राजनीतिक रूप से उसे अस्थिर कर दिया. आज पाकिस्तान में 25-25 करोड़ रुपये में सांसद बिक रहे हैं. ये दावा खुद इमरान खान ने किया है.

पाकिस्तानी आर्मी चीफ बोल रहे अमेरिका की भाषा

सोचिए, अमेरिका जैसा देश चाहे तो वो पाकिस्तान की पूरी संसद को खरीद कर वहां अपने लोगों को बैठा सकता है. पाकिस्तान के संकट से भी यही पता चलता है कि वहां की सेना इस समय अमेरिका की जेब में है. पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के बाद से वहां के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अमेरिका की भाषा बोलना शुरू कर दिया है. वो रशिया की खुल कर आलोचना कर रहे हैं. इससे ये साबित हो जाता है कि पाकिस्तान के राजनीतिक संकट के पीछे अमेरिका ही है. हो सकता है कि पाकिस्तान में विपक्षी पार्टियों को फंडिंग भी अमेरिका से ही मिल रही हो.

यही स्थिति श्रीलंका की भी है. श्रीलंका की सरकार जब तक चीन के प्रभाव में काम कर रही थी, तब तक वहां सबकुछ ठीक था. जैसे ही श्रीलंका ने अपने राष्ट्रीय हितों की बात की और चीन की कम्पनियों के खिलाफ़ सख्त रुख अपनाया तो पूरा देश आर्थिक संकट से घिर गया. श्रीलंका में विपक्षी पार्टियां महिन्दा राजपक्षे की सरकार को अल्पमत में बता रही हैं. हो सकता है कि इसके लिए इन पार्टियों को चीन से मदद मिल रही हो. यानी जो विदेशी ताक़तें होती हैं, वो किसी भी देश को कमज़ोर करके उसे अस्थिर कर सकती हैं. वो ऐसा इसलिए करती हैं क्योंकि जब कोई देश राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से टूट जाता है तो उसे अपने नियंत्रण में लेना और उसके संसाधनों पर कब्जा कर लेना आसान हो जाता है. ये हम सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में देख चुके हैं.

दो तरह के होते हैं युद्ध

ये भी एक तरह का Warfare यानी युद्ध है. युद्ध दो तरह के होते हैं. एक तो वो है, जो इस समय आप यूक्रेन में देख रहे हैं, जहां सेना का इस्तेमाल हो रहा है. एक युद्ध वो होता है, जिसमें सेना और हथियारों की जरूरत नहीं होती बल्कि उस देश की सोसायटी में अनिश्चितता और डर का माहौल पैदा करके उसे अन्दर से तोड़ दिया जाता है. इस युद्ध में विदेशी ताकतों की बहुत बड़ी भूमिका होती है.

ये ताकतें भारत को भी अस्थिर करने की कोशिश करती रही हैं. वो हमारे देश के नेताओं को और राजनीतिक पार्टियों को फंडिंग करती हैं, बड़ी बड़ी संस्थाओं और NGOs को पैसा पहुंचाया जाता है. फिर इन संस्थाओं द्वारा ये पैसा Urban Naxals तक पहुंचता है, आतंकवादियों को मिलता है और एक खास विचारधारा के लोगों को भी ये मदद पहुंचाई जाती है. फिर ये सब लोग इन ताकतों के साथ मिल कर देश को तोड़ने का काम करते हैं.

कुल मिलाकर कहें तो विदेशी ताक़तें जिस देश को अस्थिर करना चाहती हैं, वो वहां एक ऐसे लोकल एजेंट की तलाश करती हैं, जो उसी देश का मूल नागरिक हो और वहीं रहकर काम करता हो. जैसे जब अंग्रेज़ भारत आए थे तो उन्होंने यहां की छोटी छोटी रियासतों के नवाबों को अपना लोकल एजेंट बना लिया था. फिर इन्हीं नवाबों ने अंग्रेज़ों के लिए भारत के साथ गद्दारी की थी.

गद्दारी के लिए लोकल एजेंटों की भर्ती

आज जमाना बदल चुका है. अब जो लोकल एजेंट होते हैं, वो या तो विपक्षी पार्टियों के नेता होते हैं, पत्रकार होते हैं, बुद्धीजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, या फिर NGOs होते हैं. ये सभी लोग विदेशी ताकतों से मिल कर कभी विरोध प्रदर्शन आयोजित करवाते हैं, कभी विकास कार्यों और नए कानूनों को रोक देते हैं. कभी ये हिंसक आन्दोलन शुरू कर देते हैं. 

जैसे हमारे ही देश में कहीं नक्सलवादी हैं, कहीं आतंकवादी हैं और पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवादी संगठन हैं. आम तौर पर इनकी मांग अलग राज्य और देश की होती है. ये लोकल एजेंट धीरे धीरे उन्हें पैसा देना शुरू करते हैं. इनके साथ मिल कर देश को अन्दर से तोड़ने की कोशिश की जाती है. इससे इन्हें फंडिंग के रूप में पैसा तो मिलता ही है, साथ ही ये विदेशी ताकतों की मदद से सत्ता में भी पहुंच जाते हैं.

अजित डोभाल ने भी किया आगाह

भारत के NSA अजीत डोभाल ने हाल ही में इस खतरे को लेकर देश को सावधान किया था. उन्होंने कहा था कि अब किसी देश को तोड़ने के लिए युद्ध की जरूरत नहीं है. बल्कि अब उस देश की सोसायटी में खाई पैदा करके उसे आसानी से तोड़ा जा सकता है.

आज श्रीलंका की स्थिति ये है कि वहां डीजल लगभग समाप्त हो गया है. डीजल समाप्त होने से बड़े-बड़े Power Plants बन्द हो गए हैं. एक दिन में 13 घंटे की Load Shedding हो रही है. यानी दिन में 13 घंटे बिजली नहीं है. बिजली नहीं होने से लोग अपना मोबाइल फोन और लैपटॉप भी चार्ज नहीं कर पा रहे हैं. जिन घरों में Generator लगे है, वो भी चाह कर कुछ नहीं कर सकते.क्योंकि इन लोगों के पास Generator तो है लेकिन Generator इस्तेमाल करने के लिए डीजल नहीं है.

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श्रीलंका में गंभीर आर्थिक संकट

इसी तरह रसोई गैस नहीं मिलने से लोग खाना भी नहीं पका पा रहे हैं. जो लोग केरोसिन ऑयल यानी मिट्टी का तेल खरीदकर खाना पकाना चाहते हैं, उनके लिए भी मुश्किल कम नहीं हैं क्योंकि श्रीलंका में Kerosene Oil के लिए कई किलोमीटर लम्बी लाइनें लगी हुई हैं. मतलब ना तो आप गैस पर खाना पका सकते हैं और ना ही Stove पर.

श्रीलंका सरकार के पास अब इतना पैसा भी नहीं बचा है कि वो दूसरे देशों से जरूरी दवाइयां खरीद सके. श्रीलंका में इस समय जरूरी दवाइयों का भयानक संकट खड़ा हो गया है और अस्पतालों में Surgeries भी रोक दी गई हैं. 

हालात इतने खराब हैं कि श्रीलंका में लोगों के लिए घर से बाहर निकलना मुश्किल है. अगर वो गाड़ी से कहीं जाना चाहते हैं तो उन्हें पेट्रोल पम्प पर पेट्रोल और डीजल नहीं मिलता और अगर वो पैदल भी कहीं जाने के बारे में सोचते हैं तो सड़कों पर अंधेरा इतना है कि कोई दुर्घटना भी हो सकती है. बिजली संकट को देखते हुए श्रीलंका में सभी Street Lights को बन्द कर दिया गया है. 

 

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