बीबीसी की जांच में अमेरिका-ब्रिटेन बेनकाब, सीरिया में बने हुए थे ISIS के रक्षक
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बीबीसी की जांच में अमेरिका-ब्रिटेन बेनकाब, सीरिया में बने हुए थे ISIS के रक्षक

आईएसआईएस में शामिल हुए ऐसे विदेशी लड़ाके, जो सीरिया और इराक से नहीं थे, भी बच कर निकलने वालों के काफिले में कथित तौर पर शामिल थे.

आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट. (फाइल फोटो)

लंदन: अमेरिका और ब्रिटेन के सशस्त्र बलों के बीच हुए एक सौदे के तहत पिछले महीने सीरिया के रक्का से इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के सैंकड़ों आतंकवादियों को गोपनीय तरीके से बाहर निकाला गया था. मीडिया की एक पड़ताल में यह दावा किया गया है. बीबीसी की एक डॉक्यूमेंटरी ‘रक्काज डर्टी सीक्रेट’ के अनुसार अमेरिकी, ब्रिटिश और कुर्द बलों ने आतंकवादियों की वास्तविक राजधानी से आईएसआईएस लड़ाकों और उनके परिवारों को गोपनीय तरीके से बाहर निकाल लिया था. उसके पहले वहां अक्तूबर में हवाई हमले किए गए थे. उन लोगों को सीरिया तथा अन्य स्थानों पर छोड़ दिया गया था.

  1. बीबीसी की एक डॉक्यूमेंटरी ‘रक्काज डर्टी सीक्रेट’ में हुआ है खुलासा.
  2. ISIS लड़ाकों और उनके परिवारों को गोपनीय तरीके से बाहर निकाल लिया था. 
  3. उसके पहले सीरिया के रक्का में अक्तूबर में हवाई हमले किए गए थे.

आईएसआईएस में शामिल हुए ऐसे विदेशी लड़ाके, जो सीरिया और इराक से नहीं थे, भी बच कर निकलने वालों के काफिले में कथित तौर पर शामिल थे. एक स्थानीय ड्राइवर ने बीबीसी को बताया, ‘बड़ी संख्या में विदेशी थे. फ्रांस से लेकर तुर्की, अजरबैजान, पाकिस्तान, यमन, सऊदी, चीन, ट्यूनीशिया, मिस्र तक के.’ रिपोर्ट में बताया गया कि किस प्रकार बैठकों में स्थानीय अधिकारियों ने उनके ट्रकों के काफिले की 12 अक्तूबर को व्यवस्था की. बैठकों में एक पश्चिमी अधिकारी भी शामिल थे. काफिले में 250 लड़ाके, उनके परिवारों के 3500 सदस्य, हथियार आदि थे.

इसका मकसद हमलावर बलों की जान को बचाना और रक्का को लेकर चार महीने की लड़ाई को समाप्त करना था. रक्का आतंकवादी नेटवर्क का एक खास केंद्र रहा है. डॉक्यूमेंट्री के निर्माताओं ने दावा किया कि इसे दुनिया से छिपाने की भरसक कोशिश की गयी. लेकिन बीबीसी ने दर्जनों लोगों से बातचीत की जो या तो काफिले में शामिल थे या इसे देखा था. इसके साथ ही उन लोगों से भी बातचीत की गयी जिन्होंने सौदे के लिए बातचीत की थी.

कुर्द नीत सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज ने पहले ही रक्का को मीडिया से मुक्त करा लिया था ताकि आईएसआईएस के बचने का टेलीविजन पर प्रसारण नहीं हो सके. उसने दावा किया कि कुछ दर्जन लड़ाके ही वहां से हटने में सफल हो सके. वे सभी स्थानीय थे. लेकिन एक स्थानीय ड्राइवर ने बीबीसी को बताया कि काफिला छह से सात किलोमीटर लंबा था. काफिले में करीब 50 ट्रक, 13 बसें और 100 से ज्यादा वाहन आईएसआईएस के अपने थे.

इस खुलासे के बाद इस मामले की गूंज निश्चित तौर पर ब्रिटिश संसद और वॉशिंगटन में कांग्रेस की बैठकों में गूंजेगी. ऐसे और भी कई कृत्यों का खुलासा होने वाला है. इस मामले को लेकर रूस का रक्षा मंत्रालय पहले ही सक्रिय हो गया है. रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा, "अमेरिका ने रक्का में अबु कमाल से पीछे हट रहे एक सैन्य दस्ते पर बम गिराने से इनकार कर दिया. गठबंधन के विमान ने रूस को आंतकवादियों के खिलाफ हवाई हमले करने से रोकने की भी कोशिश की. इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि अमेरिका के नेतृत्व वाला अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन आईएसआईएस आतंकवादियों को सीधे तौर पर सहयोग और समर्थन दे रहा है."

एक अन्य घटना में भी "अमेरिकियों ने आईएसआईएस आतंकवादियों के खिलाफ हवाई हमले करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया." इसका कारण यह दिया गया कि आतंकवादी युद्ध बंदियों के तौर पर समर्पण करने के लिए तैयार हैं और इसलिए वे जेनेवा संधि के प्रावधानों के अधीन आते हैं. इस तर्क के साथ अमेरिकी विमान ने 'रूसी विमानों को कार्रवाई नहीं करने दी.'

थिंक टैंक स्ट्रैटफॉर के मुताबिक, "हाल ही में इराक और सीरिया से लौटने वाले लड़ाकों द्वारा अंजाम दिए गए हमलों से पता चलता है कि वे मुश्किल लक्ष्यों की जगह आसान लक्ष्यों को निशाना बना रहे हैं. एक यहूदी संग्रहालय पर और ब्रसेल्स के हवाईअड्डे पर, लंदन के मैनचेस्टर में एक कांसर्ट और पेरिस में एक कैफे, कांसर्ट स्थल और खेल के स्टेडियम पर हुए हमले इसके कुछ उदाहरण हैं."

जिहाद के नाम पर पश्चिम में अपने घरों को छोड़कर सीरिया जैसे स्थानों के लिए निकले युवाओं में अपने घर लौटने पर अपने-अपने समाज के लिए भी शत्रुतापूर्ण भाव नहीं होगा, इसकी संभावना कम ही है और यह शत्रुतापूर्ण भाव आतंकवादी गतिविधियों के रूप में सामने आएगा. आतंकवादियों और उनका सामना करने वाली आतंकवाद रोधी इकाइयों के बीच चलने वाली चूहे-बिल्ली की दौड़ अन्य लोगों को अपने दुष्ट एजेंडों को आगे बढ़ाने का मौका देती है. यह एक शैतानी जाल की तरह है.

अगर पाठकों ने आईएस के प्रचारक तंत्र अमाक को नहीं देखा, तो उन्हें तुरंत ऑनलाइन इसकी एक प्रति लेनी चाहिए. यह चमकदार पत्रिका कई अन्य बेहतर पत्रिकाओं को शर्मसार कर देगी. अगर आईएस बंकरों और खाइयों में लुक-छिपकर रहने वाला एक आतंकवादी संगठन है तो उनके पास ऐसी पेशेवर पत्रिका को नियमित रूप से प्रकाशित करने का समय, कौशल और प्रिंटिंग प्रेस कैसे उपलब्ध है?

गैर-जीसीसी (खाड़ी सहयोग परिषद) अरब राजनयिक साउथ ब्लॉक को सूचित करते रहे हैं कि संभवत: सीरिया और इराक से आतंकवादियों को विमान द्वारा अफगानिस्तान और म्यांमार के राखिने जैसे युद्ध क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा रहा है. भारत को भी इस वैश्विक संकट से खुद को सुरक्षित नहीं समझना चाहिए.

वॉशिंगटन स्थित इंटरनेशनल एक्शन सेंटर की सारा फ्लॉन्डर्स का म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की बदतर होती स्थिति पर लिखा लेख भी इसी ओर इशारा करता है. राखिने में बौद्ध पुजारियों, म्यांमार की सेना और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच शत्रुता वर्षो से चली आ रही है. फिर 25 अगस्त को सशस्त्र विद्रोही समूह अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (अरसा) को म्यांमार सेना की 30 चौकियों पर हमले की जरूरत क्यों पड़ी? 

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