एक ही जगह पर जन्म, मौत और शादियां, शरणार्थी शिविर में कुछ ऐसी है जिंदगी
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एक ही जगह पर जन्म, मौत और शादियां, शरणार्थी शिविर में कुछ ऐसी है जिंदगी

 रोहिंग्या शरणार्थियों की इस बस्ती की गंदी गलियों में जिंदगी कुछ इस तरह रवां दवां है. कई दशक पुरानी इस बस्ती में जिंदगी अपने सभी रूपों में मौजूद है. 

फाइल फोटो

नई दिल्लीः एक नवजात शिशु मां की बांहों में भीड़ को टुकुर-टुकुर देख रहा है. कुछ ही दूर पर लड़कियां लहक-लहक कर शादी के गीत गा रही हैं और एक दूसरे छोर पर कंबल पर लेटा एक बेजान जिस्म अपने आखिरी सफर का इंतजार कर रहा है. रोहिंग्या शरणार्थियों की इस बस्ती की गंदी गलियों में जिंदगी कुछ इस तरह रवां दवां है. कई दशक पुरानी इस बस्ती में जिंदगी अपने सभी रूपों में मौजूद है. यह बस्ती को जिंदगी का एक एहसास, एक नाम और एक रूप दे रही है. रोहिंग्या 1970 के दशक के अंत में म्यानमार में हमलों से भाग कर झुंड के झुंड यहां पहुंचे थे. तब दस लाख रोहिंग्या बेघर-बार बांग्लादेश की शरण में पहुंचे थे. शिनाख्त के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था. ना वह म्यानमार के रहे जहां वे पैदा हुए और जहां वे पले और न ही वे बांग्लादेश के जहां की गंदी और तंग गलियों को अपना आशियाना बनाया.

ज्यादातर बच्चे कुपोषित
ज्यादातर म्यानमार बेरोजगार है. दो जून की रोटी जुटाने के लिए न तो वे कहीं कानूनी रूप से काम कर सकते हैं और ना ही तालीम पा कर अपनी जिंदगी सुधार सकते हैं. वे आजादाना यहां-वहां घूम-फिर भी नहीं सकते. कॉक्स बाजार जिले के इन शिविरों में बच्चे इधर-उधर कूद-फांद करते मिल जाएंगे. किसी भी अन्य बच्चे की तरह ये नटखट हैं और इनकी आंखों में चीजों को देखने-समझने-जानने की प्यास है, लेकिन ये आम बच्चे नहीं हैं. ज्यादातर बच्चे कुपोषित हैं. इनके कपड़े फटे-पुराने और गंदे हैं. इनमें से बहुत को स्कूल जाने का भी मौका नहीं मिला.

मैं चाहती हूं कि एक दिन मेरी बेटी म्यानमार देखे
शरणार्थी अब भी म्यानमार लौटने और अपनी माटी से रुबरु होने का ख्वाब देखते हैं. थंगखाली शरणार्थी शिविर में आठ दिन की अपनी बेटी को बांहों में थामे 20 साल की सितारा का भी यही ख्वाब है. वह कहती है, ‘‘मैं चाहती हूं कि एक दिन मेरी बेटी म्यानमार देखे.’’ वह ख्वाब और हकीकत के बीच का फर्क भी जानती है और कहती है, ‘‘जब तक सभी नहीं जाएंगे, मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’ 

 हर महीने 300 बच्चे जन्म लेते हैं
गर्भावस्था में सितारा ने एनजीओ के स्वास्थ्य केन्द्र में जाने की बजाए ‘दाइमा’ की मदद ली थी. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार नए शरणार्थी शिविरों में कुछ महीनों में पांच हजार बच्चे पैदा होंगे. अकेले संयुक्त राष्ट्र की सुविधाओं में हर महीने 300 बच्चे जन्म लेते हैं. (इनपुटः भाषा)

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