लंदन: कोरोना के डेल्टा वैरिएंट से ब्रिटेन में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं. मई में इस वैरिएंट की वजह से कोरोना के मामले 50 फीसदी तक बढ़ गए. 


11 दिन में दोगुने मामले 


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लंदन के इम्पीरियल कॉलेज की स्टडी के मुताबिक, नया वैरिएंट अब तेजी से फैल रहा है. सिर्फ 11 दिन में दोगुने मामले सामने आ रहे हैं.  यह स्टडी एक लाख से ज्यादा लोगों पर की गई है. 


यहां बता दें​ कि डेल्टा वैरिएंट सबसे पहले भारत में मिला था. दूसरी लहर के दौरान डेल्टा वैरिएंट की वजह से भारत में भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़े. अब तक 40 देशों में ये वैरिएंट मिल चुका है.


अनलॉक की प्रक्रिया को जुलाई तक टालने का फैसला


ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हाल ही में अनलॉक की प्रक्रिया को जुलाई तक टालने का फैसला किया है. अब अनलॉक की प्रक्रिया 19 जुलाई से लागू होगी. पहले ये 21 जून से शुरू होनी थी. 


कौन सी वैक्सीन कितनी कारगर


दूसरी तरफ कोरोना के डेल्टा वैरिएंट पर कौन सी वैक्सीन कितनी कारगर है, इसे भी लेकर एक ​रिसर्च की गई है. यहां बता दें कि दुनिया में जितनी वैक्सीन बनी है, वो अल्फा वैरिएंट के हिसाब से बनाई गई हैं. 


यही वजह है कि आमतौर पर गंभीर मामलों में मरीज को मौत से बचाने वाली वैक्सीन का असर डेल्टा वैरिएंट पर कम हो जाता है. वैक्सीन असर करती तो है लेकिन नए वैरिएंट से लड़ने की क्षमता वैक्सीन में कम होती है. 


पब्लिक हेल्थ स्कॉटलैंड से जमा किए डेटा और द लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों ने कोरोना से बचाव के लिए फाइजर बायोएनटेक वैक्सीन ली है. उन्हें अल्फा वैरिएंट से 92 प्रतिशत तक बचाव मिल रहा है लेकिन ​डेल्टा वैरिएंट पर वैक्सीन का असर घट कर 79 प्रतिशत तक है. 



घटकर 60 फीसदी हो गया वैक्सीन का असर


वहीं एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन जो अल्फा वैरिएंट से 73 फीसदी तक बचाव को सुनिश्चित कर रही थी. डेल्टा वैरिएंट से ये घटकर 60 फीसदी हो गया है. फाइजर की पहली डोज लेने वालों को अल्फा वैरिएंट 51 फीसदी और डेल्टा वैरिएंट से सिर्फ 33.5 फीसदी बचाव मिल पाएगा. 


बता दें कि ब्रिटेन में युवाओं की करीब आधी आबादी ने वैक्सीन की दोनों डोज ले ली है.