तिब्बत में बड़े पैमाने पर श्रमिकों की तैनाती, इस बार चीन पर ये आरोप
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तिब्बत में बड़े पैमाने पर श्रमिकों की तैनाती, इस बार चीन पर ये आरोप

शिनजियांग शोधार्थी एड्रिएन झेन के मुताबिक 1966 से 1976 के दशक के बाद ये आजीविका को हथियार बनाकर तिब्बत के लोगों और उनकी संस्कृति को प्रभावित करने के लिए किया गया सबसे बड़ा हमला है.

चीन ने बड़े पैमाने पर श्रमिकों की तैनाती के साथ मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है...

बीजिंग : चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत शिनजियांग प्रांत (Xinjiang region) में हाल ही में बने सैन्य-शैली के प्रशिक्षण केंद्रों में तिब्बत के ग्रामीण मजदूरों की तैनाती पर जोर दे रहा है. यहां ग्रामीणों को कारखाने के श्रमिकों के तौर पर तैनात किया गया है जिनके मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के साथ ही चीन श्रम कानूनों (Labour Law) का भी उल्लंघन कर  रहा है.

  1. तिब्बत में चीन की नई साजिश की आशंका
  2. तिब्बती ग्रामीणों को दी गई है बड़ी तैनाती
  3. तिब्बत पर अपनी राय जता चुके है जिनपिंग

मीडिया रिपोर्ट्स से मिली जानकारी
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स द्वारा स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट्स के निरीक्षण के दौरान खुलासा हुआ है कि 'शी प्रशासन ने 2016 से 2020 के बीच चीनी उद्धोगों की मजबूती और उन्हे वफादार कर्मचारी मुहैया कराने के लिए तिब्बत और आस-पास के क्षेत्रों में अपने नीति निर्धारण को लेकर बड़े बदलाव किए हैं.'

तिबब्त की वेबसाइट से खुलासा
तिब्बत की सरकारी वेबासाइट में पिछले महीने एक नोटिस जारी करते हुए जानकारी दी गई थी कि 2020 के शुरुआती सात महीनों में चीन ने अपने प्रोजेक्ट के तहत पांच लाख से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग और अन्य सुविधाएं दीं. ऐसे लोगों की तादाद की बात करें तो ये आंकड़ा क्षेत्र की आबादी का करीब 15 फीसदी हिस्सा होता है.  

मजदूरों का सबसे बड़ा प्रवासन!
मुहिम के तहत 50 हजार लोगों का तबादता करते हुए तिब्बत के भीतर तैनाती दी गई, अन्य कई हजार लोगों को चीन के अन्य हिस्सों में भेजा गया. इनमें से अधिकांश बेहद कम वेतनभोगी मजदूर थे जो टेक्सटाइल, कंस्ट्रक्शन और कृषि उद्धोग की मजबूती के लिए तैनात किए थे. 

क्या कहते हैं क्षेत्र के विशेषज्ञ ?
चीन की चाल का अध्यन करने वाले आजाद तिब्बत के नागरिक और शिनजियांग शोधार्थी एड्रिएन झेन के मुताबिक 1966 से 1976 के दशक के बाद ये आजीविका को हथियार बनाकर तिब्बत के लोगों और उनकी संस्कृति को प्रभावित करने के लिए किया गया सबसे बड़ा हमला है.

इसी हफ्ते आई वाशिंगटन से संचालित संस्थान जेम्स टाउन फाउंडेशन (Jamestown Foundation) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए झेन ने कहा कि कामगारों की इतनी बड़े पैमाने पर तैनाती के जरिए मजदूरों की जिंदगी में बदलाव करके उन्हे उनकी जड़ों से काटने की कोशिश हो रही है. 

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आरोपों पर बीजिंग की सफाई
रॉयटर्स  को दिए बयान में चीन के विदेश मंत्रालय ने मजदूरों को धमकाकर उनके प्रवासन और जबरन काम कराने जैसे सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि चीन में कानून का राज चलता है. सभी की नियुक्ति उनकी सहमति और कानूनी दायरे में रहते हुए की गई है. वहीं जबरन मजदूरी कराने जैसे आरोपों से भी चीन ने इंकार किया है

रिपोर्ट प्रकाशित करने वालों का कहना है कि उन्हे उम्मीद है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय चीन में हो रहे इस घटनाक्रम को रोकने के साथ, इस विषय पर बोले जा रहे झूठ से पर्दा उठाएगा. 

चीन की चाल और दोहरी रणनीति
दरअसल जरूरत से ज्यादा मजदूरों की तैनाती करके चीन अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ देश की गरीबी दर को घटाने की मंशा के साथ ये काम कर रहा है लेकिन शिनजियांग और तिब्बत की ज्यादातर आबादी धार्मिक है और नास्तिक चीन इससे कोई इत्तेफाक नहीं रखता इसलिए रोजगार देने के नाम पर बड़े पैमाने पर मजदूरों की तैनाती और सैन्य बल की मौजूदगी के जरिए वहां की संस्कृति को खत्म करने की कोशिश हो रही है. 

चीन ने 1950 में तिब्बत क्षेत्र का नियंत्रण जबरन अपने हाथ में ले लिया था, और तभी से अब तक बीजिंग इसे शांतिपूर्ण उदारवाद का उदाहरण बताते हुए इस क्षेत्र की रहनुमाई का दावा करता आया है. अभी कुछ समय पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नए तिब्बत की संरचना के संकेत दिए थे, माना जा रहा है कि जरूरत से ज्यादा कर्मचारियों की तैनाती शी जिनपिंग की उसी रणनीति का हिस्सा हो सकती है जिसकी तैयारी चीन काफी समय पहले से कर रहा है.

(इनपुट रॉयटर्स से)

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