चीन ने दुनिया को दिखाया अपना 'खतरनाक लेजर हथियार', भारत की सीमा पर कर सकता है तैनात
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चीन ने दुनिया को दिखाया अपना 'खतरनाक लेजर हथियार', भारत की सीमा पर कर सकता है तैनात

खबर के अनुसार, इस प्रणाली को बड़ी आसानी से भारत की सीमा से सटे तिब्बत के पठार और दक्षिण चीन सागर के विवादित द्वीपों में तैनात किया जा सकता है.

चीन ने दुनिया को दिखाया अपना 'खतरनाक लेजर हथियार', भारत की सीमा पर कर सकता है तैनात

बीजिंग : चीन ने नई लेजर रक्षा हथियार प्रणाली का प्रदर्शन किया जो हवा में निशाना लगाकर ड्रोन, निर्देशित बमों और मोर्टार को नष्ट करने में सक्षम है. सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की खबर के अनुसार, दक्षिणी गुआंगदोंग प्रांत के ज्युहाई शहर में आयोजित एयर शो में इस नई प्रणाली का प्रदर्शन किया गया.

खबर के अनुसार, इस प्रणाली को बड़ी आसानी से भारत की सीमा से सटे तिब्बत के पठार और दक्षिण चीन सागर के विवादित द्वीपों में तैनात किया जा सकता है. वाहन चालित इस प्रणाली का नाम ‘‘एलडब्ल्यू 30’’ लेजर रक्षा हथियार प्रणाली है.

इसे देश के सबसे बड़े मिसाइल निर्माताओं में शामिल चीन एरोस्पेस साइंस एंड इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ने विकसित किया है.

इससे पहले बीते जुलाई माह में अमेरिका के एक सैन्य अधिकारी ने खुलासा किया था कि सितंबर 2017 के बाद से अब तक 20 तरह की अलग-अलग घटनाओं में अमेरिकी विमानों को निशाना बनाने के लिए लेजर हथियारों का इस्तेमाल किया गया. सेना प्रवक्ता ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर सीएनएन को बताया था कि ये लेजर किरणें अमेरिकी विमानों पर फ्लैश की गई और इसमें चीन का हाथ होने का अंदेशा है. 

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प्रवक्ता ने कहा कि हालांकि, इस तरह की घटनाओं में कोई घायल नहीं हुआ. अधिकारी ने सीएनएन को बताया कि इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि प्रशांत क्षेत्र में इस्तेमाल में लाए गए लेजर हथियार सैन्य थे या व्यावसायिक लेकिन यकीनन इससे पायलट को नुकसान पहुंच सकता था. हालांकि, इस मामले पर शुक्रवार को नियमित प्रेस ब्रीफिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा: "प्रासंगिक अधिकारियों से हमे जो पता चला, उसके मुताबिक, अमेरिकी मीडिया द्वारा दी गई रिपोर्टों में आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद और बनाए गए हैं. 

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संदिग्ध लेजर हमलों का नवीनतम दौर पूर्वी चीन सागर के आसपास है, जो विवादित द्वीप श्रृंखलाओं का घर माना जाता है. इसमें सेनकाकू समेत जापान और चीन दोनों ने दावा किया है, जहां उन्हें दीओयू के नाम से जाना जाता है. इस क्षेत्र का पानी भारी यातायात- शिपिंग लेन के पास है और इसका इस्तेमाल चीन और जापान दोनों द्वारा किया जाता है. 

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