Pakistan Crisis: आज से करीब 7 साल पहले पाकिस्तान ने जिस प्रोजेक्ट पर सवार होकर विकास की उड़ान भरने का सपना देखा था, आज वही उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गया है. हम बात सीपीईसी की कर रहे हैं. फंड के अभाव में अब यह पूरा होता नहीं दिख रहा है.
Trending Photos
Pakistan Crisis: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लिए उसका सबसे बड़ा प्रोजेक्ट चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) ही उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गया है. आर्थिक संकट से जूझ रहे पाक का यह सपना अब टूटता दिख रहा है. इस सपने के टूटने के पीछे अलग-अलग कई वजहें हैं और इनका समाधान खुद पाकिस्तान के हाथ में भी नहीं है. आइए विस्तार से जानते हैं क्या था सीपीईसी प्रोजेक्ट और कैसे यह पाकिस्तान को और मुसीबत में धकेल रहा है.
अप्रैल 2015 में सीपीईसी शुरू किया गया था. उस वक्त इसे पाकिस्तान के लिए इतिहास-परिभाषित विकास के रूप में उजागर किया गया था. दावा किया गया कि यह पूर देश की तस्वीर बदल देगा. इस कॉरिडोर से पाकिस्तान की विकास दर में सालाना 2.5% की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था. यही नहीं, इससे देश की बिजली की समस्या दूर होने और दूसरे देशों को भी बिजली निर्य़ात करने का सपना देखा गया था. इस प्रोजेक्ट से करीब 23 लाख नौकरियों की बात की गई थी. आज 7 साल बाद ये सब कुछ सपने जैसा ही है. इनमें से कुछ भी सच नहीं हुआ है.
सीपीईसी प्रोजेक्ट अभी तक काफी लेट चल रहा है. 15 सीपीईसी परियोजनाओं में से केवल तीन ही अभी तक पूरे हुए हैं, जबकि इसकी सभी परियोजना को 2018 तक कंप्लीट हो जाना था. अब इसमें फंड की वजह से लगातार देरी हो रही है. इसकी नई और चल रही परियोजनाओं के लिए चीन से कर्ज नहीं मिल रहा है. सीपीईसी के तहत पहले से काम कर रहीं चीनी कंपनियों को लगभग 300 अरब डॉलर (1.59 अरब डॉलर) का भुगतान नहीं मिल सका है. इसे देना पाकिस्तान के लिए अभी असंभव है. देश गहरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. ऐसे में अब सीपीईसी अचानक पाकिस्तानियों को एक बड़े कर्ज की तरह दिखने लगा है.
दरअसल, चीन से मिले कर्ज के पैसों पर CPEC का काम शुरू में तेजी से हुआ. तब सीपीईसी मामलों पर प्रधान मंत्री के विशेष सहायक खालिद मंसूर ने सितंबर 2021 में बताया था कि 15.2 अरब डॉलर की 21 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 9.3 अरब डॉलर की 21 अन्य परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन सीपीईसी का सपना मौजूदा हालात में खत्म होता दिखता है. कई विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान एक गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है. उसके पास देश चलाने के लिए पैसा नहीं है, ऐसे में वह भविष्य की सीपीईसी परियोजनाओं का समर्थन कम से कम 2-3 साल के लिए नहीं कर सकता है. वहीं कुछ एक्सपर्ट इसे काफी लंबी अवधि के लिए असंभव मानते हैं. पाकिस्तान पर 130 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है और देश को सालाना 14 अरब डॉलर सालाना कर्ज की किस्तों (मूल + ब्याज) को देने के लिए चाहिए. अभी पाकिस्तान ये किस्त भी नहीं दे पा रहा है. पाकिस्तान पर श्रीलंका की तरह डिफॉल्टर होने का खतरा मंडरा रहा है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त 2021 में 20 बिलियन डॉलर से घटकर 60% से अधिक घटकर अब 7.5 बिलियन डॉलर हो गया है.
चीन जो पाकिस्तान को खूब कर्ज देता था, अब उसने भी अपने हाथ खींच लिए हैं. वह अपनी ही समस्याओं से जूझ रहा है. कोरोना ने उसके आर्थिक विकास को धीमा कर दिया है. ऐसे में चीन अब सीपीईसी परियोजनाओं सहित पाकिस्तानी ऋणों, उनके पुनर्भुगतान और आगे की ऋण मांगों पर कड़ा रुख अपना रहा है. इसके अलावा पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर होने वाले हमलों से भी स्थिति बिगड़ रही है.