DNA ANALYSIS: कट्टर इस्लाम के खिलाफ ऑस्ट्रिया की सख्त रणनीति, क्या भारत बनाएगा ऐसा कानून?
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DNA ANALYSIS: कट्टर इस्लाम के खिलाफ ऑस्ट्रिया की सख्त रणनीति, क्या भारत बनाएगा ऐसा कानून?

कट्टर इस्लाम के ख़िलाफ़ युद्ध का ऐलान सबसे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने किया था, जिनकी उम्र सिर्फ़ 42 साल है और अब ऑस्ट्रिया के चांसलर सेबेस्टियन कुर्ज भी इस लड़ाई का हिस्सा बन गए हैं. 

DNA ANALYSIS: कट्टर इस्लाम के खिलाफ ऑस्ट्रिया की सख्त रणनीति, क्या भारत बनाएगा ऐसा कानून?

नई दिल्ली: कल हमने आपको बताया था कि यूरोप ने कैसे कट्टर इस्लाम के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी है. यूरोप में कट्टर इस्लाम का सबसे ताज़ा हमला ऑस्ट्रिया ने झेला है.  जहां 10 दिन पहले एक आतंकवादी ने कई लोगों की जान ले ली थी. ऑस्ट्रिया यूरोप के उन देशों में से है जहां 5 वर्ष पहले दिल खोलकर शरणार्थियों का स्वागत किया गया था. लेकिन ऐसा लगता है कि अब ऑस्ट्रिया को अपनी ग़लती का अहसास हो गया है और ऑस्ट्रिया ने कट्टर इस्लाम को रोकने के लिए एक सख़्त रणनीति बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं.

कट्टर इस्लाम के ख़िलाफ़ युद्ध का ऐलान सबसे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने किया था, जिनकी उम्र सिर्फ़ 42 साल है और अब ऑस्ट्रिया के चांसलर सेबेस्टियन कुर्ज भी इस लड़ाई का हिस्सा बन गए हैं. जैसे भारत में प्रधानमंत्री का पद होता है वैसे ही ऑस्ट्रिया और जर्मनी जैसे देशों में चांसलर का पद होता है. ऑस्ट्रिया के चांसलर सिर्फ़ 34 वर्ष के हैं और उन्होंने इतनी कम उम्र में कट्टर इस्लाम के ख़िलाफ़ वो फ़ैसले लेने का साहस दिखाया है जो दुनिया के बड़े बड़े और अनुभवी नेता नहीं ले पाए.

ऑस्ट्रिया के चांसलर के 5 प्रस्ताव
ऑस्ट्रिया के चांसलर ने अपने देश की संसद के सामने 5 प्रस्ताव रखे हैं.

-पहला प्रस्ताव है, आतंकवाद के मामलों में दोषी पाए गए लोगों को आजीवन जेल में रखना. प्रस्ताव के मुताबिक जब तक आतंकवाद फैलाने का दोषी DE-RADICALISED नहीं हो जाता, यानी जब तक उसके मन से कट्टरता ख़त्म नहीं हो जाती उसे जेल में ही रहना होगा.

-दूसरे प्रस्ताव के तहत जिन लोगों को आतंकवाद फैलाने का दोषी पाया गया है उन्हें DIGITAL BRACELETS पहनाए जाएंगे ताकि उन्हें सर्विलांस के दायरे में रखा जा सके.

-तीसरा प्रस्ताव ये है कि इस्लाम की जो विचारधारा राजनीति से प्रभावित है उस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए. इसके साथ ही अगर ऑस्ट्रिया में कोई कट्टर इस्लाम पढ़ाएगा या उसका प्रचार करेगा तो उसे अपराधी माना जाएगा.

-चौथा प्रस्ताव ये है कि ऑस्ट्रिया में मस्जिदों को बंद करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जाएगा, वर्तमान में मस्जिदों को बंद को किया जा सकता है लेकिन इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है.

-पांचवें प्रस्ताव के मुताबिक जो लोग पहले आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रह चुके हैं और जेल से बाहर आ चुके हैं. उन्हें आतंकवादी हमले का अलर्ट मिलते ही फिर से जेल में डाला जा सकेगा.

फिलहाल दो लक्ष्य हासिल करना चाहता है ऑस्ट्रिया
ऑस्ट्रिया फिलहाल दो लक्ष्य हासिल करना चाहता है, पहला उन लोगों को रोकना जिन पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का शक है और दूसरा ऐसे लोगों को उकसाने वाली विचारधारा को समाप्त करना.

ऑस्ट्रिया बहुत सख़्ती के साथ आतंकवाद और कट्टर इस्लाम से निपटने जा रहा है. लेकिन आप सोचिए अगर भारत में इस तरह के कानून बनाए जाते तो उसका कितने बड़े पैमाने पर विरोध होता? भारत में इस समय आतंकवाद के ख़िलाफ़ जितने कानून मौजूद हैं, विपक्षी पार्टियां उनका समय समय पर विरोध करती रही हैं लेकिन ऑस्ट्रिया में सभी राजनैतिक दल इस मुद्दे पर एक साथ आ गए हैं.

ऑस्ट्रिया ने इस समस्या का अनुमान पहले ही लगा लिया था
ऑस्ट्रिया में 300 लोगों ने आतंकवादी संगठन ISIS ज्वॉइन किया है. ऑस्ट्रिया की आबादी 88 लाख है और ऑस्ट्रिया ने सिर्फ 300 लोगों के आतंकवादी बन जाने की घटना को कितनी गंभीरता से लिया है.

हालांकि ऑस्ट्रिया ने इस समस्या का अनुमान पहले ही लगा लिया था. आज से लगभग 108 वर्ष पहले वर्ष 1912 में ही ऑस्ट्रिया ने एक कानून बनाया था. जिसमें राज्य और मुस्लिम समुदाय के बीच के संबंधों को नियंत्रित किया गया था. वर्ष 2015 में ऑस्ट्रिया ने इसी कानून को संशोधित किया था. इस संशोधन के तहत ऑस्ट्रिया की मस्जिदों के मौलवियों के लिए जर्मन भाषा का ज्ञान अनिवार्य कर दिया गया था.

यूरोप के देश आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट हुए
यूरोप के देश अब जाकर आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट हुए हैं. आतंकवाद को रोकने के लिए यूरोप के देश खुली सीमाओं को बंद करने और उन्हें नियंत्रित करने पर भी विचार कर रहे हैं , ताकि कोई कट्टरपंथी या आतंकवादी उनके देश में न आ पाए और ऐसे जो लोग अंदर आ चुके हैं उनकी एक वॉच लिस्ट तैयार की जा रही है. फ्रांस ऐसे 8000 लोगों की लिस्ट तैयार कर चुका है, जिन पर निगरानी रखी जाएगी. यूरोप के देश इंटरनेट पर भी नज़र रखने की योजना पर काम कर रहे हैं, क्योंकि आजकल युवाओं को कट्टर बनाने के लिए इंटरनेट का ही सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है. यूरोप की सरकारें अपने लोगों के Encrypted Messages भी पढ़ना चाहती हैं लेकिन आशंका जताई जा रही है कि यूरोप के लोग इसका ज़ोरदार विरोध कर सकते हैं.

ऑस्ट्रिया और फ्रांस अगले महीने से ही इस संबंध में कानून लाने वाले हैं और अगर ये कानून सफल रहे तो ये पूरी दुनिया के लिए एक टेम्पलेट साबित हो सकते हैं. डेनमार्क में भी मुस्लिम समुदाय के बच्चों के लिए एक कानून बनाया गया है. इस कानून के तहत मुस्लिम परिवार के बच्चों के लिए हफ्ते में कम से कम 25 घंटे अपने माता पिता से दूर रहना अनिवार्य है. इन 25 घंटों के दौरान इन बच्चों को डेनमार्क के बारे में बताया जाता है और इन्हें क्रिसमस और ईस्टर जैसे त्योहारों की जानकारी दी जाती है.

फाइनेशिंयल एक्शन टास्क फोर्स जैसी संस्थाओं को  निभानी होगी सक्रिय भूमिका
डेनमार्क एक सेकुलर देश हैं, लेकिन वहां की सरकार मुस्लिम बच्चों को डेनमार्क की भाषा के साथ वहां के त्योहारों के बारे में भी बताना चाहती है. डेनमार्क की सरकार के मुताबिक ऐसा करके वो इन बच्चों को अपने देश की सेकुलर संस्कृति के बारे में बताना चाहती है. लेकिन यूरोप के देशों को ये समझना होगा कि सिर्फ़ अपने देशों में आतंकवाद के ख़िलाफ़ कानून बनाकर इसे नहीं रोका जा सकता, बल्कि दुनिया के इन देशों को इस समस्या की जड़ में जाना होगा. जो देश आतंकवाद फैलाते हैं उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करनी होगी. उदाहरण के लिए पाकिस्तान. दुनिया को चाहिए कि पाकिस्तान जैसे देशों के साथ संबंध ख़त्म किए जाएं और उन्हें अलग थलग कर दिया जाए. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और फाइनेशिंयल एक्शन टास्क फोर्स जैसी संस्थाओं को इसमें सक्रिय भूमिका निभानी होगी.

कट्टर इस्लाम को अपना राजनैतिक हथियार बना रहे
वर्ष 2018 में आतंकवाद की वजह से 33 हज़ार लोगों की जान गई थी लेकिन इस साल 169 देशों के समर्थन के साथ पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की मानव अधिकार परिषद में शामिल कर लिया गया यानी जो देश आतंकवाद के ज़रिए लोगों के मानव अधिकारों का उल्लंघन करते हैं उन्हें ही इसकी रक्षा करने वाली संस्था का सदस्य बना दिया जाता है. इसलिए दुनिया को पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों से जवाब मांगना होगा जो आतंकवाद और कट्टर इस्लाम को अपना राजनैतिक हथियार बना रहे हैं. सिर्फ़ मस्जिदों पर ताला लगाने से ये समस्या ख़त्म नहीं होगी, बल्कि ये समस्या खत्म होगी, इमरान खान, अर्दोआन और महातिर मोहम्मद जैसे नेताओं का बहिष्कार करने से. दोहरे मापदंड अपनाकर दुनिया का कोई देश खुद को और दूसरों को आतंकवाद और कट्टर इस्लाम से नहीं बचा सकता .

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