DNA ANALYSIS: आर्मेनिया और अजरबैजान में जंग से 'महायुद्ध' का खतरा!
Advertisement

DNA ANALYSIS: आर्मेनिया और अजरबैजान में जंग से 'महायुद्ध' का खतरा!

सोवियत संघ से अलग होकर बने देश आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध बढ़ता जा रहा है. अब तुर्की भी इस युद्ध में शामिल हो गया है. तुर्की के F16 फाइटर जेट ने आर्मेनिया के एक सुखोई फाइटर जेट को मार गिराया है. 

DNA ANALYSIS: आर्मेनिया और अजरबैजान में जंग से 'महायुद्ध' का खतरा!

नई दिल्ली: सोवियत संघ से अलग होकर बने देश आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध बढ़ता जा रहा है. अब तुर्की भी इस युद्ध में शामिल हो गया है. तुर्की के F16 फाइटर जेट ने आर्मेनिया के एक सुखोई फाइटर जेट को मार गिराया है. आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने इस हमले की पुष्टि की है. इस हमले में आर्मेनिया के पायलट की मौत हो चुकी है. आर्मेनिया का दावा है कि इस F-16 फाइटर जेट ने अजरबैजान की सीमा से उड़ान भरी. हालांकि टर्की ने इस हमले से इनकार किया है.

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच विवादित इलाका

आर्मेनिया और अजरबैजान बहुत छोटे देश हैं, लेकिन इस युद्ध को लेकर दुनिया दो हिस्सों में बंटती जा रही है. रूस और फ्रांस जैसे देश आर्मेनिया का समर्थन कर रहे हैं, जबकि तुर्की, अजरबैजान का समर्थन कर रहा है. इसलिए आशंका जताई जा रही है कि कहीं तनाव बढ़ा तो ये बड़े युद्ध का रूप न ले ले. 

- आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच एक विवादित इलाका है, जिसे नागोरनो-काराबाख कहा जाता है.

- अजरबैजान इसे अपना इलाका मानता है. हालांकि वर्ष 1994 से इस पर आर्मेनिया का कब्जा है.

- पिछले 2 दिन में युद्ध में लगभग 100 लोगों की मौत हो चुकी है और 200 से अधिक घायल हैं, इनमें सैनिक और नागरिक दोनों शामिल हैं.

- दोनों देश इस युद्ध में ड्रोन्स, लड़ाकू विमान, टैंकों और तोपखाने का इस्तेमाल कर रहे हैं.

तुर्की शुरू से ही अजरबैजान की सेना के साथ युद्ध में शामिल
आर्मेनिया का दावा है कि तुर्की शुरू से ही अजरबैजान की सेना के साथ युद्ध में शामिल हैं. दोनों देशों के बीच एक इंफॉर्मेशन वॉर यानी सूचना युद्ध भी चल रहा है. स्वतंत्र रूप से इन दावों की पुष्टि संभव नहीं है. इसलिए हमने अलग-अलग स्रोतों से इस युद्ध से बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा की है. अब तक ये युद्ध नागोरनो-काराबाख के इलाके में सीमित है, लेकिन डर है कि अब ये दूसरे इलाकों में भी फैल सकता है. यानी सीमित युद्ध के बाद एक फुल स्केल यानी पूर्ण युद्ध की शुरुआत हो सकती है. इससे पहले वर्ष 2016 में भी आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें लगभग 200 लोगों की मौत हुई थी.

अब आपको बताते हैं कि ये दोनों देश युद्ध क्यों कर रहे हैं?

- वर्ष 1991 में सोवियत संघ टूटने के बाद आर्मेनिया और अजरबैजान को आजादी मिली थी.

- तब सोवियत संघ ने नागोरनो-काराबाख का इलाका अजरबैजान को सौंप दिया था.

- 1980 के दशक में नागोरनो-काराबाख की संसद ने खुद को आर्मेनिया का हिस्सा बनाने के लिए वोट किया.

- इसके बाद संघर्ष में 30 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई और 10 लाख से अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा.

- वर्ष 1994 में आर्मेनिया की सेना ने नागोरनो-काराबाख पर कब्जा कर लिया था.

- नागोरनो-काराबाख का क्षेत्रफल करीब 44 सौ वर्ग किलोमीटर है. वहां की ज्यादातर आबादी ईसाई है, ये लोग आर्मेनिया के साथ रहना चाहते हैं और वहां के मुस्लिम तुर्क अजरबैजान का हिस्सा बनना चाहते हैं. अजरबैजान की जनसंख्या में मुसलमान बहुसंख्यक हैं.

fallback

ईसाई और मुस्लिम धर्मों के बीच वर्चस्व की लड़ाई
आर्मेनिया और अजरबैजान की लड़ाई को ईसाई और मुस्लिम धर्मों के बीच वर्चस्व की लड़ाई माना जा रहा है. हालांकि कई देश अपने-अपने हितों के हिसाब से समर्थन या विरोध कर रहे हैं.

तुर्की इस युद्ध में अजरबैजान का साथ दे रहा है. अजरबैजान में बड़ी संख्या में टर्किश मूल के लोग हैं. आर्मेनिया ने तुर्की पर हालात को बिगाड़ने का आरोप लगाया है.

- तुर्की के साथ पाकिस्तान ने भी अजरबैजान को अपना समर्थन दिया है. तुर्की और पाकिस्तान मिलकर खुद को दुनिया के मुस्लिम देशों का नेता साबित करना चाहते हैं.

- ईरान ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता का ऑफर दिया है. ईरान के आर्मेनिया के साथ करीबी रिश्ते हैं. ईरान और अजरबैजान पड़ोसी देश हैं और माना जाता है कि ईरान नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी ताकतवर हो.

- जॉर्जिया की सीमा आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों देशों से मिलती है. जॉर्जिया की 88 प्रतिशत जनसंख्या ईसाई है, लेकिन तुर्की के साथ गहरे संबंधों की वजह से जॉर्जिया ने मुस्लिम बाहुल्य देश अजरबैजान का साथ दिया है.

- फ्रांस ने दोनों देशों को बातचीत का रास्ता अपनाने की सलाह दी है. फ्रांस में आर्मेनिया से आए लोगों की संख्या काफी अधिक है.

- रूस और आर्मेनिया के संबंध बहुत अच्छे हैं. आर्मीनिया में रूस का एक मिलिट्री बेस भी है. हालांकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के अजरबैजान से भी अच्छे संबंध हैं इसलिए उन्होंने दोनों देशों से युद्धविराम की अपील की है.

- अमेरिका ने हिंसा छोड़कर, दोनों देशों को शांतिवार्ता करने की सलाह दी है.

धर्म के आधार पर अब तक आर्मेनिया को मदद नहीं मिली
ईसाई आबादी वाले आर्मेनिया को दुनिया के सबसे प्राचीन देशों में एक माना जाता है. हालांकि धर्म के आधार पर अब तक आर्मेनिया को मदद नहीं मिली है.

हर एक देश अपनी विदेश नीति के हिसाब से आर्मेनिया या अजरबैजान में से किसी एक देश को समर्थन दे रहा है. भारत के इन दोनों देशों से अच्छे संबंध हैं. इसलिए भारत के लिए ये एक धर्म-संकट की स्थिति है.

- इसी वर्ष भारत ने आर्मेनिया को वेपन लोकेटिंग रडार बेचा था. इस रडार की मदद से दुश्मन की लोकेशन का सही-सही पता लगाया जा सकता है.

- जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद आर्मेनिया ने भारत का साथ दिया था. जबकि अजरबैजान कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थक रहा है.

- भारत के साथ मजबूत संबंध आर्मेनिया के लिए भी जरूरी हैं. अजरबैजान, तुर्की और पाकिस्तान के गठबंधन का मुकाबला करने के लिए आर्मेनिया को भारत की जरूरत है.

- भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए अजरबैजान पर भी निर्भर है. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि भारत में तेल या गैस की कीमतें बढ़ने वाली हैं. यानी अभी भारत पर इस युद्ध का कोई असर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन तनाव और बढ़ा तो तेल और गैस के दाम बढ़ सकते हैं.

ये भी देखें-

Trending news