अमेरिका की मंगल क्रांति में डॉक्टर स्वाति मोहन की भूमिका को शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता. उन्होंने असंभव से दिखने वाले मंगल मिशन को संभव कर दिखाया.
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नई दिल्ली: अब हम एक ऐसे संवाद का विश्लेषण करेंगे, जो आपको भारत के गौरव की लंबी यात्रा पर ले जाएगा क्योंकि, ये संवाद भारत से 13 हजार 568 किलोमीटर दूर अमेरिका में आया है, जहां राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 4 मार्च को अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों को मंगल मिशन के लिए बधाई दी और इस दौरान उनका डॉक्टर स्वाति मोहन के साथ भी संवाद हुआ, जिन्हें आजकल भारत के लोग, बिंदी वाली महिला भी कह रहे हैं.
डॉक्टर स्वाति मोहन ने NASA के मंगल मिशन के नेविगेशन एंड कंट्रोल ऑपरेशंस को लीड किया और मंगल ग्रह पर NASA के अंतरिक्ष यान की सफल लैंडिंग कराई. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसके लिए डॉक्टर स्वाति मोहन को बधाई दी और दोनों के बीच बहुत दिलचस्प बातें हुईं.
डॉक्टर स्वाति मोहन के साथ हुए इस संवाद में जो बाइडेन ने कहा कि अमेरिका के विकास में भारतीय मूल के लोगों का अहम योगदान है और इसके लिए उन्होंने डॉक्टर स्वाति मोहन, अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और राष्ट्रपति का भाषण लिखने वाले विनय रेड्डी का ज़िक्र किया. ये तीनों ही भारतीय मूल के हैं. जो बाइडेन की इन बातों से आप अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की असली ताक़त को समझ कर सकते हैं.
अमेरिका की मंगल क्रांति में डॉक्टर स्वाति मोहन की भूमिका को शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता. उन्होंने असंभव से दिखने वाले मंगल मिशन को संभव कर दिखाया और सबसे अहम बात ये कि जब वो इस मिशन को लीड कर रही थी, तब भी उनके माथे पर बिंदी थी और जब उन्होंने जो बाइडेन से बात की, तब भी ये बिंदी इसी तरह पूरी दुनिया को दिख रही थी. इससे आप समझ सकते हैं कि NASA के कदम मंगल ग्रह पर जमाने वाली डॉक्टर स्वाति मोहन आज भी भारतीय संस्कृति को भूली नहीं हैं.
हालांकि आज का हमारा ये विश्लेषण सिर्फ डॉक्टर स्वाति मोहन के बारे में नहीं है. ये उन सभी लोगों को समर्पित है, जो भारत से दूर रहकर भी भारत के गौरव को नई ऊर्जा दे रहे हैं. इसे आप कुछ आंकड़ों से समझिए.
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की कुल आबादी लगभग 28 लाख है, जो वहां की कुल आबादी के 1 प्रतिशत से भी कम है, लेकिन इसके बावजूद भारतीय मूल के लोग अपनी मेहनत और काबिलियत से अमेरिका के विकास में अहम योगदान दे रहे हैं.
अमेरिका के थिंक टैंक Pew Research Center के मुताबिक, भारतीय मूल के लोग अमेरिका के सबसे शिक्षित समाज की श्रेणी में आते हैं. पूरे अमेरिका में 25 वर्ष या उससे कम उम्र के मात्र 28 प्रतिशत लोगों के पास ही ग्रेजुएशन की डिग्री है. लेकिन इस डिग्री को हासिल करने वाले भारतीय मूल के लोगों का आंकड़ा 70 प्रतिशत है. भारतीय मूल के लोगों के बाद कोरियन मूल के लोग सबसे ज्यादा शिक्षित समाज की श्रेणी में आते हैं और इनकी संख्या 53 प्रतिशत है.
2008 में राज्य सभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, अमेरिका के 12 प्रतिशत वैज्ञानिक, NASA के 34 प्रतिशत वैज्ञानिक और अमेरिका के 38 प्रतिशत डॉक्टर भारतीय मूल के हैं. ये आंकड़ा 13 वर्ष पुराना हैं, यानी आप खुद सोच सकते हैं कि ये संख्या अब वहां कितनी बढ़ चुकी होगी. इसे आप कुछ और आंकड़ों से समझिए-
दुनिया की सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों में से एक माइक्रोसॉफ्ट के 34 प्रतिशत कर्मचारी, IBM के 28 प्रतिशत, INTEL के 17 प्रतिशत और Xerox के 13 प्रतिशत कर्मचारी, अमेरिका में भारतीय मूल के हैं. यही नहीं भारतीय मूल के लोग इनमें से कई कंपनियों का नेतृत्व भी कर रहे हैं.
-सुंदर पिचाई Google के CEO हैं.
-सत्य नडेला Microsoft के CEO हैं.
-अजय पाल सिंह बंगा Master Card के CEO हैं
-शांतनु नारायण Adobe कम्पनी के CEO हैं.
-और अरविंद कृष्ण IBM के CEO हैं.
यहां एक रोचक तथ्य ये भी है कि अमेरिका की बाइडेन सरकार में अब तक भारतीय मूल के रिकॉर्ड 55 लोगों को जगह मिल चुकी है और ध्यान देने वाली बात ये है कि इन 55 लोगों में अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम नहीं है क्योंकि, वो चुनाव जीत कर सरकार का हिस्सा बनी हैं.