DNA ANALYSIS: अगली छुट्टियां अंतरिक्ष में मनाना चाहेंगे? खर्च करने होंगे इतने रुपये
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DNA ANALYSIS: अगली छुट्टियां अंतरिक्ष में मनाना चाहेंगे? खर्च करने होंगे इतने रुपये

रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी स्पेस टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 17 वर्षों से इस योजना पर काम कर रही है. स्पेस टूरिज्म के लिए खास तौर पर अमेरिका के न्यू मेक्सिको में दुनिया का पहला स्पेस पोर्ट बनाया गया है और यहीं से वर्जिन गैलेक्टिक के स्पेस शिप ने अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी. 

DNA ANALYSIS: अगली छुट्टियां अंतरिक्ष में मनाना चाहेंगे? खर्च करने होंगे इतने रुपये

नई दिल्ली: आज हम आपको भविष्य के एक ऐसे हॉलीडे डेस्टिनेशन के बारे में बताएंगे, जिसकी दिल्ली से दूरी सिर्फ 408 किलोमीटर है, जबकि अभी दिल्ली से मनाली जाने के लिए भी आपको 500 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है.

  1. दुनिया की तीन बड़ी कंपनियों के बीच स्पेस टूरिज्म को लेकर एक नई जंग की शुरुआत.
  2. रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी एक अंतरिक्ष यात्री से 2 करोड़ रूपये चार्ज करेगी.
  3. इस कंपनी के पास अभी से 600 से ज्यादा कस्टमर्स हैं.
  4.  

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जल्द ही बन सकता है नया टूरिस्ट स्पॉट 

हम अंतरिक्ष की बात कर रहे हैं, जहां मौजूद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जल्द ही नया टूरिस्ट स्पॉट बन सकता है. 11 जुलाई की रात जब भारत के लोग सोने की तैयारी कर रहे थे, तब ब्रिटेन के अरबपति कारोबारी रिचर्ड ब्रैनसन ने वीएसएस यूनिटी (VSS Unity) नाम के एक स्पेस क्राफ्ट से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी. इस अंतरिक्ष यान का निर्माण उन्हीं की स्पेस कंपनी ने किया, जिसका नाम है-  वर्जिन गैलेक्टिक( Virgin Galactic).

इस सफलता के साथ ही 70 साल के रिचर्ड ब्रैनसन और उनकी कंपनी ने स्पेस टूरिज्म के क्षेत्र में बढ़त हासिल कर ली है. आज से 8 दिन बाद यानी 20 जुलाई को दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति और अमेजन कंपनी के मालिक जेफ बेजोस अपनी स्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन के स्पेस क्राफ्ट से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरेंगे.

रिचर्ड ब्रैनसन के साथ इस उड़ान में उनकी कंपनी के तीन अधिकारी और दो पायलट भी शामिल थे. इनमें भारतीय मूल की सिरिशा बांदला भी थी, जो रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर हैं.

17 वर्षों की मेहनत

रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी स्पेस टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 17 वर्षों से इस योजना पर काम कर रही है. स्पेस टूरिज्म के लिए खास तौर पर अमेरिका के न्यू मेक्सिको में दुनिया का पहला स्पेस पोर्ट बनाया गया है और यहीं से वर्जिन गै​लेक्टिक के स्पेस शिप ने अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी. जिस तरह विमानों के लिए एयरपोर्ट्स होते हैं, उसी तरह से दुनिया के अलग अलग देशों में अंतरिक्ष में जाने वाले रॉकेट्स के लिए स्पेस पोर्ट्स बनाए जा रहे हैं.

लॉन्चिंग से लेकर वापस पृथ्वी पर लैंडिंग तक इस उड़ान की अवधि 90 मिनट थी, लेकिन स्पेस शिप वीएसएस यूनिटी (VSS Unity) सिर्फ चार मिनटों तक ही अंतरिक्ष में रहा. जहां तक ये अंतरिक्ष यान पहुंचा उसे सब ऑर्बिटल स्पेस कहते हैं.

इसके लिए पहले इस अंतरिक्ष यान को एक कैरियर प्लेन की मदद से पृथ्वी से 50 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचाया गया. इसके बाद ये अंतरिक्ष यान, इसे इतनी ऊंचाई तक ले जाने वाले प्लेन से अलग हो गया और आगे की यात्रा इसने रॉकेट्स की मदद से पूरी की. जब पायलट्स ने इस अंतरिक्ष यान के रॉकेट्स को दागा, तो इसकी स्पीड ध्वनि की रफ्तार से भी तीन गुना ज्यादा हो गई. एक प्राइवेट जेट के आकार वाला ये अंतरिक्ष यान 3 हजार 701 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड के साथ पृथ्वी से 86 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा.

वैसे तो पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बाहर जाने के लिए 40 हजार किलोमीटर किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड जरूरी होती है, लेकिन सब-ऑर्बिटल स्पेस फ्लाइट्स के लिए ये स्पीड जरूरी नहीं है. पृथ्वी से 100 किलोमीटर की ऊंचाई तक को सब-ऑर्बिटल स्पेस कहा जाता है. इस ऊंचाई तक पहुंच जाने के बाद भी पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पूरी तरह खत्म नहीं होती. फिर भी सब-ऑर्बिटल स्पेस क्राफ्ट में सवार अंतरिक्ष यात्री भारहीनता का कुछ हद तक वैसा ही अनुभव करते हैं, जैसा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की यात्रा करने वाले एस्ट्रोनॉट्स को होता है.

अंतरिक्ष में करीब 4 मिनट तक रहने के बाद रिचर्ड ब्रैनसन का ये अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष के किनारे को छूकर वापस आ गया.

जिन 6 लोगों ने वर्जिन गैलेक्टिक के स्पेस क्राफ्ट से अंतरिक्ष की उड़ान भरी, उनमें भारतीय मूल की सिरिशा बांदला भी शामिल हैं. सिरिशा बांदला कल्पना चावला और सुनिता विलियम्स के बाद अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की तीसरी महिला हैं.

34 वर्ष की सिरिशा मूल रूप से भारत के आंध्र प्रदेश की रहने वाली हैं. सिरिशा 4 वर्ष की उम्र में अमेरिका चली गई थीं. वो और उनका परिवार अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में रहता है. जहां अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA का स्पेस सेंटर भी है. इसलिए इस शहर में रहते हुए सिरिशा की अंतरिक्ष और रॉकेट्स में दिलचस्पी जागी और वो ब्रैनसन की कंपनी में इतने बड़े पद पर पहुंची. सिरिशा इस कंपनी में रिसर्च ऑपरेशन का काम देखती हैं.

स्पेस टूरिज्म को लेकर नई जंग की शुरुआत

जैसा कि हमने आपको बताया कि रिचर्ड ब्रैनसन के बाद अब 20 जुलाई को दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस भी अपनी ही कंपनी के स्पेस क्राफ्ट से अंतरिक्ष में जाएंगे. इसके अलावा दुनिया के दूसरे सबसे अमीर उद्योगपति एलन मस्क की स्पेस कंपनी भी इस साल के आखिर तक आम लोगों को अंतरिक्ष में ले जाने की शुरुआत करेगी. यानी इस साल के अंत तक दुनिया की तीन बड़ी कंपनियों के बीच स्पेस टूरिज्म को लेकर एक नई जंग की शुरुआत हो जाएगी.

इसलिए अब आप ये जान लीजिए कि इन कंपनियों के ये स्पेस मिशन एक दूसरे से कितने अलग हैं और दुनिया के ये बड़े कारोबारी आखिर अब अंतरिक्ष यात्राओं का प्राइवे​टाइजेशन क्यों करना चाहते हैं?

रिचर्ड ब्रैनसन अपनी कंपनी के जिस स्पेस क्राफ्ट से अंतरिक्ष में गए वो एक प्राइवेट जेट के आकार का है, जिसका नाम वीएसएस यूनिटी है. इसमें अधिकतम 8 लोग बैठ सकते हैं. इस स्पेस क्राफ्ट को एक कैरियर प्लेन की मदद से एक निश्चित ऊंचाई तक पहुंचाया जाता है और इसके आगे की यात्रा ये स्पेस क्राफ्ट रॉकेट्स की मदद से करता है. ये पृथ्वी से अधिकम 80 से 90 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक पहुंचने में सक्षम है.

जबकि जेफ बेजोस की कंपनी के स्पेस क्राफ्ट का नाम न्यू शेपर्ड है. इसका आकार पारंपरिक रूप से अंतरिक्ष में जाने वाले स्पेस क्राफ्ट जैसा है, जिन्हें कैप्सूल जाता है. इसे पृथ्वी से अंतरिक्ष तक एक रॉकेट की मदद से पहुंचाया जाएगा और अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद कैप्सूल और रॉकेट अलग अलग हो जाएंगे. रॉकेट वापस पृथ्वी पर लौट आएगा जबकि कैप्सूल कुछ मिनटों तक अंतरिक्ष में रहेगा. इसमें 6 लोग एक साथ बैठ सकते हैं और इसमें कोई पायलट नहीं होगा यानी इसकी उड़ान पूरी तरह से ऑटोमैटिक होगी. ये पृथ्वी से 100 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर जाएगा और कुछ मिनटों के बाद पैराशूट की मदद से पृथ्वी पर वापस लैंड करेगा.

जबकि एलन मस्क की कंपनी ने प्राइवेट अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने के लिए जो स्पेस क्राफ्ट तैयार किया है, उसका नाम ड्रैगन कैप्सूल है. अंतरिक्ष यात्रा के मामले में स्पेस एक्स बाकी की दोनों कंपनियों से ज्यादा अनुभवी है. स्पेस एक्स के रॉकेट्स अंतरिक्ष यात्रियों को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक ले जाने में सक्षम हैं. पिछले साल दो बार स्पेस एक्स ने Falcon 9 रॉकेट की मदद से ड्रैगन कैप्सूल को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भेजा था. दोनों बार इसमें NASA के अंतरिक्ष यात्री सवार थे, लेकिन इस बार स्पेस एक्स दुनिया के बड़े बड़े उद्योगपतियों को अंतरिक्ष की सैर का मौका देना चाहता है.

अंतरिक्ष की सैर के लिए कितना पैसा खर्च करना पड़ेगा?

अब आपको बताते हैं कि प्राइवेट स्पेस कंपनियों की मदद से अंतरिक्ष की सैर करने के लिए पैसा कितना खर्च करना पड़ेगा ?

रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी इसके लिए एक अंतरिक्ष यात्री से 2 करोड़ रूपये चार्ज करेगी. इस कंपनी के पास अभी से 600 से ज्यादा कस्टमर्स हैं और इनमें अमोरिकी पॉप स्टार जस्टिन बीबर से लेकर हॉलीवुड अभिनेता लियानार्डो डी केप्रियो जैसे लोगों के नाम शामिल हैं.

जेफ बेजोस की कंपनी के स्पेसक्राफ्ट में एक सीट बुक कराने के लिए आपको एक करोड़ 60 लाख रुपये खर्च करने होंगे.

एलन मस्क की कंपनी इसी काम के लिए कितना चार्ज करेगी इस बात का अभी खुलासा नहीं हुआ है.

ब्रैनसन की कामयाबी पर एलन मस्क ने उन्हें बधाई दी थी और जेफ बेजोस ने भी इस फ्लाइट से पहले ब्रैनसन को अपनी शुभकामनाएं दी थीं, लेकिन इस फ्लाइट की कामयाबी के बाद जेफ बेजोस की कंपनी ने जो किया वो आज आपको हैरान कर देगा.

आपने अखबारों में गाड़ियों के विज्ञापन तो जरूर देखें होंगे और ये भी देखा होगा कि एक कंपनी अपनी कार की तुलना दूसरी कंपनी की कार से करके ये बताती है कि कैसे उसकी गाड़ी ज्यादा सुरक्षित, ज्यादा आधुनिक और ज्यादा माइलेज देने वाली है. ठीक वैसे ही स्पेस रेस के शुरू होते ही इन स्पेस कंपनियों ने भी अपने अपने अंतरिक्ष यानों की खूबियां बतानी शुरू कर दी हैं.

जेफ बेजोस की कंपनी का मार्केटिंग कैम्पेन 

इसके लिए जेफ बेजोस की कंपनी ने एक मार्केटिंग कैम्पेन भी शुरू कर दिया है और विज्ञापन जारी करके बताया जा रहा है कि कैसे इस कंपनी के रॉकेट और अंतरिक्ष यान रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी के रॉकेट और अंतरिक्ष यान से बेहतर है.

-इस विज्ञापन में लिखा है कि ब्लू ओरिजिन का स्पेस क्राफ्ट पृथ्वी से 100 किलोमीटर और इससे भी ज्यादा ऊंचाई तक उड़ सकता है,  जबकि वर्जिन गैलेक्टिक 80 से 90 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर जाने में ही सक्षम है.

-विज्ञापन में आगे लिखा है कि वर्जिन गैलेक्टिक ऊंचाई पर उड़ने में सक्षम के प्लेन से ज्यादा कुछ नहीं है, जबकि ब्लू ओरिजिन का न्यू शेपर्ड स्पेस क्राफ्ट रॉकेट की मदद से उड़ता है.

-वर्जिन गैलेक्टिक के स्पेस क्राफ्ट वीएसएस यूनिटी की विंडोज बहुत छोटी हैं, जबकि न्यू शेपर्ड अपनी श्रेणी में सबसे बड़ी विंडोज के साथ आता है.

-वीएसएस यूनिटी में इमरजेंसी एस्केप सिस्टम नहीं है, जबकि न्यू शेपर्ड में एस्केप सिस्टम मौजूद है.

-वीएसएस यूनिटी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, जबकि ब्लू ओरिजिन का न्यू शेपर्ड अंतरिक्ष यान एनवॉयरमेंट फ्रेंडली है.

नई स्पेस रेस का नुकसान 

हालांकि इस नई स्पेस रेस का एक नुकसान ये हो सकता है कि जिस तरह का ट्रैफिक जाम सड़कों पर लगता है वैसा ही ट्रैफिक जाम अंतरिक्ष में लगने की आशंका है. शायद इसीलिए ये सभी प्राइवेट कंपनियां अपनी अपनी स्पेस फ्लाइट्स के लिए डेडिकेटेड रूट्स बनाने पर काम कर रही हैं. इसके अलावा पृथ्वी की कक्षा और अंतरिक्ष में इस समय हजारों सैटेलाइट्स भी मौजूद हैं.

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स के मुताबिक, अंतरिक्ष में अभी तक 11 हजार से ज्यादा सैटेलाइट्स को लॉन्स किया जा चुका है. जिनमें से करीब साढ़े सात हजार सैटेलाइट्स अभी एक्टिव हैं, जबकि बाकी के सैटेलाइट्स या तो जलकर नष्ट हो चुके हैं या मलवे की शक्ल में अभी भी अंतरिक्ष में घूम रहे हैं. इनमें से कुछ सैटेलाइट्स के टुकड़े आकार में बहुत बड़े हैं और उनका पृथ्वी से टकराने का खतरा बना रहता है.

पहली क​मर्शियल स्पेस फ्लाइट के लिए टिकट की नीलामी 

कुछ दिनों पहले जेफ बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन ने पहली क​मर्शियल स्पेस फ्लाइट के लिए टिकट की नीलामी की थी, जिसे एक उद्योगपति ने 205 करोड़ रुपये में खरीदा है, ये व्यक्ति कौन है, इसकी अभी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है. 20 जुलाई को जेफ बेजोस के साथ जो लोग अंतरिक्ष में जाएंगे. उनमें इस अनाम उद्योगपति के अलावा जेफ बेजोस के भाई मार्क और 82 साल की वैली फंक नाम की एक महिला होंगी. वैली फंक उन 13 महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने 1960 के दशक में अंतरिक्ष यात्रा पर जाने की ट्रेनिंग ली थी. तब वो अंतरिक्ष में नहीं जा पाईं थी, लेकिन इस बार अगर वो सफल रहीं तो वो अंतरिक्ष में जानी वाली सबसे बुजुर्ग अंतरिक्ष यात्री बन जाएंगी.

ISRO जैसे सरकारी अंतरिक्ष संस्थानों का क्या होगा?

इस नई स्पेस रेस के शुरू हो जाने से, लोगों के मन में ये सवाल भी उठ रहा है कि अब ISRO जैसे सरकारी अंतरिक्ष संस्थानों का क्या होगा ? ISRO को बहुत कम कीमत में स्पेस मिशन लॉन्च करने के लिए जाना जाता है, लेकिन हो सकता है कि आने वाले दिनों में ISRO जैसे सरकारी अंतरिक्ष संस्थानों के लिए इस रेस में टिकना मुश्किल हो जाए.

इसे आप एक उदाहरण के जरिए समझिए. ISRO ने नवंबर 2013 में मंगलयान को लॉन्च किया था, इसने पृथ्वी से मंगल की कक्षा तक पहुंचने के लिए 65 करोड़ किलोमीटर का सफर तय किया था. इस मिशन की कुल लागत 450 करोड़ रुपये थी. इस हिसाब से मंगल यान को मंगल की कक्षा तक पहुंचाने में 7 रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आया था. जबकि वर्जिन गैलेक्टिक के स्पेस क्राफ्ट से पृथ्वी से 86 किलोमीटर ऊपर जाने के लिए प्रति व्यक्ति 2 करोड़ रुपये चुकाने होंगे. इसके एक स्पेस क्राफ्ट में अधिकतम 6 लोग बैठ सकते हैं. यानी इसके एक मिशन की लागत होगी 12 करोड़ रुपये और प्रति किलोमीटर की यात्रा का खर्च आएगा 14 लाख रुपये.

लेकिन जैसे-जैसे प्राइवेट स्पेस कंपनियां अपनी उड़ानों की संख्या बढ़ाएंगी, वैसे वैसे इसकी लागत में भी कमी आने लगेगी. 2001 में अमेरिकी उद्योगपति डेनिस टिटो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले स्पेस टूरिस्ट बने थे. इसके लिए उन्होंने करीब 56 करोड़ रुपये चुकाए थे, जबकि आज नई स्पेस रेस शुरू हो जाने के बाद. इसकी कीमत गिरकर डेढ़ से 2 करोड़ रुपये प्रति टिकट तक आ गई है. स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क का तो मानना है कि इस लागत में अभी 99 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है.

हर साल साढ़े 300 करोड़ रुपये की कमाई 

फिलहाल ISRO अपने कॉस्ट इफेक्टिव रॉकेट्स की मदद से दुनिया भर के देशों के सैटेलाइट्स लॉन्च करता है और इससे ISRO को 300 से साढ़े 300 करोड़ रुपये की कमाई हर साल होती है. लेकिन अंतरिक्ष की दुनिया में प्राइवेट कंपनियों के आ जाने से ये मुकाबला बहुत कड़ा हो सकता है. फिलहाल दुनिया भर की स्पेस इंडस्ट्री 27 लाख करोड़ रुपये की है, जिसके अगले 20 वर्षों में बढ़कर 78 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है.

ऐसे में ISRO को भी अपनी तैयारी करनी होगी और अंतरिक्ष के क्षेत्र में मुश्किल अभियानों को पूरा करना होगा. उदाहरण के लिए ISRO को आने वाले कुछ वर्षों में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन और चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने होंगे. ISRO की टेक्नोलॉजी को बहुत भरोसेमंद और कम लागत वाला माना जाता है और अगर भारत अंतरिक्ष में मुश्किल मिशन को पूरा करेगा तो दुनिया का विश्वास ISRO पर और ज्यादा तेजी से बढ़ेगा. इसके अलावा भारत के उद्योगपतियों को भी अमेरिका और ब्रिटेन के उद्योगपतियों की तरह अंतरिक्ष की दुनिया में उतरने पर विचार करना चाहिए क्योंकि, भारत के पास योग्यता की कमी नहीं है और भारत आने वाले समय में अंतरिक्ष यात्राओं का केंद्र बन सकता है.

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