DNA ANALYSIS: डोनाल्ड ट्रंप हार गए, तो अमेरिका में दंगे हो जाएंगे?
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DNA ANALYSIS: डोनाल्ड ट्रंप हार गए, तो अमेरिका में दंगे हो जाएंगे?

अमेरिका (America) की राजधानी वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क से कुछ तस्वीरें आईं हैं. ये तस्वीरें अमेरिका के राष्ट्रपति (President) के आधिकारिक निवास व्हाइट हाउस (White House) की हैं.  व्हाइट हाउस के चारों तरफ स्टील के नए बैरियर लगाए गए हैं, एक सुरक्षित घेरा बनाया गया है. 

DNA ANALYSIS: डोनाल्ड ट्रंप हार गए, तो अमेरिका में दंगे हो जाएंगे?

नई दिल्ली: आज हम अमेरिका (America) में राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) के बाद हिंसा की आशंका का विश्लेषण करेंगे. अमेरिका, दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है, आज से 231 वर्ष पहले साल 1789 में अमेरिका में पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए थे. इन दो सौ वर्षों में अमेरिका के Presidential Election में बड़े बदलाव आए हैं. अमेरिका पूरी दुनिया को लोकतंत्र की परंपराओं पर ज्ञान देता है. इस समय बिहार में भी विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं. वहां पर चुनावी भाषणों में 'जंगलराज' की बहुत चर्चा हो रही है, इसलिए आज हम आपको अमेरिका में 'जंगलराज' की गवाही देने वाली तस्वीरों के बारे में भी बताएंगे.

व्हाइट हाउस के चारों तरफ स्टील के नए बैरियर लगाए गए

अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क से कुछ तस्वीरें आईं हैं. ये तस्वीरें अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास व्हाइट हाउस (White House) की हैं.  व्हाइट हाउस के चारों तरफ स्टील के नए बैरियर लगाए गए हैं, एक सुरक्षित घेरा बनाया गया है. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के बाद हिंसा (Violence) हो सकती है. इसलिए व्हाइट हाउस (White House) की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. इन तस्वीरों में आप उसी नए सुरक्षा घेरे को देख रहे हैं. कहा जा रहा है कि 8 हजार फीट से ज्यादा लंबे ये बैरियर बहुत मजबूत हैं और इन्हें नुकसान पहुंचाना लगभग असंभव है. हालांकि सुरक्षा के इन इंतजामों की एक और वजह रही. 

दरअसल, व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अपने 400 दोस्तों, सलाहकारों और खास लोगों के लिए एक बड़ी पार्टी का आयोजन कर रहे थे और वो इस पार्टी में कोई व्यवधान नहीं चाहते होंगे.

अमेरिका की नई कमजोरी और डर
अमेरिका के राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे शक्तिशाली आदमी कहा जाता है और व्हाइट हाउस को दुनिया की सबसे सुरक्षित इमारत माना जाता है. लेकिन हिंसा के डर से सुरक्षा के ये उपाय अमेरिका की नई कमजोरी और डर को दिखा रहे हैं.

जब व्हाइट हाउस का ये हाल है तो आप अमेरिका की आम जनता के डर को भी समझ सकते हैं. अमेरिका के न्यूयॉर्क में बड़ी-बड़ी दुकानों की सुरक्षा के लिए उन्हें लकड़ी के बोर्ड्स से ढंका जा रहा है. न्यूयॉर्क में दुनिया के टॉप ब्रांड्स की दुकानें हैं, इन दुकानों को भव्य बनाने के लिए ग्लास यानी शीशे का इस्तेमाल किया गया है. अब इन दुकानदारों को हिंसा होने पर निशाना बनाए जाने का डर है. इसलिए ये अपनी खिड़कियां और दरवाजों को लकड़ी के बोर्ड से सुरक्षित कर रहे हैं. इसी वर्ष मई महीने में भी न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स और शिकागो में हिंसा हुई थी, तब दुकानों को लूट कर उनमें तोड़फोड़ उनमें आग लगा दी गई थी.

न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टममेंट के अफसर हिंसा से बचने की तैयारी कर रहे
न्यूयॉर्क के मशहूर टाइम्स स्क्वायर इलाके का भी ऐसा ही हाल है. अगर ऐसी तस्वीरें किसी और देश से आईं होतीं तो अमेरिका अपने नागरिकों को वहां न जाने की सलाह देता और शायद ये भी कह दिया जाता कि उस देश में डर का माहौल है. अब न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टममेंट के करीब 600 अफसर इस हिंसा से बचने की तैयारी कर रहे हैं. उन्हें आशंका है कि वहां पर संगठित हमले हो सकते हैं. कैलिफोर्निया में पुलिस अधिकारी बिना छुट्टी लिए हर दिन 12 घंटे की शिफ्ट कर रहे हैं और आप इसे अमेरिका के वर्ष 2020 के चुनावों की सबसे दुखद खबर कह सकते हैं. 

आप सोचिए कि अमेरिका दुनिया का सबसे सभ्रांत और आधुनिक समाज है, आर्थिक स्थिति के मामले में वो दुनिया के लगभग सभी देशों से बेहतर है. वहां का पुलिस डिपार्टमेंट भी लेटेस्ट हथियारों और टेक्नोलॉजी से लैस है. इसके बावजूद अमेरिका अपनी राजधानी के लोगों को भी सुरक्षा का भरोसा नहीं दे पाया. वहां के लोग मान चुके हैं कि हिंसा जरूर होगी, इसलिए पुलिस पर भरोसा करने के बदले वो खुद अपनी और अपने दुकान को सुरक्षित बनाने की कोशिशें कर रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने लगाए पोस्टल बैलेट को लेकर फर्जीवाड़े के आरोप 
अमेरिका में करीब 24 करोड़ मतदाता हैं जिनके बैलेट से अमेरिका के अगले राष्टपति का नाम तय होगा. कोरोना महामारी (Coronavirus) की वजह से अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में इस बार मतदाताओं को पोस्टल बैलेट और Early Voting की सुविधा दी गई थी, इस सुविधा का मतदाताओं ने खूब फायदा उठाया है और वोटिंग के दिन से पहले तक 9 करोड़ से अधिक वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग पहले ही कर चुके हैं.

कल भी अमेरिका के अलग-अलग शहरों में मतदाताओं की लंबी लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. इससे पहले अमेरिका में नतीजों के रुझान वोटिंग वाले दिन ही आ जाते थे. और उसी दिन ये भी पता चल जाता था कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा. लेकिन पोस्टल बैलेट की वजह से इस बार नतीजों में देरी हो सकती है. नतीजों में देरी होने की संभावना इसलिए भी अधिक है क्योंकि पोस्टल बैलेट के वेरिफिकेशन और गिनती में ज्यादा वक्त लगता है.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही पोस्टल बैलेट को लेकर फर्जीवाड़े के आरोप लगाए हैं. ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि यदि नतीजा डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ गया, तो वो अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में पोस्टल बैलेट की वैधानिकता को लेकर अपील कर सकते हैं.

फिलहाल राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (President Donald Trump) और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन (Joe Biden) अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. हालांकि नेशनल अप्रूवल रेटिंग में बाइडेन लगातार बढ़त बनाए हुए हैं. उन्हें अमेरिका के 52 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला है, वहीं डोनाल्ड ट्रंप को सिर्फ 44 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं.

राष्ट्रपति ट्रंप का Core voter उनके साथ मजबूती से खड़ा है
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादातर सर्वे 77 वर्ष के जो बाइडेन की जीत का दावा कर रहे हैं. हालांकि 74 वर्ष के डोनाल्ड ट्रंप के साथ भी 40 प्रतिशत से अधिक वोटर हैं. इसका मतलब ये हुआ कि राष्ट्रपति ट्रंप का जो Core voter है वो उनके साथ मजबूती से खड़ा है. ऐसे में वोटिंग वाले दिन स्विंग वोटर्स की अहमियत बढ़ गई है. एक अनुमान के मुताबिक हर चुनाव में करीब 10 प्रतिशत वोटर ऐसे होते हैं जो आखिरी समय पर निर्णय लेते हैं कि उन्हें किसे वोट देना है. इन्हीं वोटर्स को ही Swing Voters कहा जाता है. वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में सर्वे डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन की जीत का दावा कर रहे थे, लेकिन जीत डोनाल्ड ट्रंप की हुई. हिलेरी क्लिंटन को डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले 30 लाख अधिक वोट मिले थे लेकिन फिर भी वो चुनाव हार गई थीं. 

ऐसे में आपके मन में सवाल उठेगा कि आखिर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होता कैसे है. हमने इसे आपको आसान शब्दों में आपको समझाने की कोशिश की है.

-अमेरिका के मतदाता राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करते बल्कि वो इलेक्टोरल कॉलेज के लिए वोटिंग करते हैं. ये इलेक्टोरल कॉलेज ही अमेरिका के राष्ट्रपति को चुनते हैं. इलेक्टोरल कॉलेज में 50 राज्यों के सदस्य होते हैं. हर राज्य से कितने सदस्य होंगे ये उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करता है.

-कैलिफोर्निया आबादी के लिहाज से अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य है और वहां इलेक्टर्स की संख्या सबसे अधिक 55 है. यदि सभी राज्यों के इलेक्टोरल वोटों को जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा 538 तक पहुंच जाता है. राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टोरल वोटों की जरूरत होती है. ऐसे में जो उम्मीदवार बड़े राज्यों में जीत हासिल कर लेता है वो 270 के जादुई आंकड़े तक आसानी से पहुंच जाता है.

-अमेरिका के 50 राज्यों में 48 ऐसे हैं कि जहां जीतने वाली पार्टी के खाते में सारे इलेक्टोरल कॉलेज वोट चले जाते हैं. 

उदाहरण के लिए किसी पार्टी को अपनी विरोधी पार्टी से 1 वोट भी अधिक मिलता है तो उस राज्य के सारे इलेक्टोरल वोट उसके खाते में चले जाते हैं.

2016 के चुनाव में 16 प्रतिशत भारतीय वोटरों ने ट्रंप का साथ दिया
अमेरिका में रह रहे भारतीयों की इस चुनाव में क्या भूमिका है. अब इसका विश्लेषण करते हैं. भारतीय मूल के करीब 16 लाख वोटर अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाल रहे हैं. अमेरिका के वोटर्स में ये संख्या एक प्रतिशत से भी कम है लेकिन भारतीय वोटर्स की इस चुनाव में अहमियत बहुत अधिक है.

डेमोक्रेटिक पार्टी से उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस भारतीय मूल से हैं. उन्हें चुनावी मैदान में उतारकर डेमोक्रेटिक पार्टी ने भारतीय मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है. ड्रेमोक्रेटिक पार्टी का ये कदम क्या वाकई कारगर साबित हुआ है. जो ओपिनियन पोल सामने आ रहे हैं उन्हें देखकर तो ऐसा नहीं लगता है.

-वर्ष 2016 के चुनाव में 16 प्रतिशत भारतीय वोटरों ने ट्रंप का साथ दिया था.

-वर्ष 2020 में 28 प्रतिशत भारतीय मूल के लोग डोनाल्ड ट्रंप का साथ देने की बात कह रहे हैं. यहां 12 प्रतिशत भारतीय वोटर्स का ट्रंप की ओर झुकाव बढ़ा है. लेकिन यहां आपको ये बताना जरूरी है कि ये OPINION POLLS के आंकड़े हैं.

वहीं रिपब्लिकन पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती को आधार बनाकर पर भारतीय वोटर्स को लुभाने का प्रयास कर रही है.

अमेरिका के पूरे सिस्टम में भारतीय मूल के लोगों की भूमिका 
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की आबादी करीब 1 प्रतिशत है लेकिन सिलिकॉन वैली के START-UPS में एक तिहाई से अधिक आबादी भारतीय मूल के लोगों की है. अमेरिका की HIGH-TECH कंपनियों में 8 प्रतिशत से अधिक भारतीय मूल के लोगों ने स्थापित की हैं. अमेरिका में हर 7 में से एक डॉक्टर भारतीय मूल से है.

ऐसे में आप अनुमान लगा सकते हैं कि अमेरिका के पूरे सिस्टम में भारतीय मूल के लोगों की भूमिका बहुत अहम है. पारंपरिक तौर पर भारतीय मूल के वोटर्स अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक रहे हैं लेकिन पिछले दो चुनाव में इसमें का काफी बदलाव आया है.

चुनाव के दौरान दिन भर ट्रेंड करता रहा 'पनीर-टिक्का' 
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दिन भर सोशल मीडिया पर 'पनीर-टिक्का' ट्रेंड करता रहा. और इसकी वजह है अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव से एक दिन पहले अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी की भारतीय-अमेरिकी मूल की सांसद प्रमिला जयपाल ने एक ट्वीट किया.

इस ट्वीट में उन्होंने लिखा, 'अमेरिका के चुनावों में उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने कहा है कि उनकी पसंदीदा डिश किसी भी प्रकार का टिक्का है. हालांकि प्रमिला जयपाल ने जो फोटो शेयर की वो 'पनीर कड़ाही' नामक एक डिश की तस्वीर है.'

शायद प्रमिला जयपाल सोचती हैं कि भारतीय खाने की तस्वीर ट्वीट करने के बाद उन्हें अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लगभग 25 लाख लोगों के वोट मिल जाएंगे. हालांकि प्रमिला जयपाल और उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दे पर भारत का साथ नहीं दिया था. लेकिन अब वो भारतीय डिश की तस्वीर ट्वीट करके भारतीय मूल के लोगों से वोटों का समर्थन चाहती हैं. प्रमिला जयपाल के इस भारत विरोधी रवैये की वजह से वर्ष 2019 में भारत के विदेश मंत्री ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनसे मिलने से मना कर दिया था.

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