जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 65 वर्ष की उम्र में अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने ये फैसला खराब स्वास्थ्य की वजह से किया है.
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नई दिल्ली: जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 65 वर्ष की उम्र में अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने ये फैसला खराब स्वास्थ्य की वजह से किया है. शिंजो आबे को पेट में अल्सर की समस्या है. साल 2007 में वो पहली बार जापान के प्रधानमंत्री बने थे, तब भी इसी कारण एक वर्ष बाद उन्होंने अपना पद छोड़ दिया था. इसके बाद वर्ष 2012 में वो दोबारा जापान के प्रधानमंत्री बने. शिंजो आबे जापान में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं, जब वो दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे तो उससे पहले 6 वर्षों में जापान में 6 प्रधानमंत्री बदले जा चुके थे. लेकिन उनकी इस पुरानी बीमारी ने उन्हें एक बार फिर पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया है. शिंजो आबे का कहना है कि वो इस बीमारी के इलाज के दौरान प्रधानमंत्री के तौर पर अपने कामकाज पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाएंगे इसलिए वो इस्तीफा दे रहे हैं. हालांकि नए प्रधानमंत्री का चुनाव होने तक वो इस पद पर बने रहेंगे.
कोरोना वायरस की वजह से स्वास्थ्य दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है और इसी स्वास्थ्य की वजह से शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री जैसा पद त्यागने का फैसला किया है. यानी सिर्फ मन के हारे ही हार नहीं होती, बल्कि तन के हारे भी हार हो सकती है.
भारत के नेताओं की उम्र ज्यादा, लेकिन नहीं छोड़ते पद
शिंजो आबे अभी 65 वर्ष के हैं. भारत के राजनेताओं की उम्र के हिसाब से देखा जाए तो उन्होंने बहुत कम उम्र में राजनीति से ब्रेक लिया है. भारत एक युवाओं का देश है. हमारे यहां 65 प्रतिशत आबादी की उम्र 35 वर्ष से कम है. लेकिन हमारे नेता इतने युवा नहीं हैं. भारत की संसद में करीब 65 प्रतिशत नेताओं की उम्र 50 से 75 वर्ष के बीच है. जिस उम्र में दुनिया के शिंजो आबे जैसे नेता रिटायर हो जाते हैं उस उम्र में तो भारत के कई नेता पहली बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचते हैं. हमारे देश के कई नेता हमेशा के लिए कुर्सी से चिपककर रहना चाहते हैं.
शिंजो आबे के बारे में कुछ अहम बातें
जापान के प्रधानमंत्री ने अपना पद छोड़ दिया, क्योंकि वो नहीं चाहते कि उनके खराब स्वास्थ्य की वजह से उनके देश को कोई नुकसान हो. इसलिए आज हम शिंजो आबे के इस फैसले को आधार बनाकर ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत के बुज़ुर्ग रिटायर क्यों नहीं होना चाहते और युवा डिलीवर क्यों नहीं कर पाते. लेकिन पहले शिंजो आबे के बारे में कुछ अहम बातें जान लीजिए.
-शिंजो आबे पिछले 8 वर्षों से लगातार जापान के प्रधानमंत्री हैं. जनता के बीच वो बहुत लोकप्रिय हैं.
-उन्हें एक शक्तिशाली और मजबूत इच्छाशक्ति वाला नेता माना जाता है.
-जापान की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है.
-शिंजो आबे ने 2012 में सत्ता में आने के बाद अर्थव्यवस्था में जो सुधार शुरू किए उन्हें Abe Nomics कहा जाता है. ठीक वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार किए तो उसे Modi Nomics कहा जाता है.
-शिंजो आबे ने अमेरिका और भारत के साथ रिश्तों को बहुत मजबूत बनाया. आज की तारीख में उन्हें अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सबसे अच्छे दोस्तों में गिना जाता है.
-शिंजो आबे की सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि वो लंबे समय तक सत्ता पर बने रहे. जब कोई मजबूत नेता लंबे समय तक सत्ता में रहता तो इससे उस देश में स्थिरता आती है.
-इसके अलावा उन्होंने जापान की सुरक्षा को भी मजबूत किया और सेना पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाया.
कुछ वादे पूरे नहीं कर पाए
शिंजो आबे 8 वर्षों के दौरान अपने कुछ वादे पूरे नहीं कर पाए. जैसे वो जापान के संविधान के आर्टिकल 9 में बदलाव नहीं कर पाए. ये आर्किटल जापान को सिर्फ आत्मरक्षा के लिए जरूरी सैनिक रखने की इजाजत देता है.
अभी जापान एक तय संख्या से ज्यादा सैनिक नहीं रख सकता. जापान के संविधान में ये शर्त द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शामिल की गई थी. तब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिराए थे, जिसमें जापान के लाखों नागरिकों की मौत हो गई थी. लेकिन अब चीन और नॉर्थ कोरिया के बढ़ते खतरे के कारण इस कानून को बदलने की मांग हो रही है. शिंजो आबे कई वर्ष पहले नॉर्थ कोरिया में पकड़े गए जापान के नागरिकों की रिहाई में भी नाकाम रहे. जब उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की तो अपनी इन असफलताओं का भी जिक्र किया.
PM मोदी ने शिंजो आबे के इस्तीफे पर जताया दुख
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिंजो आबे के इस्तीफे पर दुख जताया है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी और उनकी एक तस्वीर ट्वीट की और कहा कि उनके कार्यकाल में भारत और जापान के रिश्ते बहुत मजबूत हुए हैं.
वर्ष 2015 में जब शिंजो आबे भारत आए थे तो भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें वाराणसी की गंगा आरती दिखाई थी.
नेता जो कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते
सफलता और असफलता जीवन का हिस्सा होती हैं. लेकिन समय रहते ये समझ जाना चाहिए कि आपको कहां रुकना है. भारत में लोग रिटायरमेंट शब्द से ही डरते हैं. भारत में कई ऐसे नेता हैं जिनकी उम्र अधिक हो चुकी है. स्वास्थ्य भी उनका साथ नहीं देता लेकिन वो अब भी पार्टी पर पकड़ बनाकर रखना चाहते हैं और कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते. जो नेता युवा हैं. उनमें से कई नेताओं का प्रदर्शन हमेशा सवालों के घेरे में रहता है यानी बुजुर्ग नेता रिटायर नहीं होना चाहते और युवा नेता डिलीवर नहीं करना चाहते.
किसी को भी ये गलतफहमी और घमंड नहीं होना चाहिए कि वो सदा के लिए है. समय बदलता रहता है और हमेशा एक राजनेता से बेहतर राजनेता आता है. हमेशा एक कलाकार से बेहतर कलाकार आता है, और हमेशा किसी खिलाड़ी से बेहतर खिलाड़ी आता है. समय का चक्र ऐसे ही चलता रहता है.
कुछ ऐसे नेता भी
ये फिलॉसफी अमर होने की इच्छा से बिल्कुल विपरीत है. जब आप सही समय पर समझ जाते हैं कि रिटायर होने का समय आ गया है तो आप दूसरों के लिए जगह तो बनाते ही है. साथ ही लोगों के दिलों में भी आपके लिए पहले से ज्यादा जगह बन जाती है यानी लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए कई बार आपको अपनी जगह छोड़नी पड़ती है.
हमारे देश में कुछ ऐसे नेता भी रहे हैं जिनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया लेकिन उन्होंने अपना पद नहीं छोड़ा. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद जब मुख्यमंत्री रहते हुए बीमार हुए तो उन्होंने अपना पद नहीं छोड़ा और इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई. इसी तरह तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री के साथ भी ऐसा ही हुआ था. खराब स्वास्थ्य के बावजूद वो आखिरी समय तक सीएम के पद पर बनी रही थीं. जबकि सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे नेताओं ने अपने स्वास्थ्य की वजह से राजनीति को अलविदा कह दिया था.
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