सिकुड़ रहा है Stratosphere, कुछ सालों में ग्रीनहाउस उत्सर्जन की वजह से होगी बुरी हालत
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सिकुड़ रहा है Stratosphere, कुछ सालों में ग्रीनहाउस उत्सर्जन की वजह से होगी बुरी हालत

साइंटिस्ट्स ने खुलासा किया है कि पिछले 40 सालों में यह इसकी ऊंचाई 402 मीटर कम हो गई है. इसकी वजह से धरती के बाहरी आवरण में चक्कर काट रहे सेटेलाइट फेल हो सकते हैं. 

तस्वीर: ट्विटर

नई दिल्ली: धरती का बाहरी आवरण सिकुड़ रहा है. एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि धरती का समताप मंडल यानी स्ट्रैटोस्फियर (Stratosphere) सिकुड़ रहा है. रिपोर्ट में साइंटिस्ट्स ने खुलासा किया है कि पिछले 40 सालों में यह इसकी ऊंचाई 402 मीटर कम हो गई है. इसकी वजह से धरती के बाहरी आवरण में चक्कर काट रहे सेटेलाइट फेल हो सकते हैं. 

क्या है स्ट्रैटोस्फियर? 

धरती के ऊपर 12 किलोमीटर से लेकर करीब 49.88 किलोमीटर की ऊंचाई तक स्ट्रैटोस्फेयर होता है. इस हवाई परत में सुपरसोनिक विमान और मौसम की जानकारी देने वाले गुब्बारे घूमते हैं. एक नई रिसर्च के मुताबिक हमारी धरती के चारों तरफ मौजूद यह हवाई परत की मोटाई पिछले 40 सालों में 402 मीटर कम हो गई है. ये रिपोर्ट साइंस जर्नल एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स में पब्लिश हुई है. 

क्यों आ रही ये दिक्कत? 

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रीनहाउस गैसों की वजह से स्ट्रैटोस्फेयर लगातार ठंडी हो रही है. क्योंकि कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. बता दें कि कार्बन डाईऑक्साइड धरती के सबसे निचली हवाई परत यानी ट्रोपोस्फेयर में घुस चुकी है. ये परत सूरज से आने वाली रोशनी को वापस अंतरिक्ष की तरफ परावर्तित कर रही है. वहीं, साल 1960 से लेकर 2010 तक स्ट्रैटोस्फेयर का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस कम हुआ है. अगर वर्तमान गति से ग्रीनहाउस गैसें निकलती रहीं तो स्ट्रैटोस्फेयर और तेजी से घटेगा. नई स्टडी के मुताबिक साल 2080 तक स्ट्रैटोस्फेयर करीब 1.60 किलोमीटर और पतली हो जाएगी. इसकी वजह से मानव सभ्यता पर बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है.

रिपोर्ट की सबसे गंभीर बात ये है... 

इस नई स्टडी के मुताबिक स्ट्रैटोस्फेयर की ऊपरी लेयर और निचली लेयर के बीच की सीमाएं यानी ट्रोपोपॉज और स्ट्रैटोपॉज लगातार एक दूसरे के नजदीक आ रही हैं. यानी स्ट्रैटोस्फेयर सिकुड़ रहा है. रिसर्च के मुताबिक स्ट्रैटोस्फेयर को तभी बचा सकते हैं जब कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन रोका जाए. लेकिन ये लगातार बढ़ती जा रही है.

सबसे ज्यादा दिक्कत किस बात से है? 

रीडिंग यूनिवर्सिटी के एटमॉस्फियरिक साइंस के प्रोफेसर पॉल विलियम्स कहते हैं कि जैसे ही स्ट्रैटोस्फेयर घटेगा, ऊपर की सारी लेयर्स नजदीक आ जाएंगी. वो भी घटेंगी. इससे ये होगा कि कम ऊंचाई पर चक्कर लगाने वाले सैटेलाइट्स का एयर रेजिसटेंस कम हो जाएगा. इससे उनकी ट्रैजेक्टरी पर असर पड़ेगा. इससे तमाम नेविगेशन सिस्टम फेल हो सकते हैं.

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