G-7 के विस्तार को लेकर सियासत तेज हो गई है. अमेरिका चाहता है कि भारत इस समूह का हिस्सा बने, जबकि रूस ने चीन का नाम आगे बढ़ाया है.
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नई दिल्ली: G-7 के विस्तार को लेकर सियासत तेज हो गई है. अमेरिका चाहता है कि भारत इस समूह का हिस्सा बने, जबकि रूस ने चीन का नाम आगे बढ़ाया है. दरअसल, कोरोना (Corona Virus) संकट को देखते हुए G7 की बैठक को सितंबर तक निलंबित कर दिया गया है. इस बीच, समूह को नया रूप देने के कवायद भी शुरू हो गई है. इस दिशा में पहला कदम अमेरिका ने बढ़ाया है, जिसे लगता है कि G7 का ढांचा पुराना हो गया है और यह वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य को दर्शाने में विफल साबित हो रहा है.
G7 दुनिया की सात बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं. यह समूह जलवायु परिवर्तन, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करता है और उनसे जुड़ी समस्याओं का हल निकालने का प्रयास करता है. इसके लिए हर साल इन देशों के प्रमुखों की बैठक होती है. वैसे तो भारत और चीन भी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें सदस्य नहीं बनाने की जो वजह बताई जाती रही है, वो है प्रति व्यक्ति आय है. मगर अब अमेरिका इस व्यवस्था में बदलाव करना चाहता है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इच्छा है कि G7 को G11 बनाया जाए.
ब्रिटेन-कनाडा अमेरिका के साथ
G7 की स्थापना के समय जिन सात देशों को इसमें शामिल किया गया, वे काफी उन्नत और प्रगतिशील थे, लेकिन अब स्थिति काफी बदल गई है. पिछले कुछ वर्षों में भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया और रूस आर्थिक शक्तियों के रूप में उभरे हैं. इसलिए यूएस चाहता है कि G7 के स्वरुप में परिवर्तन किया जाए. डोनाल्ड ट्रंप ने भारत, ऑस्ट्रेलिया, रूस और दक्षिण कोरिया को समूह का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया है. चीन को इससे दूर रखने के अमेरिकी फैसले से यूनाइटेड किंगडम और कनाडा सहमत हैं. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन चीन को इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन से बाहर रखने में अमेरिका के साथ हैं. हालांकि, चीन ने अमेरिका के कदम का विरोध किया है. वहीं रूस भी उसके हिमायती के तौर पर सामने आया है.
अतीत भूल गया है रूस
रूस का कहना है कि G7 का विस्तार होना चाहिए, लेकिन चीन के बिना इसका कोई मतलब नहीं. रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा (Maria Zakharova) ने कहा, ‘G7 के विस्तार का फैसला सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन यह वास्तव में सही प्रतिनिधित्व नहीं दर्शाता. क्योंकि यह स्पष्ट है कि चीन के बिना गंभीर वैश्विक मुद्दों को हल नहीं किया जा सकता’.
मॉस्को जानता है कि अमेरिका कोरोना महामारी को लेकर चीन को दंडित करना चाहता है और इसीलिए G7 में उसे शामिल करनेे का जिक्र नहीं किया. इसके बावजूद वह चीन की हिमायत कर रहा है. रूस शायद अतीत में अपने प्रति चीन के रुख को भूल गया है. मध्य एशिया में चीन का प्रभाव जिस तेजी से बढ़ रहा है उससे रूस के हित भी प्रभावित होंगे, लेकिन वह इस पर ध्यान देना नहीं चाहता.