Massacre of West African troops: आखिरकार 80 साल बाद फ्रांस ने यह मान लिया कि 1944 में फ्रांसीसी सेना द्वारा पश्चिम सैनिकों की हत्‍या नरसंहार ही थी. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने खुद सेनेगल के प्राधिकारियों को पत्र लिखकर यह बात स्‍वीकार की है. मैक्रों का यह बयान सेनेगल की राजधानी डकार के बाहरी इलाके में स्थित मछुआरों के गांव थियारोये में द्वितीय विश्व युद्ध में हुई हत्याओं की 80वीं बरसी की पूर्व संध्या पर आया है.


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35 से 400 सैनिकों की एक दिन में हत्‍या


फ्रांस के 1944 में हुए युद्ध के दौरान फ्रांसीसी सेना की तरफ से लड़ने वाले पश्चिम अफ्रीका के कई सैनिकों को एक ही दिन में मार दिया था. इसमें कितने सैनिकों को मारा गया, इसकी सटीक संख्‍या अभी भी अज्ञात है और इसे फ्रांस ने 35 से 400 के बीच माना है. फ्रांस के लोगों ने इसे अवैतनिक वेतन के मुद्दे पर हुआ विद्रोह बताया था.  


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सैनिकों को घेर कर मारी थीं गोलियां


पश्चिमी अफ्रीका के लोग तिरालेउर्स सेनेगलैस नाम की एक इकाई के सदस्य थे, जो फ्रांसीसी सेना में औपनिवेशिक पैदल सेना की एक टुकड़ी थी. इतिहासकारों के अनुसार, नरसंहार से कुछ दिन पहले भुगतान न किए गए वेतन को लेकर विवाद हुआ था. इसके बाद 1 दिसंबर को फ्रांसीसी सैनिकों ने पश्चिम अफ्रीकी सैनिकों को घेर लिया और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. कहा जाता है कि संख्‍या छिपाने के लिए सैनिकों के शव नदी में बहा दिए गए थे. जो बाद में बहकर तट पर लग गए थे.


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अब मैक्रों ने पत्र लिखकर किया स्‍वीकार


सेनेगल के राष्ट्रपति बासिरू डियोमाये फे ने कहा कि उन्हें मैक्रों का पत्र मिला है. राष्‍ट्रपति ने संवाददाताओं से कहा कि मैक्रों के कदम से दरवाजा खुलना चाहिए ताकि थियारोये की इस दर्दनाक घटना के बारे में पूरी सच्चाई आखिरकार सामने आ सके. हम लंबे समय से इस कहानी को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं और हमें विश्वास है कि इस बार फ्रांस की प्रतिबद्धता पूरी, स्पष्ट और सहयोगात्मक होगी. "


वेतन मांग रहे सैनिकों का हुआ था कत्‍लेआम


मैक्रों के बयान में कहा गया है, ''फ्रांस को यह स्वीकार करना चाहिए कि उस दिन, अपने पूर्ण वैध वेतन का भुगतान करने की मांग करने वाले सैनिकों और राइफलमैन के बीच टकराव हुआ. फिर इसने ऐसी घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू कर दी, जिसके परिणामस्वरूप नरसंहार हुआ.'' (एपी)