म्यांमार-बांग्लादेश की 'रोहिंग्या' वापसी संधि को ह्यूमन राइट्स वॉच ने नकारा
Advertisement

म्यांमार-बांग्लादेश की 'रोहिंग्या' वापसी संधि को ह्यूमन राइट्स वॉच ने नकारा

बांग्लादेश और म्यांमार ने एक आशय ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत बलवाई समूह के हमले और म्यांमारी सेना की ओर से जवाबी कार्रवाई के बाद 25 अगस्त से म्यांमार से विस्थापित हुए लोगों की वापसी का रास्ता खुलता है.

कॉक्स बाजार के नजदीक टेकनाफ में म्यांमार-बांग्लादेश सीमा पार कर सड़क से गुजरती रोहिंग्या समुदाय की एक लड़की. (Reuters/23 Nov, 2017)

नेपेडा: मानवाधिकारों की रक्षा से संबंधित कार्य से जुड़ा संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी के लिए म्यांमार और बांग्लादेश के बीच समझौते को 'हास्यास्पद' बताते हुए शुक्रवार (24 नवंबर) को इसे खारिज कर दिया. एचआरडब्ल्यू के बिल फ्रेलिक ने कहा, "छह लाख 20 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों का पलायन सामुदायिक उत्पीड़न की घटनाओं के कारण हुआ है, जोकि हाल के दिनों में घटित होने वाला एक अत्यंत बर्बर मामला है. अब इन घटनाओं की सुलगती आग के बीच बांग्लादेश जो लोगों की वापसी की बात करता है वह हास्यास्पद है."

  1. छह लाख से अधिक मुस्लिम रोहिंग्या म्यांमार छोड़कर जा चुके हैं. 
  2. 25 अगस्त को म्यांमार सेना की कार्रवाई के बाद यह रोहिंग्या देश छोड़ने को मजबूर हुए.
  3. पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में बने अस्थायी शिविर में रोहिंग्या शरण लिए हुए हैं.

समाचार एजेंसी एफे के मुताबिक, बांग्लादेश और म्यांमार ने एक आशय ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत बलवाई समूह के हमले और म्यांमारी सेना की ओर से जवाबी कार्रवाई के बाद 25 अगस्त से म्यांमार से विस्थापित हुए लोगों की वापसी का रास्ता खुलता है. म्यांमार की स्टेट काउंसलर और नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की के कार्यालय की तरफ से कहा गया है कि ज्ञापन में राखिने से विस्थापित लोगों की विधिवत जांच व उनकी वापसी के लिए आम मार्गदर्शक सिद्धांत व नीतियों की व्यवस्था शामिल है.

फ्रेलिक ने इस द्विपक्षीय समझौते को जनसंपर्क का एक तमाशा करार दिया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से यह स्पष्ट करने की अपील की है कि शरणार्थियों की वापसी उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय निगरानी के बिना नहीं हो. हालांकि म्यांमार और बांग्लादेश दोनों में से किसी भी देश के अधिकारियों ने समझौते का कोई विवरण स्पष्ट नहीं किया है और न ही यह बताया है कि कब छह लाख 22 हजार शरणार्थियों की वापसी कब शुरू होगी.

उधर म्यांमार की ओर से कहा गया है कि वह शरणार्थियों की वापसी को लेकर उत्सुक है, मगर यह तभी संभव होगा जब उनकी पहचान, उनके मूल स्थान का निर्धारण कर लिया जाए. साथ ही, इस तरह की सूचनाओं को दोनों देशों के बीच साझा किया जाएगा.

गौरतलब है कि रोहिंग्या समुदाय का हालिया पलायन म्यांमार की सेना की ओर से वहां विद्रोहियों के खिलाफ शुरू की गई सैन्य कार्रवाई के बाद आरंभ हुआ है. सेना की कार्रवाई राखिने में विद्रोही समूह अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी की ओर से 30 सैनिकों व पुलिस चौकियों पर हमले के बाद शुरू हुई थी.

Trending news