जिस बीमारी ने बेटे की ली जान, उस पर रिसर्च करने के लिए पिता ने शुरू किया ये काम
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जिस बीमारी ने बेटे की ली जान, उस पर रिसर्च करने के लिए पिता ने शुरू किया ये काम

लंदन में पिछले साल एक दुर्लभ ब्रेन ट्यूमर के कारण दम तोड़ने वाले 14 वर्षीय भारतीय मूल के एक लड़के के माता-पिता ने इस बीमारी पर शोध के लिए धन एकत्र करने के वास्ते एक मुहिम शुरू की है. 

बीमारी का पता लगने के बाद मरीज की जिंदगी छह से नौ माह की होती है.(प्रतीकात्मक तस्वीर)

लंदन: लंदन में पिछले साल एक दुर्लभ ब्रेन ट्यूमर के कारण दम तोड़ने वाले 14 वर्षीय भारतीय मूल के एक लड़के के माता-पिता ने इस बीमारी पर शोध के लिए धन एकत्र करने के वास्ते एक मुहिम शुरू की है. खुशिल पांड्या एक प्राणीविद बनना चाहता था. खुशिल के माता-पिता मार्च 2015 के उसके भेंगेपन की जांच कराने के लिए आंख के एक अस्पताल गये थे जहां उसके डिफ्यूज इंट्रिन्सिक पोंटिन ग्लियोमा (डीआईपीजी) से पीड़ित होने का पता चला. खुशिल की मां नम्रता पांड्या ने बताया, ‘‘यह हमारे जीवन का सबसे बड़ा झटका था. हमें नहीं मालूम था कि आंख का भेंगापन इतना घातक हो सकता है. ’’

नम्रता और उनके पति भावेश ने डीपीआईजी पर शोध और इस क्षेत्र में इलाज और दवा की कमी की भरपाई करने के लिए खुशिल पांड्या कोष बनाया है जो ब्रिटेन के ब्रेन ट्यूमर चैरिटी के वास्ते धन एकत्र करेगा. खुशिल के माता-पिता ने ऑनलाइन कोष एकत्र करने वाले पेज पर कहा, ‘‘खुशिल के बिना जीवन आसान नहीं है, इस क्षति की कभी भरपाई नहीं हो सकती.

लेकिन हम धन जुटाने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं वह करना चाहते हैं ताकि दुनिया के किसी भी माता-पिता को इस दर्द और पीड़ा से नहीं गुजरना पड़े. ’’ खुशिल का उपचार केवल रेडियोथेरपी ही था क्योंकि ट्यूमर की सर्जरी नहीं हो सकती थी. आमतौर पर बीमारी का पता लगने के बाद मरीज की जिंदगी छह से नौ माह की होती है लेकिन खुशिल करीब ढ़ाई साल जीवित रहा. 

इनपुट भाषा से भी 

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