DNA with Sudhir Chaudhary: जापान का 350 साल पुराना गांव, आधुनिक युग में 17वीं शताब्दी की दिलाता है याद
Advertisement

DNA with Sudhir Chaudhary: जापान का 350 साल पुराना गांव, आधुनिक युग में 17वीं शताब्दी की दिलाता है याद

DNA with Sudhir Chaudhary: जापान में EDO युग 17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक था. MEIJI RESTORATION से ठीक पहले इसे आर्थिक समृद्धि और सैन्य ताकत के लिए जाना जाता था. उनकी राजधानी टोक्यो थी, जिसे उस समय EDO ही कहा जाता था.

DNA with Sudhir Chaudhary: जापान का 350 साल पुराना गांव, आधुनिक युग में 17वीं शताब्दी की दिलाता है याद

DNA with Sudhir Chaudhary: जापान के 350 साल पुराने गांव में आज के इस आधुनिक युग में भी सबकुछ वैसा ही है, जैसा 17वीं शताब्दी में हुआ करता था. ये गांव जापान की राजधानी टोक्यो से से 50 किलोमीटर दूर एक कस्बे में मौजूद है. इस गांव की इमारतें आज भी वैसी नजर आती हैं, जैसी 350 वर्ष पहले थीं. हम बात कर रहे हैं जापान के KAWAGOE AKA LITTLE EDO कस्बे के बारे में. यह कस्बा एक अलग ही जापान को दर्शाता है, बिल्कुल Time Travel की तरह.

जापान का कावागो शहर क्यों है खास?

यहां सड़क के दोनों तरफ दुकानें और Restraurants हैं और इनकी बनावट लोगों को काफी आकर्षित करती है. इनकी झुकी हुई छतें और पेचीदा नक्काशी, ये सबकुछ जापान के एक अलग युग को दर्शाता है. जापान में EDO युग 17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक था. MEIJI RESTORATION से ठीक पहले इसे आर्थिक समृद्धि और सैन्य ताकत के लिए जाना जाता था. उनकी राजधानी टोक्यो थी, जिसे उस समय EDO ही कहा जाता था. जैसे-जैसे टोक्यो का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे खाने और दूसरी चीजों आपूर्ति की मांग भी बढ़ती गई. कावागो जैसे शहरों ने इस अंतर को कम करने के लिए कदम बढ़ाया.

इमारतों की खिड़कियां भी बेहद अलग

इन सबका नतीजा ये निकला कि इस कस्बे में अब सभी लोग शकरकंद की खेती करते हैं, कुछ लोग फ्राई करके खाते हैं तो कुछ आईस्क्रीम में और कुछ केक के साथ खाते हैं. ये सभी व्य़ंजन बहुत स्वादिष्ट हैं. यहां की सभी इमारतें फायर प्रूफ हैं. आप किसी भी इमारत में जाएंगे तो आप देखेंगे कि दीवारों के अंदरुनी हिस्सों पर क्ले का लेप किया गया है. इनकी खिलड़कियां भी बेहद अलग हैं. इनका आकार बहुत बड़ा है और ऐसा इसलिए किया गया है कि अगर घर में आग लग जाए तो ये खिड़कियां उस आग को और बढ़ने से रोकती हैं.

कभी स्टोर हाउस हुआ करता था

कई दशकों पहले ये सभी इमारतें स्टोर हाउस का काम करती थीं. यहां अनाज फल और सब्जियां स्टोर की जाती थीं. इस कस्बे में आज भी ऐसी करीब 200 इमारतें मौजूद हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि अब इन इमारतों में बैंक और Restraurants हैं. इस कस्बे के ठीक बीचों बीच Bell Tower है...ये टावर भी 17वीं शताब्दी का है. हलांकि 1893 में लगी आग में ये नष्ट हो गया था. इसके बाद एक नए टावर का निर्माण किया गया था. इस पूरे कस्बे में आपको इतिहास के ऐसे ही दिलचस्प पहलू देखने को मिलेंगे. जिनमें प्राचीन मंदिर हैं और सुंदर नक्काशी वाली दुकानें हैं. सरल शब्दों में कहें तो ये कस्बा जापान के अतीत का प्रतिबिंब है. इस कस्बे में आपको एक अलग ही अनुभव मिलता है, क्योंकि यहां के लोग तो 21वीं सदी के हैं, लेकिन यहां की इमारतें सदियों पुरानी हैं.

टोक्यो में बसता है भारत का एक छोटा सा हिस्सा

पूर्वी टोक्यो में भारत का एक छोटा सा हिस्सा भी बसता है. इसे RENKO-JI मंदिर कहते हैं. वैसे तो टोक्यो का ये इलाका शहर के बाकी हिस्सों से थोड़ा अलग है. यहां बड़े आलीशान घर नहीं हैं. आसमान छूती इमारतें नहीं हैं, बल्कि सामान्य से दिखने वाले घर हैं. हालांकि टोक्यो के इसी हिस्से में भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय मौजूद है. वो अध्याय है भारत के स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मंदिर. हालांकि ये मंदिर काफी छोटा है लेकिन अच्छी स्थिति में है. मंदिर में प्रवेश करते ही आपको नेता जी की प्रतिमा नजर आएगी. जिसके पीछे कुछ संदेश लिखे हुए हैं. ये सभी संदेश भारतीय राजनेताओं द्वारा लिखे गए हैं.

सुभाष चंद्र बोस का मंदिर

वर्ष 1957 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू यहां आए थे. जिसके एक वर्ष बाद ही भारत के पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी यहां आए थे. वर्ष 2001 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस मंदिर में आए थे और उनका संदेश भी यहां मौजूद है. ये सभी नेता यहां सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि देने आए थे. लेकिन सवाल ये है कि वो नेता जी को श्रद्धांजलि देने इतनी दूर जापान क्यों आए. आखिर इस मंदिर का नेता जी सुभाष चंद्र बोस से क्या रिश्ता है. टोक्यो शहर से बोस का रिश्ता बहुत पुराना है. वर्ष 1943 में जब दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था तब नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी से जापान तक की यात्रा की थी. ये यात्रा किसी adventure से कम नहीं था. पहले उन्हों ने जर्मनी से मेडागास्कर तक का सफर एक जर्मन यू बोट में तय किया. इसके बाद उन्होंने एक जापानी पनडुब्बी में जापान तक का सफर तय किया.

अस्थियों के DNA टेस्ट की मांग

यहीं जापान में उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी को दोबारा संगठित किया. वर्ष 1945 में नेता जी की आकस्मिक मृत्यु की खबर एक सदमे की तरह थी. बहुत से भारतीय आज भी उनकी मृत्यु की खबर को सही नहीं मानते. बहुत लोगों का मानना है कि उनकी मौत के पीछे एक गहरी साज़िश थी. वो अभी भी उनकी मृत्यु से जुड़े सवालों का जवाब ढूंढ रहे हैं. संभव है कि इस मंदिर में उन्हें उनके सवालों के जवाब मिल जाएं. नेता जी के परिवार ने इस मंदिर में रखी उनकी अस्थियों के DNA टेस्ट की मांग की है.

किसी भी सरकार ने नहीं दिखाई दिलचस्पी

हालांकि किसी भी सरकार ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. नतीजा ये कि नेता जी की अस्थियां अभी भी इस बौद्ध मंदिर में ही रखी हैं. दरअसल जापान में कुछ समय बिताने के बाद नेता जी वहां के लोगों में काफी लोकप्रिय हो गए थे. जापान के लोग इस मंदिर का भी बहुत सम्मान करते हैं. यही नहीं हर वर्ष 18 अगस्त को यहां एक खास कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है. 18 अगस्त ही नेता जी की पुण्यतिथि भी है. लेकिन हमारा मानना है कि नेता जी जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया उनके लिए बस ये श्रद्धांजलि ही काफी नहीं है, बल्कि हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि बोस की अस्थियां उनकी मातृभूमि तक लाई जा सकें.

यहां देखें VIDEO:

Trending news