मालदीव ने भारतीय सेना के दखल पर कहा, ऐसी किसी भी कार्रवाई से दोनों मुल्कों के रिश्तों पर पड़ेगा फर्क
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मालदीव ने भारतीय सेना के दखल पर कहा, ऐसी किसी भी कार्रवाई से दोनों मुल्कों के रिश्तों पर पड़ेगा फर्क

मालदीव के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि मालदीव में भारतीय सेना को बुलावा नहीं दिया जाएगा. मालदीव सरकार ने कहा कि भारत ऐसी कोई भी कार्रवाई नहीं करेगा.

राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में आपातकाल की घोषणा की है. (फाइल फोटो)

माले: मालदीव में उपजे संकट को दूर करने की कवायद में जुटी वहां की सरकार ने मंगलवार (13 फरवरी) को कहा कि भारत की ओर से सैन्य हस्तक्षेप को लेकर कोई चिंता की बात नहीं है. बीती शाम को जारी एक वक्तव्य में  रक्षा मंत्रालय ने कहा कि मालदीव में भारतीय सेना को बुलावा नहीं दिया जाएगा. मालदीव सरकार ने कहा कि भारत ऐसी कोई भी कार्रवाई नहीं करेगा. बयान में कहा गया है, 'अगर भारत की ओर से ऐसी कोई कार्रवाई होती है तो यह गैर-जिम्मेदाराना हरकत होगी और इसका असर दोनों मुल्कों (भारत-मालदीव) की जनता पर पड़ेगा. साथ ही साझेदार देशों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. इतना ही नहीं दशकों से चले आ रहे भारत-मालदीव के खुशहाल रिश्तों पर भी संदेह के बादल मंडराने लगेंगे.

  1. सुप्रीम कोर्ट ने दिया था नौ हाई-प्रोफाइल राजनीतिक बंदियों, पूर्व राष्ट्रपति की रिहाई का आदेश.
  2. राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में आपातकाल की घोषणा की है.
  3. अब्दुल्ला ने फैसला सुनाने वाले न्यायाधीशों को गिरफ्तार कर लिया है.

वहीं दूसरी ओर मालदीव के राजनातिक संकट के बीच चीन ने धमकी भरे अंदाज में भारत से कहा है कि अगर उसने इस मामले में सैन्य कार्रवाई की तो वह भी खामोश नहीं बैठेगा. सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में यह बात कही गई है. संपादकीय में कहा गया है कि मालदीव इस समय संकट से जूझ रहा है, ऐसे में भारत को भी संयम से काम लेना चाहिए. संपादकीय में मौजूदा राजनीतिक संकट को मालदीव का आतंरिक मामला बताते हुए कहा गया है कि अगर भारत सैन्य दखल देता है तो चीन भी जवाबी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होगा. 

मालदीव संकट पर चीन की भारत को चेतावनी, सैन्य दखल दिया तो खामोश नहीं बैठेंगे

मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन करने वालों को निशाने पर लेते हुए 'माले में अनधिकृत सैन्य हस्तक्षेप रोका जाना चाहिए' शीर्षक से लिखे गए संपादकीय में इसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मानकों के हिसाब से सही नहीं बताया गया है. संपादकीय में साफ-साफ कहा गया है कि सभी देशों को एक दूसरे की संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत का सम्मान करना चाहिए. साथ ही संपादकीय में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि अगर मालदीव में हालात और बिगड़ते हैं तो अंतरराष्ट्रीय तंत्र के जरिए इसका समाधान निकाला जाना चाहिए.

क्या है मामला:
मालदीव की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले गुरुवार (1 फरवरी) को विपक्ष के नौ हाई-प्रोफाइल राजनीतिक बंदियों को रिहा करने और उनके खिलाफ चलाये गए मुकदमों को राजनीति से प्रेरित बताये जाने के बाद से ही देश में राजनीतिक संकट के बादल छा गये थे. घटना के बाद मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दिया, जिसके कारण पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये. राष्ट्रपति ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी जिसके कुछ ही घंटों बाद सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद और एक अन्य न्यायाधीश अली हमीद को गिरफ्तार कर लिया गया.

(इनपुट एजेंसी से भी)

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