नेपाल चुनाव : वामपंथी गठबंधन को मिली 26 सीटों पर जीत, नेपाल कांग्रेस को तीन
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नेपाल चुनाव : वामपंथी गठबंधन को मिली 26 सीटों पर जीत, नेपाल कांग्रेस को तीन

मतों की गणना में सीपीएन-यूएमएल 44 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि सीपीएन माओइस्ट सेंटर 18 सीटों पर आगे है. 

नेपाल में राज्य विधानसभा चुनाव के लिए 2,819 उम्मीदवार मैदान में थे

काठमांडो : नेपाल में हो रहे ऐतिहासिक प्रांतीय और संसदीय चुनाव में वामपंथी गठबंधन को अब तक घोषित 30 संसदीय सीटों के नतीजों में से कम से कम 26 सीटों पर जीत मिली है और वह विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस के खिलाफ बढ़त बनाए है. नेपाली कांग्रेस को सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत हासिल हुई है. नेकपा एमाले (सीपीएन-यूएमएल) ने 18 सीटें जीतीं जबकि उसके सहयोगी दल सीपीएन माओइस्ट सेंटर ने आठ सीटों पर जीत हासिल की. विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने तीन सीट पर जीत दर्ज की. वहीं एक स्वतंत्र उम्मीदवार को भी जीत हासिल हुई है. मतों की गणना में सीपीएन-यूएमएल 44 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि सीपीएन माओइस्ट सेंटर 18 सीटों पर आगे है. नेपाली कांग्रेस 12 सीटों पर आगे है. 

संसदीय चुनाव के लिए कुल 1,663 उम्मीदवार जबकि राज्य विधानसभा चुनाव के लिए 2,819 उम्मीदवार मैदान में थे. कई लोगों को यह उम्मीद है कि इस ऐतिहासिक चुनाव से इस हिमालयी देश में राजनीतिक स्थिरता आएगी. इस चुनाव से संसद के लिए 128 सदस्यों और विधानसभा के लिए 256 सदस्यों का चुनाव हुआ. राज्य और संघीय चुनाव के लिए दो चरणों में 26 नवंबर और 27 दिसंबर को मतदान आयोजित किया गया था.

नेपाल में आयोजित हुए इस चुनाव को संघीय लोकतंत्र अपनाने की दिशा में अंतिम कदम माना जा रहा है. यह देश साल 2006 तक एक दशक तक चले गृहयुद्ध से गुजर चुका है. इस युद्ध ने 16,000 लोगों की जानें गईं. कई लोगों को आशा है कि नेपाल में पहली बार राज्य में हो रहे चुनाव से क्षेत्र का विकास तेजी से होगा. वहीं कई लोगों को आशंका है कि इससे ताजा हिंसा पैदा होगी.

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साल 2015 में नेपाल द्वारा संविधान स्वीकार किए जाने के बाद देश को सात राज्यों में बांटा गया था. इसके बाद क्षेत्र और अधिकार को लेकर हुई जातीय लड़ाई में दर्जनों लोगों की मौत हुई थी. नेपाल में नए संविधान स्वीकार किए जाने के बाद जातीय मधेसी समूह (ज्यादातर भारतीय मूल के हैं) ने कई महीनों तक विरोध प्रदर्शन किया था. समूह का कहना था कि उन्हें एक प्रांत में ज्यादा क्षेत्र नहीं दिया जा रहा है और वह भेदभाव का भी सामना कर रहे हैं. नए संविधान को लागू करने की दिशा में इस चुनाव का बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है.

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