अपनी विस्तारवादी आदतों के लिए मशहूर चीन (China) की नजरें अब ताजिकिस्तान (Tajikistan) पर हैं. वह तजाकिस्तान के पामीर (Pamir) क्षेत्र पर अपना हक जता रहा है. बीजिंग 45 फीसदी पामीर पर कब्जा करना चाहता है और इसके लिए उसने माहौल बनाना भी शुरू कर दिया है.
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बीजिंग: अपनी विस्तारवादी आदतों के लिए मशहूर चीन (China) की नजरें अब ताजिकिस्तान (Tajikistan) पर हैं. वह तजाकिस्तान के पामीर (Pamir) क्षेत्र पर अपना हक जता रहा है.
बीजिंग 45 फीसदी पामीर पर कब्जा करना चाहता है और इसके लिए उसने माहौल बनाना भी शुरू कर दिया है. एक चीनी इतिहासकार ने हाल ही में एक लेख लिखा था. जिसमें उन्होंने दावा किया गया कि चिन वंश के अंतिम वर्षों में चीन ने पामीर को खो दिया था. यानी उन्होंने यह साबित करने का प्रयास किया कि पामीर कभी चीन का हिस्सा था.
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इतिहास चो यऊ लू (Cho Yau Lu) ने लिखा कि विश्व शक्तियों के दबाव के चलते पामीर 128 वर्षों तक चीन से बाहर रहा, लेकिन हमारे रिसर्च कुछ और ही कहते हैं. ताजिकिस्तान का 45 फीसदी हिस्सा चीन का है.
वैसे, चीन तजाकिस्तान पर शुरू से ही पामीर उसे सौंपने का दबाव बनाता आया है. 2011 में उसने तजाकिस्तान को मजबूर कर दिया कि वो उसे पामीर की 1000 वर्ग किमी भूमि पर कब्जा दे. अब उसकी नजरें बाकी 94.5 प्रतिशत पर हैं. 2019 में वाशिंगटन पोस्ट ने पामीर में चीनी सेना की उपस्थिति को लेकर फ्रंट-पेज स्टोरी प्रकाशित की थी. इस स्टोरी में एक चीनी सैनिक के हवाले से बताया गया था कि चीनी सेना पामीर में तीन से चार सालों से है.
तजाकिस्तान को कर्ज में फंसाकर चीन पामीर खरीदने की कोशिश कर रहा है. ताजिकिस्तान 2017 में बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था. उसके बाद से देश में कम से कम 350 चीनी कंपनियां काम कर रही हैं. इस साल तक ताजिकिस्तान का आधे से ज्यादा कर्ज बीजिंग द्वारा ही दिया गया है. जो कि यह देश की जीडीपी का लगभग 35.9 प्रतिशत है.
पूर्व में ताजिकिस्तान ने चीन को खनन अधिकार देकर कर्ज का भुगतान किया था. लिहाजा, चीन उम्मीद कर रहा है कि अब वह पामीर उसे सौंपकर कर्ज उतारेगा. अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उसने पामीर से जुड़े लेख प्रकाशित करना शुरू कर दिया है.
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