तो अब अमेरिका भी नहीं जान पाएगा चीन के सीक्रेट
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तो अब अमेरिका भी नहीं जान पाएगा चीन के सीक्रेट

चीन एक ऐसा कम्युनिकेशन नेटवर्क बनाया है जिसे हैक करना संभव नहीं होगा (फाइल फोटो)

नई दिल्लीः चीन जहां भारत से डोकलाम में सीमा विवाद को लेकर अड़ा हुआ है. वहीं उसका संघर्ष परोक्ष रूप से अमेरिका से भी चल रहा है. यूएस से उसका विवाद सैनिक मोर्चे के बजाए तकनीकी क्षेत्र में अधिक है. इस में सबसे अधिक मामले साइबर अटैक के हैं. चीन ने इन हमलों से बचने के लिए एक ऐसा कम्युनिकेशन नेटवर्क बनाया है जिसे हैक करना संभव नहीं होगा. चीन इसे जल्दी ही लॉन्च करने वाला.  

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इस सिस्टम से किसी भी प्रकार की हैकिंग के प्रयास का तुरंत पता लग जाएगा. इस नई तकनीक को क्वांटम क्रिप्टोग्राफ़ी कहा जा रहा है और पारंपरिक क्रिप्टोग्राफी के तरीकों से इसे बिल्कुल अलग माना जा रहा है. 

दरअसल चीन उस तकनीक में आगे बढ़ना चाहता है जिसमें पश्चिमी देश हमेशा से निवेश करने में डरते रहे हैं. चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार चीन के जिनान प्रांत में इस पर किए जा रहे काम को 'मील का पत्थर' कहा गया है. जिनान में बनाए जा रहे इस नेटवर्क में सेना, सरकार, वित्तीय संस्थान और बिजली विभाग से जुड़े करीब 200 कर्मचारी अपने संदेश सुरक्षित तरीके से भेज सकेंगे, इस जानकारी के साथ कि केवल वो ही इन संदेशों को पढ़ पा रहे हैं.

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क्वांटम कम्युनिकेशन में चीन के आगे बढ़ने का मतलब है कि वो ऐसे सॉफ़्टवेयर बनाएगा जो इंटरनेट में मौजूद खामियों को दूर कर उसे मज़बूत बनाएंगे. और भविष्य में अन्य देश भी चीन से इस तरह के सॉफ़्टवेयर खरीद सकते हैं. आख़िर ये ऐसी तकनीक है जिसमें काफी निवेश चाहिए?

सिंगापुर के नेशनल यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर क्वांटम टेक्नोल़जी के वैलेरियो स्करानी कहते हैं, "हमें मानना पड़ेगा कि चीन इस काम में निवेश कर रहा है, वो आर्थिक रूप से मज़बूत हैं और उनके पास लोग हैं जो कि शायद अमरीकी सेना के सिवा और किसी के पास नहीं." चीन ने जो क्वांटम कम्यूनिकेशन सॉफ़्टवेयर बनाए हैं उनमें केवल जिनान नेटवर्क ही नहीं है.

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बीते साल चीन से केबल तारों से न नापी जा सकने वाली जगहों के बीच क्वांटम कम्युनिकेश नेटवर्क का परीक्षण करने के लिए एक उपग्रह छोड़ा था. देश के दो मुख्य़ शहरों बीजिंग और शांघाई के बीच एक लिंक भी बनाया गया था ताकि इसका टेस्ट कर हैकिंग का पता लगाया जा सके.

हालांकि क्वांटम कम्युनिकेशन भविष्य में पारंपरिक एन्क्रिप्शन की जगह लेगा या नहीं अभी इस बारे में साफ तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इसका इस्तेमाल करने वालों को लगता है कि इसकी संभावनाए हैं.और इसे बनाने और इससे जुड़े सॉफ़्टवेयर को बनाने और उसका परीक्षण करने वालों में चीन सबसे आगे होगा.

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