पाकिस्तान ने कहा कि इस तरह के समझौते मनमाने तरीके से रद्द करने से अंतरराष्ट्रीय संबंधों के तौर तरीके एवं विवादों के शांतिपूर्ण हल की दिशा में वार्ता एवं कूटनीति के महत्व में विश्वास कमतर होगा.
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इस्लामाबाद: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ईरान के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर खींचने के बाद पाकिस्तान ने बीते 9 मई को कहा कि बहुपक्षीय समझौतों को एकपक्षीय रूप से खारिज करने से शांतिपूर्ण तरीके से संघर्षों के हल में कूटनीति का महत्व कमतर होगा. विदेश कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘‘पाकिस्तान का मानना है कि लंबी दौर की बातचीत के बाद हुई अंतरराष्ट्रीय संधियां एवं समझौतों से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. इस तरह के समझौते मनमाने तरीके से रद्द करने से अंतरराष्ट्रीय संबंधों के तौर तरीके एवं विवादों के शांतिपूर्ण हल की दिशा में वार्ता एवं कूटनीति के महत्व में विश्वास कमतर होगा.’’
बयान में कहा गया कि पाकिस्तान का मानना है कि ईरान परमाणु समझौता, जिसे संयुक्त व्यापक कार्य योजना या जेसीपीओए के नाम से भी जाना जाता है, वार्ता एवं कूटनीति के जरिये जटिल मुद्दों के समाधान का एक बहुत अच्छा उदाहरण है. इसमें कहा गया कि पाकिस्तान ने समझौता होने पर उसका स्वागत किया था और उसे उम्मीद है कि सभी पक्ष इसे जारी रखने का तरीका ढूंढ़ लेंगे खासकर तब जब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने बार बार कहा है कि ईरान समझौते का पालन कर रहा है. जुलाई, 2015 में ईरान और पी 5 (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश) तथा जर्मनी एवं यूरोपीय संघ के बीच ईरान परमाणु समझौता हुआ था.
अमेरिका-ईरान परमाणु संधि: इजरायल ने ट्रंप का किया समर्थन, चीन ने जताया विरोध
ईरान के साथ परमाणु संधि से पीछे हटने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय से विश्व चकित रह गया. अमेरिका के पारंपरिक एवं करीबी मित्र रहे फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने इस पर चिंता जाहिर की, जबकि ईरान के विरोधियों इजराइल और सऊदी अरब ने इसका स्वागत किया. ट्रंप ने संधि को खराब बताते हुए मंगलवार (8 मई) को इसे रद्द करने की घोषणा की थी.
इस संधि पर अमेरिका और ईरान के अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अन्य चार देशों ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस तथा जर्मनी ने हस्ताक्षर किये हैं. यूरोपीय नेताओं ने कहा कि ट्रंप ने भले ही सहयोगी देशों को प्रतिबद्धता तोड़ धोखा दिया हो, वे संधि के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतेरेस ने ट्रंप को संधि रद्द नहीं करने को चेताया था.
मे, मर्केल और मैक्रों ने ट्रंप की घोषणा के बाद एक संयुक्त बयान में कहा कि वे इस संधि से जुड़े रहेंगे क्योंकि इससे दुनिया में शांति स्थापित हुई. रूस और चीन ने भी ट्रंप के निर्णय पर निराशा जाहिर की. रूस ने कहा कि ट्रंप के संधि को रद्द करने का निर्णय बेहद निराशाजनक है. चीन ने भी ट्रंप के फैसले पर अफसोस जाहिर किया और इस संधि की सुरक्षा का निश्चय किया. वहीं ईरान ने चेतावनी दी कि यदि यूरोपीय देशों ने संधि की सुरक्षा का वादा नहीं दिया तो वह औद्योगिक स्तर पर यूरेनियम संवर्धन शुरू कर देगा.