फ्रांस में टीचर का सिर काटने पर विरोध, आंसू नहीं हथियार की उठने लगी मांग
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फ्रांस में टीचर का सिर काटने पर विरोध, आंसू नहीं हथियार की उठने लगी मांग

फ्रांस में एक टीचर के सिर कलम करने की घटना से दुनिया उबरी भी नहीं थी, कि जर्मनी में ठीक ऐसी ही इस्लामिक कट्टरवाद की साजिश का डरावना खुलासा हुआ. 

फ्रांस में टीचर का सिर काटने पर विरोध, आंसू नहीं हथियार की उठने लगी मांग

फ्रांस: ये इस्लामिक कट्टरवाद का सबसे बड़ा शिकार मुल्क है. यहां शरणार्थियों के लिए उसकी उदारता अब गले में अटकी हड्डी की तरह है. जिन शरणार्थियों को फ्रांस ने दिल से स्वीकार किया, अपनी धरती पर बसने का मौका दिया, उन्हीं शरणार्थियों के कारण आज पूरा फ्रांस सुलग रहा है. टीचर के सिर कलम करने की घटना के बाद से फ्रांस में इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ एक्शन की मांग उठ रही है. लोग सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. आंसू नहीं हथियार उठाने की मांग की जा रही है.

फ्रांस में एक टीचर के सिर कलम करने की घटना से दुनिया उबरी भी नहीं थी, कि जर्मनी में ठीक ऐसी ही इस्लामिक कट्टरवाद की साजिश का डरावना खुलासा हुआ. फ्रांस के टीचर सैमुअल पैटी की तरह ही जर्मनी में 55 वर्षीय पर्यटक थॉमस एल की चाकू मारकर हत्या की गई थी. टूरिस्ट थॉमस एल के कत्ल की वो तारीख थी 4 अक्टूबर. जर्मनी में सैक्सोनी प्रांत के डेस्‍डेन में पर्यटक थॉमस के अलावा एक अन्य व्यक्ति को चाकू मारकर घायल कर दिया गया. हालांकि 22 अक्टूबर को जर्मनी की पुलिस ने इस अपराध के लिए 20 वर्ष के अब्दुल्ला नाम के एक शख्स को गिरफ्तार कर लिया.

इसके बाद आरोपी अब्दुल्ला से कड़ाई से पूछताछ की गई, तो उसने पूरे विश्व को हिलाकर रख देने वाला जुर्म कबूला. अब्दुल्ला ने बताया कि वो सीरिया का ISIS आतंकवादी है. जर्मनी में अब्दुल्ला ने ही 4 अक्टूबर को इस आतंकवादी हमले को अंजाम दिया था. उसने बताया कि घटना से 5 दिन पहले ही वो जेल से छूट कर आया था. उसने इस घटना से ठीक पहले दो वर्ष 9 महीने की जेल काटी थी.

पूछताछ में अब्दुल्ला ने बताया कि उसने एक ईसाई व्यक्ति को धमकी देते हुए लिखा था, 'मैं आज तुम्हारी हत्या कर दूंगा. ईसाई तुम्हारा बड़ा मुंह है और मैं तुम्हारी जीभ काट दूंगा.' जेल की अवधि के दौरान अब्दुल्ला के व्यवहार से ये स्पष्ट हुआ था कि उसने इस्लाम धर्म से दूरी नहीं बनाई, वो कट्टर इस्लामी विचारधारा का समर्थन करता रहा है. इसलिए इस बात की संभावना अधिक थी कि वो अपने जेल की अवधि के बाद कट्टर इस्लामी कृत्य में फिर से शामिल होगा. 

अब्दुल्ला युद्धग्रस्त सीरिया के अलेप्पो शहर से 2015 में जर्मनी आया था. उस समय अब्दुल्ला नाबालिग था और 2016 के मई महीने में उसे जर्मनी में शरणार्थी का दर्जा दिया गया था. जर्मनी के अखबार बिल्ड के मुताबिक, अब्दुल्ला ने अपने आपराधिक रिकॉर्ड की वजह से 2019 में जर्मनी की नागरिकता खो दी थी, लेकिन उसे सीरिया में गृहयुद्ध की वजह से वापस नहीं भेजा जा सका. रिपोर्ट में कहा गया है कि शरणार्थी रहने के दौरान अब्दुल्ला ने जर्मनी में ISIS के लिए भर्ती करना शुरू कर दिया और ईसाइयों को धमकी दी. वर्ष 2017 में अब्दुल्ला को गिरफ्तार किया गया और उसे सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया. 

आतंकी अब्दुल्ला को 2018 में सुनाई थी सजा
ड्रेस्डेन हायर रीजनल कोर्ट ने अब्दुल्ला को 30 नवंबर, 2018 को विदेशी आतंकवादी संगठन के सदस्यों की भर्ती करने का दोषी पाया था, राज्य के खिलाफ गंभीर अपराध की तैयारी करने, जनता को नुकसान पहुंचाने के लिए और धमकी जारी करने के आरोप में अब्दुल्ला को दो साल और नौ महीने की सजा सुनाई थी.

जर्मनी की ये घटना पूरी दुनिया के लिए एक सबक है. जर्मनी से आई इस खबर को पढ़कर समझने के बाद पूरे विश्व को समझना होगा कि यूरोप का एक-एक देश इस्लामिक कट्टरवाद के बारूद पर बैठा है. अभिव्यक्ति की आजादी को, शांति को, अपने देश को सबसे ऊंचा दर्जा देने वाले यूरोप के लोगों के लिए इस्लामिक कट्टरवाद एक बड़ा खतरा बन चुका है. और आज पूरा यूरोप पूछ रहा है, इस्लामिक कट्टरवाद से आजादी कब? 

हिस्ट्री टीचर की हत्या के बाद एक्शन में फ्रांस
पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने के बाद शिक्षक सैमुअल पैटी की हत्या से पूरा फ्रांस गुस्से में है. फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस घटना को इस्लामिक आतंकवाद कहकर फ्रांस में रहने वाले कट्टरपंथियों को चेतावनी दी. तो वहीं विपक्ष के एक नेता ने हुंकार भरी कि 'हमें आंसू नहीं, हथियार चाहिए'. अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि फ्रांस में लोगों की भावनाएं इस समय कितने उफान पर हैं? 

शिक्षक सैमुअल पैटी को श्रद्धांजलि देने के लिए दो शहरों में पैगंबर मोहम्मद के विवादित कार्टून दिखाए गए पैगंबर मोहम्मद पर शार्ली हेब्दो के बनाए कार्टून की सुरक्षा के लिए भारी संख्या में पुलिस की तैनात की गई. कट्टरपंथियों के खिलाफ युद्ध छेड़ते हुए पेरिस के बाहर एक मस्जिद पर 6 महीने के लिए ताला जड़ दिया गया आरोप है कि ‘The Grand Mosque of Pantin’ नाम की इस मस्जिद से शिक्षक सैमुअल पैटी के खिलाफ नफरत फैलाई गई थी. इसके अलावा फ्रांस अब 213 से ज्यादा कट्टरपंथियों की पहचान करके उन्हें देश से बाहर निकालने की तैयारी कर रहा है.

एक्सपर्ट ने कही ये बात
जब एक्सपर्ट से पूछा गया कि, 'इस्लामिक कट्टरवाद से यूरोप के देश, जिसमें कि फ्रांस भी शामिल है वो कैसे लड़ाई लड़ रहे हैं?' तो उन्होंने जवाब दिया कि फ्रांस ये कार्रवाई इसलिए कर रहा है क्योंकि टीचर सैम्उल पैटी की हत्या में एक शरणार्थी का हाथ है. उसका चेचेन्या कनेक्शन पता चला है. यानी इस्लामिक कट्टरपंथ फ्रांस पर हावी है.

पहले भी हो चुकी है ऐसी घटना
फ्रांस में इस्लामिक कट्टरवाद की ये कोई पहली घटना नहीं है, इसी वर्ष हाल ही में फ्रांस के शार्ली हेब्दो के पुराने ऑफिस के पास आतंकी हमला हुआ था. ये हमला शार्ली हेब्दो मैग्जीन में दोबारा पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छापने के खिलाफ हुआ था. इससे पहले 2015 में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छापने पर शार्ली हेब्दो के ऑफिस में आतंकी हमला हुआ था. जिसमें कई पत्रकारों की जान गई थी.

सवाल ये उठता है कि फ्रांस में इस्लामिक कट्टरता इतनी क्यों बढ़ती चली गई? तो इसका जवाब जानने के लिए आपको फ्रांस में शरणार्थियों का इतिहास समझना होगा. फांस में अभिव्यक्ति की आजादी को प्रमुखता दी गई है. दूसरी तरफ फ्रांस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के नाते शरणार्थियों को गले लगाने की उदार नीति पर भी दशकों से चल रहा है. यही वजह है कि पश्चिमी यूरोप में मुसलमानों की सबसे अधिक आबादी फ्रांस में है जो कि देश की कुल आबादी का 10 प्रतिशत है. ये लोग मोरक्को, अल्जीरिया, माली और ट्यूनीशिया जैसे देशों से आकर फ्रांस में आबाद हुए हैं, धर्मनिरपेक्ष पॉलिसी के अंतर्गत फ्रांस में ऐसा फ़्रेंच मॉडल पनपा है जिसमें अल्पसंख्यक आबादी को देश की मुख्यधारा में पूरी तरह से जोड़ने की कोशिश की गई.

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