अमेरिका के पड़ोसी देश क्यूबा में पुतिन का शक्ति प्रदर्शन! कहीं फिर 1962 जैसा संकट न पैदा हो जाए
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अमेरिका के पड़ोसी देश क्यूबा में पुतिन का शक्ति प्रदर्शन! कहीं फिर 1962 जैसा संकट न पैदा हो जाए

Russian Submarine In Cuba: राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस की सबसे एडवांस्ड फ्रिगेट को क्यूबा भेजा है. साथ में एक हाइपरसोनिक मिसाइल कैरियर और न्यूक्लियर सबमरीन भी हवाना में मौजूद है. पुतिन के ताजा कदम से 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट जैसी स्थितियां पैदा होने का खतरा है.

अमेरिका के पड़ोसी देश क्यूबा में पुतिन का शक्ति प्रदर्शन! कहीं फिर 1962 जैसा संकट न पैदा हो जाए

Russian Warships In Cuba: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एक कदम ने कोल्ड वार की यादें ताजा करा दी हैं. हाइपरसोनिक मिसाइलों से लैस रूसी फ्रिगेट ने क्यूबा के हवाना में लंगर डाला है. साथ में न्यूक्लियर-पावर्ड सबमरीन भी है. रूसी युद्धपोत अटलांटिक महासागर में 370 मील दूर मौजूद लक्ष्‍यों पर निशाना साध रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूसी जहाज अमेरिका के समुद्री तट से महज 25 मील दूर से गुजरते हुए आगे बढ़े. हालिया घटनाक्रम 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की याद दिलाता है. वह कोल्ड वार के इतिहास के सबसे तनाव भरे दिन रहे.

क्यूबा पहुंचे रूसी बेड़े में उसकी सबसे एडवांस्ड फ्रिगेट एडमिरल गोर्शकोव शामिल है. यह एक हाइपरसोनिक मिसाइल कैरियर है. साथ में परमाणु पनडुब्बी कजान और दो अन्य नौसैनिक जहाज भी हैं. क्यूबा के अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया कि रूसी जहाजों पर परमाणु मिसाइलें मौजूद हैं. यह बात दीगर है कि पुतिन ने हाल ही में अपने सबसे खतरनाक हथियारों को NATO देशों के पास पहुंचाने की धमकी थी. रूस और क्यूबा ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि 12 से 17 जून के बीच, रूसी जहाज क्यूबा में रहेंगे.

दोनों देश सोवियत यूनियन के समय से ही करीब रहे हैं. 1959 की क्यूबा क्रांति के बाद दोनों देशों में कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए. कम्युनिस्ट देशों के रूप में क्यूबा और USSR की साझेदारी से अमेरिका को खतरा महसूस होने लगा था. वह कोल्ड वार का दौर था. अमेरिका ने 1961 में क्यूबा में तख्तापलट की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. फिर अक्टूबर 1962 में जो हुआ, वह कोल्ड वार के सबसे भयावह पलों में से है. दुनिया परमाणु युद्ध के मुहाने पर पहुंच गई थी.

1962 का क्यूबा मिसाइल संकट

पुतिन की हालिया कार्रवाई से कोल्ड वार के उन्हीं दिनों की यादें ताजा हो उठी हैं. 1962 का क्यूबा मिसाइल संकट 13 दिनों तक चला था. क्यूबा को सोवियत यूनियन का पूरा समर्थन था और अमेरिका को अपने पड़ोस में कम्युनिस्ट देश नहीं चाहिए था. US को लगता था कि क्यूबा को मोहरा बनाकर रूस उसपर हमला कर सकता है. अमेरिका ने इटली और तुर्की में न्यूक्लियर मिसाइलें तैनात कर रखी थीं. जवाब में सोवियत यूनियन ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं.

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अक्टूबर के शुरुआती दिनों में अमेरिका के जासूसी प्लेन ने क्यूबा में मध्यम और लंबी दूरी की रूसी मिसाइलों की मौजूदगी के सबूत जुटाए. 16 अक्टूबर से क्यूबा मिसाइल संकट की शुरुआत हुई. तत्कालीन अमेरिकी राष्‍ट्रपति जॉन एफ. केनेडी को सलाह मिली कि क्यूबा पर हमला कर दें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. 22 अक्टूबर को केनेडी ने नौसेना से एक ब्लॉकेड लागू करने को कहा ताकि और मिसाइलें क्यूबा न पहुंच जाएं. दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था.

परमाणु शक्ति से संपन्न दुनिया की दो महाशक्तियां आमने-सामने थीं. अगर युद्ध होता तो दुनिया का विनाश तय था. आखिरकार, केनेडी और सोवियत सरकार के मुखिया निकिता खुर्शेचेव के बीच समझौता हुआ. क्यूबा से रूसी हथियार हटा लिए जाने थे और अमेरिका को यह घोषणा करनी थी कि वह फिर कभी क्यूबा पर आक्रमण नहीं करेगा. अमेरिका गुपचुप तरीके से तुर्की में तैनात सभी हथियार वापस बुलाने को भी राजी हो गया था. 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट का नतीजा रहा कि मॉस्को और वाशिंगटन के बीच एक हॉटलाइन स्थापित हुई. 

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