लंदन: एक नए अध्ययन में पता चला है कि हमारे खांसने अथवा छींकने के बाद हवा के संपर्क में आने वाली एयरोसोल माइक्रोड्रॉपलेट्स (हवा में निलंबित अतिसूक्ष्म बूंदें) कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) फैलाने के लिए खास जिम्मेदार नहीं होतीं. जर्नल ‘फिजिक्स ऑफ फ्ल्यूड’ (Physics of Fluid) में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक बंद स्थान में सार्स-सीओवी-2 का एयरोसोल प्रसार खास प्रभावी नहीं होता है.
अनुसंधानकर्ताओं ने एक बयान में कहा, ‘यदि कोई व्यक्ति ऐसे स्थान पर आता है जहां कुछ ही देर पहले कोई ऐसा व्यक्ति मौजूद था जिसे कोरोना वायरस संक्रमण के हल्के लक्षण थे तो उस व्यक्ति के संक्रमण की जद में आने की आशंका कम होती है.’
ये भी पढ़ें- भारत में 'लव जेहाद', फ्रांस में 'आतंक जेहाद'; मजहबी कट्टरता के खिलाफ क्रांति कब?
उन्होंने कहा कि यह आशंका और भी कम होती है जब वह व्यक्ति केवल बात ही कर रहा हो.
अध्ययन में कहा गया, ‘सार्स-सीओवी-2 के प्रसार पर हमारे अध्ययन ने दिखाया कि एयरोसोल प्रसार संभव है, लेकिन यह ज्यादा प्रभावी नहीं है, खासतौर पर बिना लक्षण वाले या कम लक्षण वाले संक्रमण के मामलों में.’
वैक्सीन को लेकर सामने आई ये बात
दूसरी तरफ कोरोना वायरस (Coronavirus) वैक्सीन को लेकर भी लंदन से एक अच्छी खबर है और यहां के एक बड़े अस्पताल को कोरोना वैक्सीन रिसीव करने की तैयारी के लिए कहा गया है. हालांकि इस बीच यूके वैक्सीन टास्क फोर्स की अध्यक्ष केट बिंघम ने वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) को लेकर चिंता जताई है. उन्होंने कहा है कि कोविड-19 के वैक्सीन की पहली पीढ़ी के अपूर्ण होने की संभावना है और यह सभी लोगों पर असर नहीं करेगी.
केट बिंघम ने द लांसेट मेडिकल जर्नल (The Lancet medical journal) में प्रकाशित एक अंश में लिखा, 'हालांकि, हमें यह भी नहीं पता कि हमें कभी भी वैक्सीन मिलेगी या नहीं. शालीनता और अति-आशावाद के खिलाफ रक्षा करना अनिवार्य है.' उन्होंने आगे लिखा, 'टीकों की पहली पीढ़ी के अपूर्ण होने की संभावना है और हमें तैयार रहना चाहिए कि वे संक्रमण को ना रोके, बल्कि सिर्फ लक्षणों को कम करे.'
इनपुट: भाषा
ये भी देखें