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नई दिल्ली: भारतीय घरों में 2 शब्द खासा प्रचलन में रहते हैं, स्वर्ग और नरक. सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर के तमाम देश स्वर्ग और नरक की बातों में विश्वास करते हैं, फिर चाहे वो किसी भी धर्म के क्यों न हो. एक आम धारणा है कि स्वर्ग का मतलब अच्छा और सुखद होता है तो वहीं नरक का मतलब है यातना, प्रताड़ना और बहुत खराब माहौल, हिंदी फिल्मों में तो लोगों का नरक का मतलब ऐसे दिखाया जाता है कि वहां गर्म तेल की कढ़ाई में लोगों को सेका जाता है. आपको बता दें कि दुनिया में एक जगह ऐसी भी है जहां हकीकत में ये 'नरक' है.
तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान (Karakum Desert, Turkmenistan) में एक जगह है जिसे नरक का दरवाजा (Gateway To Hell/Gates of Hell) कहा जाता है. ये तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात (Ashgabat) से 260 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. 60 मीटर चौड़े और 20 मीटर गहरे 'नरक के दरवाजे' में 70 के दशक से ही लगातार आग धधक रही है. माना जाता है कि 1971 में सोवियत की ड्रिलींग ऑपरेशन की वजह से यहां आग की लपटें उठीं लेकिन आज तक इस आग के धधकने की असली वजह क्या है, ये पता नहीं चला है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि ये क्रेटर 1960 के दशक से ही है लेकिन 1980 के दशक में इसमें आग लग गई.
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The Week में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सोवियत वैज्ञानिक रेगिस्तान में तेल के लिए ड्रिलींग कर रहे थे. इसी दौरान नैचुरल गैस का पता चला और जमीन अंदर की तरफ धंस गई. इसके बाद तीन सिंकहोल बने जिससे नैचुरल गैस रिसने लगी. गैस का रिसाव बंद करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक गड्ढे में आग लगा दी, ये सोचकर की इससे रिसाव बंद होगा. उस दिन से ही नरक के दरवाजे में आग धधक रही है. गौरतलब है कि नरक के दरवाजे को देखने के लिए सालाना हजारों टूरिस्ट्स आते हैं.
कैनेडा के खोजी George Kourounis इस नरक के दरवाजे से होते हुए सबसे पहले नीचे गए. उन्होंने National Geographic से बातचीत के दौरान कहा 'नीचे काफी आग थी, दिन हो या रात ये हमेशा जलती ही रहती है. अगर आप किनारे पर खड़े हों तो आपका आग की लपटों की आवाज सुनाई देगी. आग की वजह से तापमान इतना बढ़ जाता है जिसे सह पाना नामुमकिन है. एकदम सेंटर में दो बड़ी आग की लपटें हैं शायद वहीं नैचुरल गैस के लिए ड्रिलींग की गई होगी.' Kourounis पूरी तैयारी के साथ लगातार जलते फायर क्रेटर में उतरे थे. इक्विपमेंट्स में Kevlar से बनाया गया कस्टम मेड Harness, फायर रेसिस्टेंट रस्सी और एक हीट-रेसिस्टेंट सूट शामिल था. इसके अलावा उनके पास एक हीट प्रोब (Heat Probe) भी था. इसके जरिए फायर क्रेटर के किनारे पर रखे लैपटॉप तक वायरलेस ट्रांसमिशन किया जा रहा था. Kourounis जलते गड्ढे के अंदर तक गए और मिट्टी के सैम्पल इकट्ठा किए. मिट्टी की जांच के बाद वैज्ञानिकों को धधकती आग में कुछ माइक्रोऑर्गनिज्म्स मिले. सबसे खास बात ये है कि ये गड्ढे के बाहर नहीं पाए गए.
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तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति, Gurbanguly Berdymukhamedov ने अधिकारियों को नरक के दरवाजे में जल रही आग को बुझाने का तरीका ढूंढने के निर्देश दिए हैं. उनका कहना है कि आग की वजह से पर्यावरण और आस-पास रह रहे लोगों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है. राष्ट्रपति ने कहा, 'हम प्राकृतिक संसाधन खो रहे हैं जिनसे भारी मुनाफा हो सकता है और जिनका इस्तेमाल लोगों का जीवन संवारने में किया जा सकता है.' बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब किसी ने आग को बुझाने की कोशिश की हो. इससे पहले भी राष्ट्रपति Berdymukhamedov ने ही इस आग से निजात पाने का तरीका ढूंढने के निर्देश दिए थे लेकिन वैज्ञानिकों को आज तक इसका कोई रास्ता नहीं मिला है. साल 2006 से ही Berdymukhamedov तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति हैं और बाकी दुनिया से ये लगभग कटा हुआ देश है.
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