मुफ्तखोरी की राजनीति ने श्रीलंका को डुबोया? क्यों हुआ दाने-दाने को मोहताज
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मुफ्तखोरी की राजनीति ने श्रीलंका को डुबोया? क्यों हुआ दाने-दाने को मोहताज

Sri Lanka Crisis: श्रीलंका की राजधानी कोलंबो.. एशिया की सबसे अशांत राजधानी में बदल गई है. कोलंबो में श्रीलंका सरकार के खिलाफ लगातार हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं और लोगों का आरोप है कि श्रीलंका की सरकार देश के सवा दो करोड़ लोगों को भूखा मारना चाहती है.

मुफ्तखोरी की राजनीति ने श्रीलंका को डुबोया? क्यों हुआ दाने-दाने को मोहताज

नई दिल्लीः पाकिस्तान में राजनीतिक संकट छाया हुआ है. श्रीलंका में Emergency लगी हुई है. वहां पेट्रोल और डीजल सब खत्म हो गया है. एक और पड़ोसी देश.. म्यांमार में मिलिट्री का शासन है. अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है. चीन में सिर्फ एक ही पार्टी का शासन है और वहां लोकतंत्र पूरी तरह समाप्त हो चुका है. रशिया में भी व्लादिमीर पुतिन का एकछत्र राज चलता है, जहां उन्हें कोई चुनौती नहीं दे सकता. यूक्रेन में भी इस समय युद्ध चल रहा है. लेकिन भारत में इस समय IPL चल रहा है. भारत के करोड़ों लोग, ये सबकुछ भुला कर IPL का मजा ले रहे हैं. फिर भी कहते हैं कि वो देश में असुरक्षित हैं. फिर भी कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है और संविधान खतरे में है. इस समय भारत के पड़ोसी देशों में अस्थिरता का माहौल है. हम आपको बताएंगे कि भारत को अपने पड़ोसी देशों की दुर्गति से सबक लेना चाहिए और शुक्र मनाना चाहिए कि हमारी हालत उनके जैसी नहीं है.

  1. दाने-दाने को मोहताज हुआ श्रीलंका
  2. श्रीलंका में एक कप चाय 100 रुपये की
  3. श्रीलंका सरकार के खिलाफ प्रदर्शन

श्रीलंका सरकार के खिलाफ लगातार हिंसक प्रदर्शन

इस समय श्रीलंका की राजधानी कोलंबो.. एशिया की सबसे अशांत राजधानी में बदल गई है. कोलंबो में श्रीलंका सरकार के खिलाफ लगातार हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं और लोगों का आरोप है कि श्रीलंका की सरकार देश के सवा दो करोड़ लोगों को भूखा मारना चाहती है. इस समय श्रीलंका में एक कप चाय 100 रुपये की मिल रही है. रसोई गैस के लिए तो लम्बी लम्बी लाइनें लगी हैं. इसके अलावा श्रीलंका में डीजल खत्म हो चुका है. पेट्रोल खरीदने के लिए भी श्रीलंका की सरकार के पास पैसा नहीं है. हालांकि इस संकट की घड़ी में भारत ने श्रीलंका को 40 हजार मीट्रिक टन डीजल की चार खेप और 40 हजार टन चावल की शिपमेंट अलग से भेजी है.

वो भूखे नहीं मरना चाहते..

हालांकि श्रीलंका के लोगों में वहां की सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा है और ये लोग अब ये कह रहे हैं कि वो अपनी सेना की गोली से मरना पसन्द करेंगे लेकिन वो भूखे नहीं मरना चाहते. अभी श्रीलंका में Emergency लगी हुई है. वहां महिंदा राजपक्षे की सरकार के सभी 26 मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इन 26 मंत्रियों में चार मंत्री राजपक्षे परिवार के ही थे. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में एक Unity Goverment की स्थापना करने की बात कही है, जिसमें विपक्ष के नेता भी मंत्रिमंडल का हिस्से बन सकते हैं. हालांकि श्रीलंका के लोग कह रहे हैं कि राजपक्षे परिवार इस तरह की सरकार बना कर अपने परिवार के लोगों को बचा रहा है.

श्रीलंका-भारत लगभग एक साथ आजाद हुए थे

श्रीलंका को भारत के एक साल बाद वर्ष 1948 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी. यानी श्रीलंका और भारत लगभग एक साथ आजाद हुए थे. हालांकि श्रीलंका कभी भी भारत की तरह राजनीतिक स्थिरता हासिल नहीं कर पाया और वर्ष 1983 से 2009 तक वहां 26 वर्ष लम्बा गृह युद्ध चला. ये उसी दौर की बात है, जब श्रीलंका में आतंकवादी संगठन Liberation Tigers of Tamil Eelam यानी LTTE.. Sri Lankan Tamlis के लिए एक अलग देश की मांग कर रहा था. इस गृह युद्ध के बाद वर्ष 2009 से 2019 के बीच श्रीलंका ने काफी तरक्की की. इस दौरान पश्चिमी देश ये कहते थे कि भारत को श्रीलंका के आर्थिक मॉडल से सीख लेनी चाहिए.

श्रीलंका को भारत से कर्ज लेना पड़ रहा

तीन साल पहले World Bank ने श्रीलंका को दुनिया के उन देशों की सूची में रखा था, जहां अधिकतर नागरिकों की आय.. High Middle Income में श्रेणी में थी. तब सवा दो करोड़ की आबादी वाले इस देश में प्रति व्यक्ति आय 3 हजार 852 US Dollars यानी लगभग 2 लाख 90 हजार रुपये पहुंच गई थी. जबकि 2019 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2100 US Dollars यानी लगभग एक लाख 57 हजार रुपये थी. अब सवाल है कि जिस देश को World Bank ने तीन साल पहले आर्थिक रूप से सम्पन्न देश मान लिया था और जहां प्रति व्यक्ति आय भारत से भी दोगुनी थी, उस देश में ऐसा क्या हुआ कि आज वहां दाने दाने के लिए दंगे हो रहे हैं और आज उसी श्रीलंका को भारत से बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है? आइये आपको बताते हैं ये सब हुआ कैसे?

कर्ज लेते समय श्रीलंका ने इस बात का नहीं दिया ध्यान

श्रीलंका से पहली गलती ये हुई कि.. उसने अपनी अर्थव्यवस्था को दूसरे देशों से लिए गए कर्ज पर निर्भर बना दिया. वर्ष 2016 में श्रीलंका पर 46 Billion US Dollar यानी 3 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज था. लेकिन सिर्फ़ 6 वर्षों में अब ये दोगुने से भी ज़्यादा हो गया है. इस समय श्रीलंका पर 6 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. ये श्रीलंका की सालाना GDP के बराबर है, जो 81 Billion US Dollar यानी लगभग 6 लाख करोड़ रुपये की है. यानी श्रीलंका ने कर्ज लेते समय इस बात का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा कि उसे ये पैसा ब्याज़ के साथ वापस लौटाना होगा. अगर वो ये पैसा नहीं लौटा पाया तो उसकी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी. चीन जैसे देशों ने श्रीलंका की इसी कमी का फायदा उठाया. श्रीलंका पर जो कुल कर्ज है, उसमें चीन की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ज़्यादा की है. श्रीलंका से दूसरी ग़लती ये हुई कि उसने कर्ज तो ले लिया, लेकिन इस कर्ज का इस्तेमाल सही जगह नहीं किया. यानी अगर वो ये पैसा श्रीलंका के औद्योगिक क्षेत्र पर खर्च करता, वहां बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लगाता और देश में एक नया आय स्रोत पैदा करता तो शायद ये कर्ज उसे इतनी तकलीफ़ नहीं देता. श्रीलंका के पास ज्यादा आय स्रोत नहीं है और उसे सबसे ज्यादा आमदनी पर्यटन, चाय और कपड़ा उद्योग से होती है.

कपड़ा उद्योग की भी कमर टूट गई

वर्ष 2018 में श्रीलंका सरकार को Tourism Sector से 5.6 Billion Dollar यानी 44 हज़ार करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी. लेकिन कोविड के बाद.. इस आय स्रोत पर भी लॉकडाउन लग गया और वर्ष 2021 में श्रीलंका सरकार को इस क्षेत्र से सिर्फ़ 2 हज़ार करोड़ रुपये की आमदनी हुई. यानी जो पर्यटन क्षेत्र 2018 में 44 हज़ार करोड़ रुपये का था, वो सिकुड़ कर 2 हज़ार करोड़ रुपये का रह गया. इसी तरह चाय उद्योग और कपड़ा उद्योग की भी कमर टूट गई. नटशेल में कहें तो श्रीलंका ने अपने आय स्रोत भी नहीं बढ़ाए और वो कर्ज भी लगातार लेता चला गया. एक और बात.. दूसरे देशों से लिया गया ये कर्ज भ्रष्टाचार की भेंट भी चढ़ा. वर्ष 2015 में जब श्रीलंका में राष्ट्रपति के चुनाव हुए थे. तब राजपक्षे परिवार ने चीन की कम्पनियों से लिया कर्ज अपने चुनाव प्रचार पर खर्च किया था. आरोप लगते हैं कि चीन खुद चाहता था कि महिन्दा राजपक्षे इस चुनाव में जीत जाए और इसीलिए उसकी कम्पनियां श्रीलंका को भारी भरकम कर्ज देने के लिए तैयार हो गईं.

तो श्रीलंका की ये स्थिति नहीं होती

श्रीलंका से तीसरी ग़लती ये हुई कि उसने आत्मनिर्भर बनने की कभी कोशिश नहीं की. श्रीलंका.. नमक, कागज़ और कपड़ा सीलने की एक छोटी सुईं तक के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. श्रीलंका के नागरिक जिन वस्तुओं और सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उनमें से ज़्यादातर बाहर से आती हैं. अब दूसरे देशों से सामान खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा चाहिए होती है और श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा का यही भंडार लगभग समाप्त हो है. अभी श्रीलंका के पास सिर्फ़ 2.31 Billion Dollar यानी साढ़े 17 हज़ार करोड़ रुपये ही विदेशी मुद्रा के रूप में बचे है. जबकि कच्चे तेल और दूसरी चीज़ों के आयात पर ही उसका एक साल का खर्च 91 हज़ार करोड़ रुपये है. अगर श्रीलंका अपनी ज़रूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं होता तो आज उसकी ये स्थिति नहीं होती. आप कह सकते हैं कि.. तब वो आर्थिक अस्थिरता में भी खुद को सम्भाल लेता. लेकिन जब कोई देश पूरी तरह आयात पर निर्भर हो जाता है तो ऐसी स्थिति में अगर उसके पास विदेशी मुद्रा नहीं रहे तो उसके भूखे मरने की नौबत आ जाती है.

श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा नहीं

श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा नहीं है तो वो ना तो कच्चा तेल खरीद सकता है, ना गैस खरीद सकता है, ना कागज खरीद सकता है और ना ही एक छोटी सी सुईं खरीद सकता है. आयात पर निर्भरता और दूसरे देशों से लिए गए कर्ज की वजह से श्रीलंका की आमदनी और खर्च में एक बड़ी खाई पैदा हो चुकी है. श्रीलंका का राजकोषीय घाटा लगभग 11 प्रतिशत है. आमदनी और खर्च के बीच जो अंतर होता है, उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं. जैसे.. श्रीलंका का राजकोषीय घाटा 11 प्रतिशत है तो इसका मतलब ये हुआ कि श्रीलंका को हर 100 रुपये की आमदनी पर 111 रुपये खर्च करने होते है. महत्वपूर्ण बात ये है कि श्रीलंका सरकार सबसे ज्यादा खर्च अपने नागरिकों पर नहीं करती. बल्कि सबसे ज्यादा खर्च, कर्ज के भुगतान पर होता है. वर्ष 2020 में श्रीलंका सरकार ने हर 100 रुपये में से 70 रुपये कर्ज के भुगतान पर खर्च किए थे.

श्रीलंका की बदहाली की सबसे बड़ी वजह?

श्रीलंका की इस बदहाली की सबसे बड़ी वजह है.. मुफ्तखोरी की राजनीति. वर्ष 2019 में जब श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे, तब श्रीलंका के राजपक्षे परिवार ने ऐलान किया था कि अगर चुनाव में उनकी पार्टी जीत गई तो वो देश में वस्तुओं पर सेवाओं पर लगाए जाने वाले Value Added Tax यानी VAT को आधा कर देगी. जब चुनाव में राजपक्षे परिवार की पार्टी जीती तो वादे के तहत VAT को 15 प्रतिशत से घटा कर 8 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे श्रीलंका को उसकी GDP के 2 प्रतिशत के बराबर नुकसान हुआ.

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