Zee जानकारी : ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से 'डूम्स-डे वॉल्ट' के आसपास की बर्फ पिघली
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Zee जानकारी : ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से 'डूम्स-डे वॉल्ट' के आसपास की बर्फ पिघली

Zee जानकारी : ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से 'डूम्स-डे वॉल्ट' के आसपास की बर्फ पिघली

-ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से 'डूम्स-डे वॉल्ट' के आसपास की बर्फ पिघल गई है और पानी ढलान के सहारे 'डूम्स-डे वॉल्ट' के कुछ हिस्से में पहुंच गया.

-पानी की वजह से 'डूम्स-डे वॉल्ट' की दीवारों पर सीलन आ चुकी है.

-हालांकि वक्त रहते सीलन का पता लगा लिया गया है. 

-लेकिन इस सीलन की वजह को पूरी तरह समझने के लिए 10 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे.

-सीलन को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए करीब 28 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. 

-इतने पैसे खर्च करने के बाद भी ये काम तुरंत नहीं होगा, इसमें करीब 1 साल का समय लगेगा. 

-'डूम्स-डे वॉल्ट' को नार्वे के स्पिट्सबर्गेन में उत्तरी ध्रुव के पास बनाया गया है.

-इस वॉल्ट में दुनिया के क़रीब सभी देशों के 8 लाख 60 हज़ार से ज़्यादा बीज, फलियां और गेहूं और चावल के नमूने जमा किए गए हैं.

-ये एक प्रकार का बीज बैंक है. दुनिया में बड़ी आपदा से होने वाले महाविनाश की स्थिति में, पृथ्वी पर कुछ नहीं बचेगा और तब इसी तिजोरी से आने वाली पीढ़ियों को खेती करने के लिए बीज मिलेंगे.

-इस तिजोरी को एक साल में सिर्फ 3 या 4 बार बीज जमा करने के लिए खोला जाता है.

-अमेरिकी संसद के सीनेटर्स के अलावा सिर्फ यूनाइटेड नेशंस के सेक्रेटरी जनरल को इस बीज बैंक में जाने की इजाज़त है.

भारत में 51 फीसदी को एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पाती

-विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में गंभीर रूप से ज़ख्मी मरीज़ों में से 51 फीसदी को एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पाती.

-जबकि चीन में 75 फीसदी से ज़्यादा लोगों को एंबुलेंस की सुविधा तत्काल प्रभाव से उपलब्ध हो जाती है. 

-तुरंत ज़रूरत पड़ने पर एम्बुलेंस 10 मिनट के रिपोर्टिंग टाइम में पहुंचनी चाहिए लेकिन भारत में एंबुलेंस को आने में आधे घंटे से लेकर 1 घंटे तक का समय लग जाता है.

-कई बार मरीजों की स्थिति बहुत बिगड़ जाती है और अस्पताल पहुंचने के पहले ही उनकी मौत हो जाती है.

अगर सही समय पर एबुलेंस की सुविधा ना मिले या फिर देरी की वजह से एंबुलेंस अस्पताल तक ना पहुंचे, तो हृदयाघात से बचने की संभावना हर गुज़रते हुए मिनट के साथ 10 फीसदी कम होती जाती है. यानी जितनी देर से एंबुलेंस पहुंचेगी मरीज़ की जान को उतना ही ज़्यादा खतरा होगा.

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