नसीरुद्दीन शाह ने कहा था कि उन्हें भारत में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर डर लगता है. उनकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे वो भारत की नहीं.. बल्कि सीरिया और पाकिस्तान जैसे किसी देश की बात कर रहे हों.
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107 करोड़ हिंदुओं के इस देश में आज़ादी से लेकर अब तक मुसलमान.. राष्ट्रपति पद से लेकर...मुख्य न्यायाधीश, क्रिकेट टीम के कप्तान और हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार रह चुके हैं. ऐसे में असहनशीलता की बात कहकर.. भारत पर छींटाकशी करना कहीं से भी उचित नहीं है. लेकिन इसके बावजूद कुछ लोगों को हिंदुस्तान में डर लगता है.. लेकिन पाकिस्तान अपना घर लगता है. आजकल...ऐसे बयान देना.. भारत के बुद्धिजीवी वर्ग के बीच, एक फैशन बन गया है.
पिछले हफ़्ते नसीरुद्दीन शाह ने कहा था कि उन्हें भारत में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर डर लगता है. उनकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे वो भारत की नहीं.. बल्कि सीरिया और पाकिस्तान जैसे किसी देश की बात कर रहे हों. नसीर साहब की ये अदा... इमरान ख़ान को बहुत पसंद आई है. अब इमरान ख़ान नसीरुद्दीन शाह के बयान का इस्तेमाल करके भारत को बदनाम कर रहे हैं. हालांकि नसीरुद्दीन शाह ने Damage Control की कोशिश की है.. लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है.
पाकिस्तान में जब से इमरान खान की सरकार आई है. भारत को असहनशीलता के चक्रव्यूह में फंसाने की पूरी कोशिश की जा रही है. भारत में मौजूद पाकिस्तान के अघोषित राजदूत इस योजना में इमरान खान का भरपूर साथ दे रहे हैं. ज़रा सोचिए पाकिस्तान कितना कमज़ोर देश है. आज भी पाकिस्तान के नेता पाकिस्तान के निर्माण को जायज़ ठहराने के लिए झूठ बोलते हैं. एक ऐसा देश जिसका निर्माण धर्म के नाम पर हुआ और जिसकी नींव को 10 लाख बेकसूर लोगों के खून से सींचा गया. वो देश आज भारत को मानवता का उपदेश दे रहा है. वैसे पाकिस्तान को ये मौका भी हमारे देश के ही कुछ लोगों ने दिया है.
ये लोग बहुत अच्छे अभिनेता हैं और पाकिस्तान के विरोध का अभिनय भी इन लोगों को बहुत अच्छी तरह से आता है. एक अखबार में इंटरव्यू देकर नसीरुद्दीन शाह ने इमरान खान का विरोध किया है. लेकिन विरोध का ये स्वर बड़ा ठंडा है. विरोध में उतनी शिद्दत नहीं थी, जितनी असहनशीलता वाले वीडियो में थी. नसीरुद्दीन शाह ने कहा है कि 'इमरान खान को भारत के मुद्दों पर टिप्पणी करने के बजाय, अपने देश की चिंता करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हम एक लोकतंत्र में रहते हैं और हमें पता है कि हमें अपनी देखभाल कैसे करनी है.'
यहां Note करने वाली बात ये भी है कि भारत विरोधी बयान देने के लिए उन्होंने Video का इस्तेमाल किया और पाकिस्तान के खिलाफ बोलने के लिए उन्होंने एक अखबार में एक छोटा सा बयान जारी करवा दिया. आज हम नसीरुद्दीन शाह से एक और सवाल पूछना चाहते हैं वर्ष 1984 में देश की राजधानी दिल्ली में 2 हज़ार 733 सिखों का कत्लेआम हुआ था. लेकिन तब नसीरुद्दीन शाह को भारत में डर नहीं लगा था. सिखों के नरसंहार के सिर्फ ढाई महीने बाद वर्ष 1985 में उन्होंने भारत सरकार की तरफ से पद्म श्री का सम्मान भी ग्रहण किया था. तब सरकार भी किसी और की नहीं कांग्रेस पार्टी की थी, जिसके नेताओं पर सिख दंगों के आरोप लगे थे.
आश्चर्य की बात ये है कि इतने बड़े नरसंहार के बाद भी देश का माहौल इतना अच्छा था कि पद्म पुरस्कार बांटे जा रहे थे और तब सरकार का विरोध करने के बजाय ये तमाम बड़े बड़े बुद्धिजीवी और अभिनेता पुरस्कार खुशी खुशी स्वीकार कर रहे थे. वर्ष 2015 में पाकिस्तान के साथ नसीरुद्दीन शाह की मोहब्बत उस वक्त सामने आई, जब मुंबई में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की किताब का विमोचन हुआ. नसीरुद्दीन शाह, इस मंच पर कसूरी के साथ बैठे थे. और तब उन्होंने कहा था कि जितना प्यार मुझे लाहौर में मिलता है काश उतना ही प्यार हम कसूरी साहब को भारत में दे पाते. पाकिस्तान में एक यात्रा के दौरान भी उन्होंने ये कहा था कि पाकिस्तान में उन्हें घर जैसा प्यार मिलता है.
आपको याद होगा कि आतंकवादी याकूब मेमन की दया याचिका पर नसीरुद्दीन शाह ने भी हस्ताक्षर किए थे. इससे भी उनके विचार स्पष्ट हो जाते हैं. टुकड़े टुकड़े गैंग को पाकिस्तान से बहुत प्यार है. शायद यही वजह है कि इस विचारधारा के लोग पाकिस्तान के खालिस्तानी एजेंडे पर अक्सर ख़ामोश हो जाते हैं.
Canada में खालिस्तान का समर्थन करने वाले एक संगठन ने करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण के लिए, पाकिस्तान के आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का सम्मान किया है. इन घटनाओं से साफ है कि पाकिस्तान, भारत को बदनाम करने की रणनीति पर काम कर रहा है. और इसमें भारत के ही कुछ लोग उसका साथ दे रहे हैं. पाकिस्तान.. अब भारत विरोधी ताकतों का केंद्र बन गया है.
इमरान ख़ान को AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी जवाब दिया है. ओवैसी ने Tweet किया कि पाकिस्तान के संविधान के हिसाब से वहां सिर्फ एक मुसलमान ही राष्ट्रपति बन सकता है. लेकिन भारत ने दबे हुए समुदायों से बहुत से राष्ट्रपति देखे हैं. उन्होंने आगे लिखा कि अब वक्त आ गया कि है कि ख़ान साहब को अल्पसंख्यकों के अधिकारों और समावेश वाली राजनीति करना.. हमसे सीखना चाहिए. इमरान खान, मुहम्मद अली जिन्ना की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे, लेकिन भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने जिन्ना पर जो टिप्पणियां की हैं. उस पर भी इमरान खान को गौर करना चाहिए.
अपनी जीवनी India Wins Freedom में मौलाना आज़ाद ने लिखा था कि 'आज़ादी के वक्त जब पाकिस्तान का निर्माण हुआ, तब अगली सुबह भारत के मुसलमानों ने खुद को काफी अकेला महसूस किया. भारत और पाकिस्तान में मुसलमानों की आबादी बंट जाने की वजह से अब ना तो भारत के मुसलमान, पाकिस्तान के मुसलमानों की मदद कर पाएंगे और ना ही पाकिस्तान के मुसलमान, भारत के मुसलमानों की मदद कर पाएंगे. यानी भारत का मुसलमान अब बंटकर कमजोर हो गया है.'
बंटवारे में हुए खून खराबे के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने जिन्ना को भी ज़िम्मेदार माना था. आज से करीब 70 वर्ष पहले ही मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने पाकिस्तान के भविष्य पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि पाकिस्तान में कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा... ना मुसलमान और ना ही वहां के अल्पसंख्यक. और उनकी ये बात आज भी 100 फीसदी सच हैं.