Navratri Special: 13 April 2021 से शुरू हो रहे नवरात्र, जान लीजिए कलश स्थापना की विधि

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना जरूर की जाती है. देवी दुर्गा की पूजा में कलश स्थापित करना जरूरी होता है. कलश स्थापना को लेकर पुराणों में कहा गया है कि कलश भगवान विष्णु का स्वरूप है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 7, 2021, 11:45 AM IST
  • पूजा से पहले गणेशजी की आराधना जरूर की जाती है
  • कलश को श्रीहरि विष्णु का स्वरूप माना जाता है
Navratri Special: 13 April 2021 से शुरू हो रहे नवरात्र, जान लीजिए कलश स्थापना की विधि

नई दिल्लीः 13 अप्रैल 2021 से वासंतिक नवरात्र शुरू होने जा रही है. इस बार किसी तिथि का क्षय नहीं होगा.

माता के सभी नव रूपों की हर दिन क्रमवार तरीके से पूजा की जाएगी. इसके साथ ही नवमी के दिन श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. नवरात्रि का समापन 22 अप्रैल दशमी तिथि में होगा.

यह है कलश स्थापना का समय
चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना सुबह 5 बजकर 28 मिनट से लेकर सुबह में 8 बजकर 46 मिनट तक हो सकती है. 
अभिजीत मुहूर्त का समय 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगा. 


12 अप्रैल की सुबह 8 बजकर 01 मिनट प्रतिपदा लगेगी जो कि दूसरे दिन 13 अप्रैल की सुबह 10 बजकर 17 मिनट तक रहेगी. 
उदया तिथि में प्रतिपदा तिथि होने से नवरात्रि की शुरुआत 13 अप्रैल को होगी.

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इसलिए करते हैं कलश स्थापना
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना जरूर की जाती है. देवी दुर्गा की पूजा में कलश स्थापित करना जरूरी होता है. कलश स्थापना को लेकर पुराणों में कहा गया है कि कलश भगवान विष्णु का स्वरूप है.

इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं. पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है. 

ऐसे तैयार करते हैं कलश
कलश पर पांच तरह के पत्ते सजाए जाते हैं. इनमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, खुले पैसे रखिए. कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं.

जौ बोने से धन-धान्य की देवी अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं.

मां का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग कीजिए. पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए. कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते हैं जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाएगा. 

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