नई दिल्लीः Ganesha Chaturthi Lord Jagannath Stoty: अभी हाल ही में ओडिशा राज्य ने अपना विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा समारोह पूरा किया है. भगवान जगन्नाथ जी की कृपा और उनके भक्तों के प्रति प्रेम की कई कथाएं लोगों के बीच मौजूद हैं. ऐसी ही एक कथा है, जिसमें भगवान ने अपने भक्त को श्रीगणेश का अवतार लेकर दर्शन दिए थे. उनकी यह कथा गणेश चतुर्थी के साथ जुड़ती है और गणेश पूजा के दौरान पुरी व अन्य पूजा पंडालों में सुनाई भी जाती है. 


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भविष्य पुराण में जिक्र
इस कथा का ठीक-ठीक पौराणिक जिक्र नहीं मिलता है, लेकिन भविष्य पुराण में लिखा है कि कलियुग में भगवान नीलमाधव भक्तों को उनकी इच्छा के अनुसार दर्शन देते हैं. वह भक्तों के बीच ही निवास करेंगे. इसी आधार पर यह कथा कही जाती है. बताते हैं कि 16वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के एक गांव में गणेश भक्त गणपति भट्ट रहते थे.



वह दिन-रात गणपति बप्पा की भक्ति में ही लीन रहते थे. एक समय वह तीर्थ यात्रा पर निकले. इस तरह हर ओर की यात्रा के बाद वह पुरी( ओडिशा) पहुंचे.


निराश हुए भक्त ब्राह्मण
यहां भट्ट जी को बहुत निराशा हुई. क्योंकि पुरी में गणेश जी का कोई मंदिर ही नहीं था. ऐसा देखकर वह विचलित हो गए. वह सिर्फ और सिर्फ गणपति बप्पा के दर्शन करना चाहते थे. बाप्पा की भक्ति में इतने मग्न थे कि भगवान जगन्नाथ के मंदिर में बिना दर्शन किए ही पुरी की यात्रा छोड़ कर लौटने लगे. इस तरह उनकी चार धाम की यात्रा भी अधूरी हो रही थी. यहां तक कि पुरी में भगवान का महाप्रसाद भी उन्होंने ग्रहण नहीं किया.


मार्ग में मिला मार्गदर्शन
वह इसी विचलित अवस्था में लौट रहे थे और गणेश जी का स्मरण कर रहे थे. रास्ते में उन्हें एक ब्राह्मण मिला. उसने भट्ट जी की विचलित अवस्था देखी तो उसकी वजह पूछने लगा. तब गणेश भक्त ने कहा मैं यहां अपने प्रभु के दर्शन करने आया था, लेकिन यहां तो उनका कोई भी मंदिर नहीं है. मैं खुद ही यहां एक मंदिर तराशूंगा. इस पर वह ब्राह्मण जोर-जोर से हंसने लगा.



उसने भट्ट जी से कहा-गणपति दर्शन करने थे तो लौट क्यों आए? एक बार वहीं मंदिर में उन्हें याद तो कर लिया होता. 
प्रभु जगन्नाथ भक्त की कामना से अपना स्वरूप बदल कर भी दर्शन देते हैं. आपने भगवान जगन्नाथ के समक्ष पहुंचकर बाप्पा का स्मरण क्यों नहीं किया.' यह कहकर वह तेजस्वी ब्रह्मण चला गया.


महाराष्ट्र में मशहूर कथा
गणपति भट्ट हैरान रह गए. यह बात उनके मन में क्यों नहीं आई सोचने लगे. वे तुरंत पुरी स्थित जगन्नाथ धाम पहुंचे. उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी. गणपति भट्ट ने वहां पहुंचकर गणेश स्तुति की. तब उनके सामने स्वयं भगवान जगन्नाथ गणेश जी के रूप में प्रकट हुए. ऐसा देखकर भट्ट जी विह्ववल हो गए. इसके बाद उन्होंने गणपति की मुरली बजाते हुए मूर्ति तराशी और उसकी पूजा करने लगे. महाराष्ट्र में यह कथा घर-घर में प्रचलित हो गई. 


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