गुड़ी पड़वा का धार्मिक महत्व, जानिए कैसे श्रीहरि से सत्यनारायण बन गए भगवान विष्णु

केरल-तमिलनाडु में चैत्र प्रथमा का पर्व उगादि के नाम से मनाया जाता है. उगादि का अर्थ है शुरुआत का समय. दक्षिण भारत में भी यह पर्व नए साल का प्रतीक, शुभ-मंगल का दिन और नव संवत्सर के रूप में मनाया जाता है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 12, 2021, 11:00 AM IST
  • गुड़ी पड़वा के दिन नई फसलों की पूजा की जाती है
  • गुड़ी पड़वा के दिन नीम की पत्तियां खाने का है चलन
गुड़ी पड़वा का धार्मिक महत्व, जानिए कैसे श्रीहरि से सत्यनारायण बन गए भगवान विष्णु

नई दिल्लीः 13 अप्रैल 2021 यानी मंगलवार को जब उत्तर भारतीय इलाकों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और नवरात्र का पर्व मनाया जाएगा, ठीक इसी दिन दक्षिणी भारतीय इलाकों खासकर महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाएगा.

मराठी लोग इस दिन को नये साल के तौर पर मनाते हैं और इसे नई शुरुआत का समय मानते हैं. गुड़ी पड़वा के दिन घरों को वंदनवार से सजाया जाता है, साथ ही सूर्य की आराधना भी की जाती है. 

गुड़ी पड़वा तिथि

गुड़ी पड़वा मंगलवार, अप्रैल 13, 2021 को
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 12, 2021 को 08:00 am बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – अप्रैल 13, 2021 को 10:16 am बजे

गुड़ी पड़वा की पौराणिक कथा
माना जाता है कि सूर्य का प्रकाश ही नए दिन और नई चेतना का संदेश लेकर आता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा से संबंधित मान्यता जुड़ी है. माना जाता है कि सृष्टि में जल प्रलय के दौरान जब सात दिन तक पानी ही पानी था तब आठवें दिन जल स्तर कुछ कम हुआ और सूर्य की किरणें दिखाईं दीं.

सूर्य की यह किरणें आशा और नवजीवन का संचार लेकर आईं थीं और इसके साथ ही सृष्टि का नए तरीके से विकास आरंभ हुआ. 

असुर ने चुरा लिए वेद
यह भी कथा आती है कि जब ब्रह्मा ने वेद-वेदांग, सूर्य-चंद्र, नदी-पर्वत और सागर बना लिए साथ ही ग्रह-विग्रह भी बना लिए तब उन्होंने समय गणना और युग बनाने के बारे में सोचा, ताकि काल का विभाजन किया जा सके. लेकिन इसके पहले ही एक असुर ने वेदों को चुरा लिया ताकि काल विभाजन न हो सके और इस तरह वह सृष्टि का स्वामी बन जाएगा. 

भगवान विष्णु बने सत्यनारायण
तब श्री हरि विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर उसका वध कर दिया और वेदों को वापस ले आए. इसके बाद ही ब्रह्नमा युगों की शुरुआत कर सके. भगवान विष्णु ने चैत्र शुक्ल प्रथमा को राक्षस का वध करते सत्य की स्थापना की, इसलिए उस दिन शुरू होने वाला युग सतयुग कहलाया और श्रीहरि विष्णु सत्यनारायण कहलाए. जिनकी पूजा आज घर-घर में की जाती है. 

केरल-तमिलनाडु में चैत्र प्रथमा का पर्व उगादि के नाम से मनाया जाता है. उगादि का अर्थ है शुरुआत का समय. दक्षिण भारत में भी यह पर्व नए साल का प्रतीक, शुभ-मंगल का दिन और नव संवत्सर के रूप में मनाया जाता है. 

गुड़ी पड़वा से जुड़ी खास बातें
गुड़ी पड़वा वह समय है, जब नया अनाज खेतों से कटकर घर आ जाता है और व्यापारियों-सेठों की पुरानी बही भर जाती है तब नई शुरुआत के साथ गुड़ी पड़वा मनाकर नए साल का स्वागत किया जाता है. 

फसलों की होती है पूजा
गुड़ी पड़वा के दिन नई फसलों की पूजा की जाती है. दरअसल मराठी लोगों के लिए गुड़ी पड़वा का यह त्यौहार नए साल का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में इस दौरान महाराष्ट्र और कई इलाकों में नई फसलों की पूजा किए जाने का विधान बताया गया है.

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क्या है गुड़ी, यहां जानिए
महिलाएं इस दिन घरों में गुड़ी लगाती है और घर में बनते हैं पूरनपोली. गुड़ी पड़वा के दिन घर की महिलाएं घर को अच्छे से सजा कर आम के पत्तों को घर के मुख्य द्वार पर लगाती हैं और फिर घर के बाहर गुड़ी लगाती हैं. इसके अलावा गुड़ी पड़वा के दिन पूरनपोली जिसे महाराष्ट्र का मुख्य पकवान बोला जाता है उसे बनाए जाने की भी मान्यता है. गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका.

महिलाएं घर के बाहर एक डंडे में लाल कपड़ा बांधकर गुड़ा लगाती हैं. यह प्रथा शक आक्रमणकारियों पर विजय के प्रतीक के रूप में चली आ रही है. 

नीम के पत्ते खाए जाने की मान्यता
गुड़ी पड़वा के दिन बहुत से लोग नीम की पत्तियां खाकर दिन की शुरुआत करते हैं. इसके पीछे की मान्यता यह बताई जाती है कि, नीम का सेवन करने से व्यक्ति का खून साफ होता है जिससे रोग से लड़ने की क्षमता हासिल होती है.

साथ ही शरीर से किसी भी प्रकार का रोग भी दूर होता है.

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