नई दिल्लीः Parivartini Ekadashi 2021: एकादशी की तिथि मानसिक चेतना और शारीरिक भौतिक शुद्धि का दिन होता है. भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तिथि में आने वाली एकादशी तिथि को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह एकादशी व्रत लौकिक जगत में सबकुछ परिवर्तन शील है, इस एक सत्य को स्पष्ट तरीके से स्थापित करती है. 


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करवट बदलना महज संकेत
पौराणिक आख्यानों के आधार पर माना जाता है कि भगवान विष्णु हरिशैनी एकादशी के दिन क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं. इसके बाद वह भाद्रपद शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं. इसलिए इस तिथि को परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है.



करवट बदलना महज एक संकेत मात्र है जो कि यह बताता है कि जीवन में पहलू हमेशा बदलते रहते हैं. कभी एक पहलू सामने होता है तो कभी दूसरा. यह सुख-दुख के बदलते चक्र का भी प्रतीक है. जीवन-मृत्यु के आवर्तन को भी दर्शाता है. 


महाभारत काल से जुड़ी है कथा
महाभारत काल में युधिष्ठिर जब वनवास के दुख में थे, तब कई बार वह अपने इंद्रप्रस्थ के साम्राज्य, वैभव, परिवारीजनों बिछोह आदि को लेकर निराश होने लगते थे. ऐसे में श्रीकृष्ण ने उन्हें परिवर्तनी एकादशी के विषय में बताकर ज्ञान से परिचित कराया. 


बालकृष्ण को पहली बार कराए गए थे सूर्यदेव के दर्शन
कालांतर में इस व्रत को डोल ग्यारस के नाम से भी जाना गया, जिसकी वजह भी खुद श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप ही है. दरअसल माता यशोदा ने इसी दिन जन्म के बाद अपने लल्ला को पहली बार घर से कदम बाहर निकलवाते हुए सूर्य के दर्शन कराए थे.



उन्हें यमुना जी का भ्रमण कराया था. हिंडोले में बैठे बालकृष्ण पहली बार लौकिक जगत को मनुष्यरूपी नेत्रों से देख रहे थे. उत्तर भारत में इसी की झांकी स्वरूप यह उत्सव मनाया जाता है. 


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परिवर्तिनी एकादशी व्रत पूजा विधि -
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजन ब्रह्मा,विष्णु समेत तीनों लोकों की पूजा के समान है इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है.
-  एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि पर सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए.
-  व्रत वाले दिन प्रातः काल उठकर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीप जलाएं.



- भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं.
-  व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें इसके अतिरिक्त तांबा, चावल और दही का दान करें.
-  एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें.


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