नई दिल्लीः PM Modi Radha Ashtmi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ अलीगढ़ पहुंचे. मंगलवार को यहां राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय और डिफेंस कॉरिडोर के अलीगढ़ नोड की नींव रखी गई. हालांकि इससे अलग कार्यक्रम की खासियत यह रही कि ब्रज भूमि के इस क्षेत्र से राधे-राधे की गूंज भी सुनाई दी. सीएम योगी ने अपने स्वागत संबोधन में जहां राधा अष्टमी उत्सव का जिक्र किया, वहीं पीएम मोदी ने भी इस आध्यात्मिक पर्व की शुभकामनाएं दीं. 


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ब्रज क्षेत्र के लिए राधा अष्टमी का महत्व तो है ही, इसके साथ ही यह पौराणिक चरित्र जितना आध्यात्मिक है लोक परंपरा की विरासत भी है. क्या है इस पर्व के मायने, इस पर डालते हैं एक नजर? 



कौन हैं श्रीराधा
पौराणिक आख्यानों में राधा जी, श्रीकृष्ण की बाल सहचरी हैं और उनका नाम लिए बिना श्रीकृष्ण का नाम लिया जाना अधूरा माना जाता है. हिंदी काव्य में कृष्णाश्रयी धारा के सभी कवियों ने उनसे भी ज्यादा राधा का गुणगान किया है और वह इस परंपरा में राधा को देवी तुल्य मानते हैं. हालांकि पुराणों में कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं, लेकिन इसके बावजूद मंदिरों में राधा को ही पूजा जाता है, कृष्ण के वैवाहिक जीवन पर आस्था की निगाह कम ही डाली जाती है.



राधा की पहचान प्रेम की पवित्रता के लिए भी है. कई विद्वान मानते हैं कि राधा का विवाह हो चुका था, इसके बावजूद राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम निश्चल है, जिसमें मोह और वासना जैसी भावना नहीं थी, केवल समर्पण था. 


कृष्ण से बड़ी थीं राधा
पौराणिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार राधा जी कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं. जहां श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था वहीं राधा का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था. शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत रखने वालों को उनके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना का भी महत्व है. राधा अष्टमी का व्रत रखने वाले लोग विशेष रूप से इस दिन राधा-कृष्ण दोनों की ही पूजा करते हैं. 


शास्त्रों और पुराणों में राधा जी को कृष्णवल्लभा कहा गया है. उन्हें कृष्णप्रिया भी कहा जाता है. एक मान्यता ये भी है कि जो व्यक्ति राधा रानी की पूजा नहीं करता उसे कृष्ण पूजा का भी अधिकार नहीं है. इसी को लेकर लोक संस्कृति में एक भजन बहुत प्रसिद्ध है. राधे-राधे कहो, चले आएंगे बिहारी. यहां बिहारी का संबोधन श्रीकृष्ण के लिए है, जो राधा के दीवाने हैं और राधा उनकी दीवानी हैं.


राधा-कृष्ण की कई लोककथाएं
राधा के प्रेम को सर्वोच्च की मान्यता ऐसे ही नहीं मिल गई. इसके लिए कई कथाएं कही जाती हैं. एक कथा देवर्षि नारद से जुड़ी है. एक बार वह धरती पर श्रीकृष्ण की लीला देखने आए और राधा के साथ उन्हें खेलते देखकर इस सोच में पड़ गए कि ये भगवान तो हो ही नहीं सकते. उन्होंने मौका देखकर श्रीकृष्ण से पूछा कि ये कन्या कौन है? कृष्ण उनके मन की बात समझ गए. बोले तुम्हारे प्रश्न का उत्तर बाद में दूंगा, पहले कोई औषधि लाओ, मेरे सिर में बहुत दर्द है.



नारद ने पूछा, इसका क्या उपचार है? कृष्ण ने कहा- मेरा कोई भक्त, प्रेमी या चाहने वाला अगर अपना चरणामृत दे दे तो अभी ठीक हो जाऊं. नारद जी के मन में आया कि सबसे बड़ा भक्त तो मैं हूं, लेकिन प्रभु को चरणा मृत कैसे पिलाऊं? मुझे नर्क का भागी नहीं बनना. इस तरह श्रीदामा, मनसुखा, ललिता, परमा सभी सखा और सखियों ने चरणा मृत देने से मना कर दिया. 


बात राधा जी तक पहुंची, तो वो दौड़ती हुई आईं और यमुना में पैर धोकर तुरंत चरणामृत कृष्ण पर छिड़क दिया. उन्होंने कहा- मैं नर्क जाऊं तो जाऊं, पर कन्हैया तुम ठीक हो जाना. 


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जब राधा से मिलीं सत्यभामा
इसी तरह विवाह के बाद एक रात श्रीकृष्ण ने सोते-सोते राधा का नाम ले लिया. सत्यभामा ये सुनकर नाराज हो गईं. उन्होंने ठान लिया कि वह राधा से मिलकर रहेंगी. उन्होंने सोचा था कि कृष्ण जिसे सोते में भी नहीं भूल रहे वह जरूर कोई अप्सरा होगी, लेकिन जब वह राधा से मिलीं तो चौंक गईं. उनका पूरा मुख छालों से भरा था. सत्यभामा ने पूछा ये कैसे हुआ? तब राधा ने कहा- दो दिन पहले कन्हैया ने गर्म दूध पी लिया,



जिससे उनके सीने में जलन होने लगी. इसी से ये छाले निकल आए. उनके हृदय में तो कहीं मैं भी हूं न. राधा का कृष्ण के प्रति ये समर्पण देखकर सत्यभामा का घमंड टूट गया और वह महल लौट आईं. कृष्ण अगर जगनन्नाथ हैं तो राधारानी ब्रज की लाडली हैं. राधाअष्टमी के मौके पर पूरा ब्रज क्षेत्र राधामय हो जाता है और हर तरफ से एक ही आवाज आती है, राधे-राधे. 


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